गुरुवार, 27 अक्टूबर 2016

रंगों के रिश्ते



“बुटीक नहीं जाना क्या?” सुधीर की आवाज़ सी जैसे वह जागी!
“बुटीक?”
“हाँ, तुम्हारा बुटीक! तुम भी न, एक बार जो सोचने बैठती हो, उठ ही नहीं पाती हो, तुम्हें फैशन में नहीं कहीं लिटरेचर में पढ़ाई करनी थी!” हा हा, सुधीर ने ठहाका लगाया।
उसे सुधीर की यही बात अच्छी नहीं लगती थी, उसका मज़ाक जब देखो तब उड़ाता रहता था। इतने सालों के साथ के बाद भी वह जान नहीं सका था उसे और हमेशा ही।
“हाँ, जाऊंगी”
“जाओ, यार जल्दी खोलोगी तो ज्यादा कस्टमर आएँगे और ज्यादा कस्टमर का मतलब तुम्हें पता ही है”
“ओहो, सुधीर,डोंट बी सो सेल्फिश! अभी रात को दो बजे तो आँख लगी थी, वो भी तुम्हारी कृपा से तुरंत टूट गयी, पूरी रात सोई नहीं हूँ, चाय तो चैन से पीने दो, बुटीक में रंग तब भरूँगी, पहले अपनी सुबह में तो रंग भर लूँ”
“ये जो तुम्हारी फिलोसोफी है न, इसे तुम जितना ज्यादा अपने पास रखोगी उतना ही मेरे लिए और तुम्हारे लिए ठीक होगा। मुझे तुम बार बार न समझाया करो। और क्यों न करूं तुम्हें डिस्टर्ब रात में, आफ्टर आल यू आर माई वाइफ डियर”
“ओह, येस, एंड और क्या क्या करना होता है वाइफ को?”
“सुबह सुबह बहस नहीं, बड़े बुज़ुर्ग वाइफ की एक परिभाषा देकर नहीं गए क्या – कि गर्ल्स आर नीड टू बी ................................................”
“व्हाट गर्ल्स आर नीड टू बी?”
“ओहो, क्या सुबह सुबह”
“न न, प्लीज़ अब बता ही दो”
“न रहने दो, ये जो तुम्हारे रंगों की दुनिया है न, तुम्हारे हिसाब से, उसमें से फिर कोई रंग मुझे दे दोगी और क्या, गर्ल्स को क्या चाहिए, ये उन्हें ही नहीं पता तो मैं क्या बताऊँगा। दे जस्ट नीड टू बी इन देयर स्टुपिड फूलिश वर्ल्ड ओनली”
“ओह, यू आर राईट, एंड व्हाट अबाउट बॉयज? ओह, राईट, दे आर ओनली टू गवर्न एंड स्पोइल!”
“यू, जस्ट गो  टू हेल, एंड लिव इन योर स्टुपिड वर्ल्ड।”
ओह, ये क्या हो रहा था! फिर से रंग उड़ गए! ईशा के वे रंग दोबारा से उड़ गए जिन्हें उसने सुबह से बड़े जतन से सहेजा था। सूरज की लाली का रंग,  स्कूल  जाने  वाले  छोटे  बच्चों की यूनीफोर्म का रंग, बालकनी में खड़े होकर नवविवाहिताओं की मेहंदी में घुला चाय का रंग! मोर्निंग वाक पर जाते लोगों का रंग। सुधीर की बातों के कारण उसने सुबह से जितने भी रंग अपने पास इकट्ठे किए थे, वे उड़ने लगे, वह उन सबको सहेजना चाहती थी! वह सबको अपने पास ही रखना चाहती थी, पर जब भी वह सुधीर की औरतों के बारे में परिभाषा सुनती थी, उसके रंग उसके पास से उड़ जाते। उसे मुंह चिढ़ाते। उसे हमेशा से ही रंगों का शौक था। बचपन से ही उसके कबर्ड में हर ऐसे रंग का रूमाल होता या एंकर के धागे से कढ़ा हुआ मेजपोश जरूर होता, जिसमें हर रंग के धागे से कढ़ाई होती। माँ रंगों के लिए उसकी इस दीवानगी को लेकर हमेशा परेशान रहती थी। वह माँ के प्यार को रंग का नाम देती, जब माँ डांटती तो नीला, गुस्सा और प्यार दोनों करती तो फिरोजी, बाबा चिल्लाते तो उन्हें बैंगनी रंग दे देती। उसकी पोटली में जैसे हर रंग था। हर रिश्ता उसके लिए एक रंग था। वह रंगों से ही बातें करती। रंग ही उसके दोस्त थे। उसे याद है जब भी उसके खेतों में किसी भी पेड़ में फल आने का मौसम आता था तो वह उनके फूलों के रंग देखने लग जाती थी। कौन से चरण में कौन सा रंग होगा, उसे बहुत मजा आता। बेर खाने से पहले उसका रंग देखती। ऐसे ही उसने मन के बक्से में रंगों की एक घाटी जी बसा ली थी। और जीवन के हर क्षण को एक रंग का नाम दे दिया था।
