शनिवार, 27 अगस्त 2016

समरसता की विक्ट्री

विजय के नगाड़े सिरमिया देवी को बेसुध किए जा रहे थे, ये उन्हीं की जीत के नगाड़े थे। वह अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी से रिकॉर्ड मतों से आगे चल रही थीं। मतगणना बस खत्म होने वाली थी। अब किसी भी फेरबदल की उम्मीद नहीं थी। रजिया चुनाव कार्यालय में इन नगाड़ों की अगुआई कर रही थी। सिरमिया देवी का जी आज की विजय से रो रहा था। उन्होंने कभी इस तरह जीत नहीं चाही थी, हमेशा पार्टी में रहकर पार्टी के टिकट पर जीत उनका सपना था। जिस पार्टी को उन्होंने ब्लॉक स्तर से उठाकर जिला और फिर प्रदेश स्तर पर अपने खून-पसीने से सींचा था, आज उसी के उम्मीदवार को और वह भी उनकी पार्टी के सर्वेसर्वा की बहू को हराकर, वह जीत रही थीं। उनकी आंखों में आंसू थे। वह खुद नहीं समझ पा रही थीं, यह आंसू खुशी के हैं, दुख के या विजय के? अभी छह महीने पहले तक सब ठीक था।
युवावस्था से अधेड़ावस्था तक पूरे बीस साल उन्होंने पार्टी को समर्पित किए थे। मंडल और कमंडल की राजनीति के समय में सामाजिक न्याय को लेकर बनी इस पार्टी में पहले जाति और धर्म के आधार पर कुछ नहीं था। सिरमिया देवी का मन अपने समाज के लिए, विशेषकर औरतों के लिए बहुत कुछ करने का था। ऐसे में युवा सिरमिया देवी ने सामाजिक समरसता का नारा बुलंद करने वाली इस पार्टी का दामन थाम लिया था।
पैंतालीस बरस की सिरमिया देवी इस पार्टी के महिला मंडल की जिला प्रमुख थीं। सीधे पल्ले की साड़ी पहने, ठेठ देसी अंदाज में जिंदा रहने वाली सिरमिया देवी का अपने जिले में बोलबाला था। राशन न मिलने से लेकर पति की मारपीट की बात भी औरतें सिरमिया देवी से करने आ जाती थीं। वह महिलाओं की आत्मीय थीं। हर गली-ब्लॉक में उनकी महिला टीम थी।
'सिरमिया देवी जिंदाबाद, जिंदाबाद।’ नारे उनके कानों में पड़ने लगे। उन्होंने अपने कान बंद कर लिए। उनके सामने पच्चीस बरस की सिरमिया खड़ी हो गई जिसे नेता साहब ने पार्टी में जगह दी थी। सिरमिया देवी को लगा नेता साहब उनके सामने खड़े हो कर कटाक्ष कर रहे हैं, 'अब तो अच्छा लग रहा होगा। उसी झंडे को हरा देना जिसके नीचे राजनीति सीखी, पहचान मिली। वाह सिरमिया।’
'मैंने क्या गलत किया। मैं भी तो उसूलों की खातिर ही पार्टी में आई थी। पार्टी छोड़ कर मैं तो कहीं नहीं गई न। आप ही लोगों ने भगा दिया था। आप ही लोगों ने आवाज बुलंद की थी परिवार के खिलाफ। यही कहा था न आपने कि अब जनता का राज होगा, लोकतंत्र आएगा। लोकतंत्र रटते-रटते कब आपकी पार्टी आपके परिवार की पार्टी बन गई आपको खुद भी पता नहीं चल पाया।’ विचारों में खोई सिरमिया छह महीने पहले पार्टी कार्यालय पहुंच गई। उनके परिचितों का मानना था कि उन्हें चुनाव लड़ना चाहिए। वह उस क्षेत्र विशेष की समस्या से वाकिफ हैं। उन्हें पता है कौन सी सड़क कब बनी और राशन की कालाबाजारी कौन करता है। बीस साल से समस्याओं से लड़ते-लड़ते यह सब कैसे उनके दैनिक रूटीन का हिस्सा बन गया उन्हें पता नहीं चला। पर टिकट लेना इतना आसान था क्या?
'तो क्या सोचा है आपने?’ प्रदेश प्रमुख ने पूछा था।
'हमने?’
'जी आपने। यानी नई जिम्मेदारी के बारे में। महिला मंडल की प्रांत प्रमुख की जिम्मेदारी के बारे में?’ सिरमिया सुन कर बस चुप लगा गई। तब उनकी सहयोगी रजिया बोली, 'देखिए सर...।’ 'रजिया जी, आप चुप रहें, यह हमारे और सिरमिया देवी के बीच की बात है।’
'भाई साहब आप तो जानते ही हैं, मैंने कितनी मेहनत की पार्टी को उस इलाके में खड़ा किया है। लोग मुझे वहां की नेता के रूप में देखना चाहते हैं,’ सिरमिया देवी ने संकेत में अपनी बात रखी। 'सिरमिया पार्टी के कुछ नियम हैं और हमें उन पर चलना है,’ उन्होंने भी पांसा फेंका।
