वह राजा की प्रिय
रानी नहीं थी, परन्तु वह राजा की सबसे बड़ी रानी थी. बहु विवाह के उस युग में पति
के ह्रदय में अधिक स्थान पाने वाली रानी ही शासन पर अपना अधिकार स्थापित करती थी
एवं उसी की बातों का महत्व होता था. वह इस तथ्य से परिचित थीं कि उनका स्थान हो
सकता है शेष रानियों से नीचा हो, परन्तु उनके हृदय में कभी भी ईर्ष्या नहीं आई. यह
उनकी परिपक्वता थी. वह युग स्त्रियों के मध्य परस्पर प्रतिस्पर्धा का संभवतया नहीं
था, या हो सकता है यह कहें कि संतानों के माध्यम से प्रतिस्पर्धा हो. कहा नहीं जा
सकता. काल से परे आकर दूसरे काल का विश्लेषण करना तनिक कठिन कार्य प्रतीत होता है.
परन्तु स्त्रियों
का तो इतिहास हर काल में ही अपने पति, अपनी संतान से जुड़ा होता है. ऐसे ही भानुमति
का था. कोसल देश की अत्यंत सौन्दर्यवती राजकुमारी जिसका विवाह अयोध्या के शासक
दशरथ के संग हुआ. कोसल देश के नाम पर उनका नाम कौशल्या हो गया, एवं इतिहास में वह
अपने प्रांत के कारण या कहें उनका प्रांत उनके कारण जाना गया.
आनंद रामायण के
अनुसार रावण को एक भविष्यवाणी से अपने अंत के विषय में ज्ञात हो गया था. उसे यह
ज्ञात हुआ था कि दशरथ और कौशल्या का पुत्र उसका अंत करेगा. यही कारण था कि उसने
कौशल्या का हरण कर लिया था. परन्तु काल से कौन बच पाया है. दशरथ अपनी पत्नी को
सकुशल वापस ले आए थे. युद्ध के माध्यम से!
इस प्रकार
कौशल्या के जीवन का आरंभ ही ऐसे कष्ट के साथ हुआ जिसके विषय में उन्होंने कल्पना
भी नहीं की होगी. कौशल्या के विषय में वाल्मीकि ने एक ऐसी स्त्री के रूप में
चित्रित किया है जिसकी अपनी स्त्रियोचित भावनाएं हैं.
अपने एकमात्र
पुत्र, को वनवासी के रूप में देखना किसी भी ऐसी माँ के लिए अत्यंत पीड़ादायक क्षण
रहा होगा, जो एक क्षण पूर्व तक अपने पुत्र के राज्याभिषेक की तैयारी में लगी थी.
वाल्मीकि रामायण में जब कौशल्या पर यह प्रकटन होता है कि युवराज राम अब चौदह वर्ष
तक वनवास में रहेंगे, तो वह स्त्री एवं मातृसुलभ भावनाओं के कारण मूर्छित हो जाती
हैं, वह कैकई की निंदा करती हैं और अपने पति की भी निंदा करती हैं. यहाँ वह किसी
आदर्श के रूप में नहीं हैं. वह ऐसी माँ के रूप में है जिसे अब चौदह वर्षों तक अपने
पुत्र के वियोग में दिवस काटने हैं.
तुलसीदास अपने
काल खंड के अनुसार स्त्री चरित्र को आदर्श बनाते हुए उन्हें ऐसी स्त्री के रूप में
प्रदर्शित करते हैं जो अपने पुत्र के वनवास के समाचार को सुनकर विचलित तो होती है
परन्तु वह धैर्य रख लेती हैं.
कम्ब रामायण ही
संभवतया ऐसी रामायण है जिसमें उन्हें अनुपम सुन्दरी के रूप में चित्रित किया गया
है. उन्हें सुकोमल, घुंघराली अलकें, बिम्बाफल सदृश अधरोष्ठवाली कोसल्या बताया गया
है.
राजा राम को जन्म
देने वाली कौशल्या का एकमात्र मंदिर छत्तीसगढ़ में है. कहा जाता है कि यहाँ का नाम
कोसल था. यहीं पर माता कौशल्या का मंदिर स्थित है. चंदखुरी में माता कौशल्या का
मंदिर जलसेन तालाब के मध्य स्थित है. इस तालाब में एक सेतु बनाया गया है. मंदिर
में कौशल्या का माता रूप ही प्रदर्शित है.
अपने पिता की एकमात्र पुत्री होने के कारण कोसल नरेश भानुमंत का साम्राज्य
भी राजा राम को ही उत्तराधिकार में प्राप्त हुआ था. इससे एक बात यह स्पष्ट होती है
कि पुत्र न होने पर पुत्री ही अपने पिता की संपत्ति की उत्तराधिकारी होती थी.
कौशल्या की
विशेषता मात्र राम की माँ होना ही नहीं है, अपितु कौशल्या की विशेषता वह स्नेह है,
जिसकी डोर में बंधे हुए भरत उनसे क्षमायाचना करने के लिए आ जाते हैं. कौशल्या को
रामचरित मानस में शप्तरूपा का अवतार भी कहा गया है.
जब वह अपने पुत्र
को वनवास जाने की अनुमति देते हुए उनकी रक्षा की बात कर रही हैं, तो हमें ऐसी
स्त्री के दर्शन होते हैं, जिसके पास ज्ञान का भण्डार है. उन्हें पता है कि वन में
क्या क्या हो सकता है, कौन कौन से हिंसक जीव होंगे एवं योग आदि के माध्यम से वह
मानसिक शान्ति की भी बात करती हैं. अत: यह भी कहा जा सकता है कि वह एक शिक्षित
स्त्री थीं, जिनके पास इतिहास का भी ज्ञान है. कौशल्या को वृत्तासुर एवं इंद्र के
मध्य हुए युद्ध का ज्ञान है, अमृत मंथन का ज्ञान है.
कौशल्या प्रतीक
है प्रेम का, स्नेह का, एवं संयम का!
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