जब सुधीर उसके जीवन में आया, तो उसने कितनी खुशी से उसे लाल रंग का नाम दिया था। लाल रंग जो उसके शरीर में दौड़ता था। वह भी तो एक रंग की तरह उसके जीवन में चला आया था।
ओहो, कितनी देर हो गयी, यहाँ बैठे हुए! उधर उसके बुटीक के रंग उसे बुला रहे होंगे! कस्टमर के कई तरह के रंगों की ड्रेस में वह जैसे खो जाती थी।
पर सुधीर के मन में उग आए शक के काले रंग का क्या करे वह?
उसके मन में कांटेदार कैक्टस उग आया है, उसे कैसे हटाए? कौन से रंग से वह पिचकारी मारे कि शक का काला रंग उड़ जाए! वह कौन सा ड्रायर यूज़ करे कि जो काले रंग को भाप बनाकर उड़ा दे। उफ, क्या करे वह! सुधीर ने उसके और अपने प्यार को फिरोज़ी रंग का नाम दिया था। पर अब फिरोज़ी रंग में शक का काला रंग मिलने लगा था और अब जो हो रहा था उसका रंग तो ईशा को पता ही नहीं था। उसके बक्से में रंगों की घाटी में उसने वह रंग बसाया ही नहीं था। वह कुरेदती पर फिरोज़ी और काले रंग से मिलकर कौन सा रंग मिलेगा वह, पता नहीं लगा पाती। उसे काला रंग इतना बुरा लगने लगा था कि उसने अपने स्याह काले बालों को भी बर्गेंडी रंग में करा लिया था।
“तुम्हें अपनी दुनिया से फुर्सत मिले तो मेरी शर्ट के बटन लगा देना”
“ओह, हाँ! तुम पहन कर आ जाओ”
उसे इस तरह शर्ट के बटन लगाना बहुत पसंद था। बचपन से ही उसने अपने घर में इन लम्हों में बड़े बड़े गुस्से को पिघलते देखा था। माँ बाबा से खूब लड़ती, पर उनकी शर्ट में बटन तभी लगाती जब वे उसे पहने होते। न जाने बटन टांकते टांकते कैसे रिश्तों में आए अनडिज़ायर्ड रंगों को बाहर बुहार देती थी और रख लेती थी केवल लाल रंग। सुधीर की रंगों की दुनिया कई दिनों से जैसे कोरी पड़ी थी, नहीं तो वह भी उसे कई तरह के रंगों से नवाजता था। ऐसा था नहीं वह, पर शक न जाने क्यों करने लगा था। नहीं तो उसने उसे कई रंगों में सराबोर किया ही था। उन रंगों में जिसका उसने कभी नाम भी न सुना था। वह जो भी रंग देता उसे वह अपने बक्से में रंगों की घाटी में बसा देती। जब जब घर वालों के ताने सुनकर उसके होंठ फिरोज़ी होते, सुधीर अपने प्यार से उन्हें फिर गुलाबी कर देता था। सुधीर के साथ मिलकर उसका रंगों का संसार पूरा हो गया था। पर जब से उसकी ज़िन्दगी में शक का प्रवेश हुआ, तब से ही वह गुलाबी रंग भी उससे अपरिचित हो गया है। ऐसा नहीं है, कि ज़िन्दगी में सुधीर का स्पर्श नहीं है, स्पर्श है, दोनों के बीच जिस्मानी भी रिश्ता है, पर उस रिश्ते में एक रंग का बहुत सूदिंग फ्लेवर था, वह नहीं है, खुरदुरी सी सतह पर रिलेशन का वह दौर चलता है। वह उस के बाद पहले एक नए रंग का नाम लेकर आती थी, आजकल अपना ही रंग उसमें खो आती है। बस यही हुआ है। वह सोचती है कुछ पूछे सुधीर से, पर जब उसकी आँखों के लाल डोरे में लाल की जगह काला रंग देखती है, तो पीछे हट जाती है।
“इतनी देर से खड़ा हूँ, यार, बटन लगा दो”
“हम्म”
आज उसका मन सुधीर के दिल से डायरेक्ट बात करने का था। बटन टांकते समय ही उसे यह मौक़ा मिलेगा।
कुछ नीले पत्ते सुना गुलाबी हो गए थे, फिरोजी होंठों के साथ मिलकर ही तो वह नीले से गुलाबी होने लगे थे। मुहब्बत के पत्तों की सरसराहट को सुन पाए थे तुम?” अपने होंठों से उसकी शर्ट के बटन को सिलते हुए जैसे उसके दिल से बात करते हुए कहा।
कुछ कहा क्या तुमने?”