'पार्टी के नियम क्या हैं। आम कार्यकर्ता काम करे, डंडे खाए और जब ब्लॉक, शहर और महानगर स्तर पर पार्टी की साख बन जाए तो एसी में बैठे लोग बाहर आएं और परिवारों के सदस्यों में टिकट बंट जाएं। मेहनत करने वाला कार्यकर्ता कहां जाएगा?’
'देखो, सिरमिया हम जानते हैं आपने मेहनत की है इसलिए आपको पद दे रहे हैं। चलिए, महिला मंडल की प्रांत प्रमुख के बजाय आपको महिला मंडल का प्रांत अध्यक्ष बना देते हैं। आप काम करती रहिए। यह पद इसलिए तो है,’ उनकी कुटिलता चरम पर थी।
'वाह भाई साहब क्या पद दिया है। अगर पद देना ही चाहते हैं तो जिला अध्यक्ष बना दीजिए,’ सिमरिया देवी ने भी तय किया था कि आज बिना साफ जवाब सुने नहीं जाएंगी। 'जिला अध्यक्ष!’ वह ऐसे चौंके जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो। 'एक औरत जिला अध्यक्ष। पूरा संगठन तबाह हो जाएगा। एक औरत को जिला अध्यक्ष पद पर बैठाने का मतलब जानती हो? हमसे राजनीति करने के बजाय महिला मंडल में राज करो,’ उनके चेहरे का काइंयापन पूरे कमरे में फैल गया। सिरमिया देवी ने भी अपनी सारी कड़वाहट समेटी और दो टूक बोल दिया, 'आप सही कहते हैं, चुनाव तो चांदी का चम्मच लिए पैदा हुए लोग लड़ते हैं। पर हम भी आपको दिखा देंगे गरीबों की ताकत।’
'ठीक है, फिर ऐसा ही सही। राजनीति में बीस बरस गुजारने के बाद तुम्हें पता ही होगा बड़े नेता विरोधियों को कैसे मारते हैं। नेता जी का काटा पानी नहीं मांगता,’ प्रांत प्रमुख के साथी व्यंग्य से बोले।
'तब ठीक है इस बार आपकी बहूरानी और हमारी दीदी के बीच मुकाबला हो ही जाने दीजिए। देखते हैं, जनता कार्यकर्ता को देखना चाहती है या महारानी को। हमें अपने बीच से नेता चाहिए राजघराने से नहीं,’ रजिया ने दबंगई से फैसला ही सुना दिया। उस दिन की भारी बहस के बाद, अनुशासनहीनता के आरोप में सिरमिया देवी को पार्टी से निकाल दिया गया। कमरे में बैठने वाले नहीं जानते थे कि उस इलाके में उनकी पकड़ थी। उस क्षेत्र की वह चहेती थीं। धरने-प्रदर्शन के अलावा कार्यकर्ताओं पर उनकी बहुत पकड़ थी। छोटे से छोटे कार्यकर्ता को वह नाम से जानती थीं। अपने क्षेत्र की हर समस्या पर उनकी नजर रहती थी। उसका हल कैसे निकलेगा यह भी वह जानती थीं। मगर फिर चुनाव लड़ना वह भी बागी हो कर। उनकी हिम्मत जवाब दे रही थी। मगर कदम बढ़ा कर वह पीछे नहीं खींच सकती थीं। अब जीत हो या हार। अपनी जद्दोजहद पर काबू पा कर आखिर उन्होंने निर्दलीय पर्चा भर दिया। सफर आसान नहीं था। पर दिन प्रतिदिन कार्यकर्ताओं के उत्साह ने उन्हें नई ऊर्जा दी। उनके साथ वह सब लोग जुट गए जिनकी मदद कभी न कभी सिरमिया देवी ने की थी। रजिया ने नेता साहब की बहू और सिरमिया देवी के बीच अपना बनाम बाहरी मुद्दा बना दिया। रजिया ने नारा गढ़ा, ‘जिले की दीदी, विधानसभा इस बार जरूर जाएगी।’ रजिया का यह नारा खूब चल पड़ा। सिरमिया देवी को सच्ची मदद मिली उन लोगों से जिसके बीच उन्होंने अपने पंद्रह-बीस बरस बिताए थे। कभी किसी की झोपड़ी टूटी तो सिरमिया हाजिर, कभी किसी की दुकान पर अवैध वसूली तो सिरमिया हाजिर। सिरमिया का न परिवार था, न कोई आगे पीछे। एक मां थी जो उनके भाई के साथ रहती थी। उन पर दर्जनों पुलिस केस थे, जो उनके संघर्ष की कहानी कहते थे। सीधे पल्ले की साड़ी और पैरों में हवाई चप्पल उनकी पहचान बन गई थी।
'दीदी बाहर तो चलिए। देखिए कितने लोग जमा हैं। सब आपको देखना चाहते हैं,’ रजिया लगभग चिल्लाती हुई भीतर आई। सिरमिया देवी बाहर निकलीं तो कार्यकर्ताओं का हुजूम था। लोगों ने उन्हें फूलमालाओं से लाद दिया। उनके समर्थन में गगनभेदी नारे लग रहे थे। शोर था, नेता साहब की बहू को दीदी ने हरा दिया। रजिया कह रही थी, 'दीदी देखो राजतंत्र हार गया, लोकतंत्र जीत गया।’