क्या मैंने?” उसने चौंक कर कहा
हो सकता है, कुछ कहा हो
नहीं कान में नहीं दिल में जैसे कोई बात पहुँची थी, लगा तुमने कुछ कहा होगा
अच्छा, आज पता चला कि आवाज़ दिल पर डायरेक्ट पहुँच जाती है
हा हा, कभी कभी तुम जो लम्हें देती हो, वह अनफोरगेटेबल मूमेंट होते हैं। कहीं भीतर तक समाए हुए, नीले, पीले, लाल गुलाबी, फिरोज़ी मुहब्बत के मेमोरेबल मूमेंट
सच में, तो फिर भरोसा क्यों नहीं करते? शक का काला रंग हटा क्यों नहीं देते”
मैं तुम्हारी हर सरसराहट को सुन लेता हूँ, और सुनकर उन्हें खुद में ही समेट लेता हूँ, क्या है न कि ये मुहब्बत का ये फिरोजी रंग कुछ अलग सा होता है, गुलाबी मुहब्बत से अलग, ये अपने में हर रंग लिए होता है
“ओह, तो शक करना बंद कर दोगे तुम?”
पता नहीं, शक करना बंद करूंगा या नहीं, पर सोचता हूँ, वो जो हमारे अनफोरगेटेबल मूमेंट होते हैं, उसमें दोनों के बीच शक न आया करे। वो लम्हें तुम्हें रफ महसूस न कराएं, और तुम्हारे रंगों के बक्से में ही बसा हुआ एक रंग हो”
“सुधीर डियर, शक करना छोड़ दो, ये मुहब्बत के फिरोज़ी धागे हमें बाँधने के लिए बहुत है, शक का काला टीका क्यों इसमें लगाना, लेट अस मेक एवरी मूमेंट अनफोरगेटेबल एंड मेमोरेबल
बटन का धागा तोड़ते हुए, और दिल से डायरेक्ट बात करते हुए वह चाह रही थी कि हर लम्हा अनफोरगेटेबल और मेमोरेबल हो,  मोहब्बत के लम्हें गुलाबी ही रहें। माँ हमेशा बोलती थी कि सबसे सुन्दर रंग रिश्तों का होता है, और सबर उसमें पानी की तरह होता है, जो सबको आधार देता है, जैसे ही काला रंग कहीं आए उसमें सबर का पानी डाल दो, देखो कैसे घुलकर अपने आप ही चला जाता है। आज सुधीर के दिल के साथ डायरेक्ट बात करके वह भी यही सोचती है कि चलो अपने नीले, पीले, लाल गुलाबी, फिरोज़ी मुहब्बत के मेमोरेबल मूमेंट को अनफोरगेटेबल बनाने के लिए वह भी शक के काले रंग में सबर का पानी मिला लेती है।
आखिर उसके अनुसार “गर्ल्स आर मेंट टू बी सेव द रिलेशन ओनली एंड मेंटेन द कलर्स ऑफ लाइफ”
हा हा, और चल पड़ी है वह बुटीक के रंगों से मिलने, रात में जब उनसे अलग हुई थी, तो आज जल्दी जाने का वादा करके आई थी।

इधर ऑफिस जाते समय सुधीर ऑफर कर रहा है “चलो बुटीक छोड़ दूँ”

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