मंगलवार, 23 अगस्त 2016

किसी परछाई की भी देह साबुत नहीं थी!

आपने मठ बनाए हमने कुछ नहीं कहाआपने कहा स्त्रियाँ ऐसी होती हैंहमने मान लियाआपने कहा कविता,कहानीछंद ये होते हैंहमने मान लियाहम आपके मठ में ही रहने लगीं। हमारी दुनिया आपके मठ के ही इर्दगिर्द हो गयी। हमने गर्व से अपनी इस पहचान को सदियों तक जिया। हम कहीं मठ में ही एक कोने में रहने लगीं। उस कोने में हम अपनी कविता रचतींकहानी रचतींऔर फिर मिटा देतीं। उन्हें फलक तक ही न आने देतीआपकी आँखों तक नहीं आ सकी तो फलक क्या चीज़ है। फिर एक समय आपको भनक हुईअरेइस कोने में तो कुछ शब्द और कुछ अक्षर बिखरे हैं। आपके मठ को लगा अरे ये तो गज़ब हो गयाये कौन आ गयाआपने कहा "कोने में बहुत गंदगी हैसाफ करोहमने साफ किया और उस कोने में कभी फटा कालीन या जूट की बोरी ही बिछा ली। पर फिर भी आपको तसल्ली न हुई। आप उस कोने से सब कुछ बार बार मिटाने की जिद्द में रहे। पर आपने कुछ बरसों के बाद हमें अहसान से भर कर किराए पर एक कमरा दे दियातमाम शर्तें मुकम्मल करते हुए। पर हमने उस कमरे में अपने रंग भर दिएअपने अक्षरअपने शब्द और अपने अहसास भर दिएआप उस कमरे में आ आ कर झांकते रहे

"कहीं कोई आ तो नहीं गयानहीं साहबअपनी उधारी का हमें अहसास हैकिराए पर लिए गए कमरे में केवल मेहमान आते हैंजो पानी पीते हैं और चले जाते हैंहम किसी को यहाँ नहीं टिकाते। साहबआपने किराए का जो कमरा दिया हैउस पर चार चाँद लग जातेजो सांस लेने को थोड़ी सी हमारी साँसें भी वापस कर देते। क्या होता अगर पहचान को भी हमें दे देते? पर आपने नहीं दिया? पहचान दी तो उसमें से आधा कतरा अपने पास रखकर हमें केवल अपने मन के अनुसार ही पहचान दी। जितनी भी टुकड़ों में पहचान दी। कभी आम्रपाली के रूप में गणिका बनाया तो बाद में आते आते गणिका से उठाकर बाज़ार में बैठा दिया और आज उसी बाज़ार से छिपकर जाते हैं और हमें केवल धन से ही ढाक दिया। ज़रा एक बार उन नोटों के नीचे भी देखते कि देह से परे दिल भी कहीं देह के किसी कोने में होता है जो जीवित होता है, जिसमें स्पंदन होता है, जिसकी धड़कनें हर रोज़ आते ग्राहकों में अपना साथी खोजती हैं, पर तुमने तो ऐसा कोई भी अधिकार नहीं दिया। बस नोटों के नीचे हमारे स्त्रीत्व को दबा दिया, जिसकी राख शायद हमारी चिता के साथ मिलकर ही कहीं विसर्जित की जाती होगी। हमें जब आपने मठ के कोने से निकाल कर बाहर जाने की स्वतंत्रता भी दी तो वह भी कितने टुकड़ों में दी है, क्या आपने सोचा है कभी? नहीं आपके पास समय कहाँ है? आपके पास तो यह देखने का समय है कि हम कितने बजे घर से निकले? क्या हमने आपके मठ के प्रति अपने सभी उत्तरदायित्व का निर्वाह किया है? क्या हमारी आँखों ने वह आकाश देख लिया है, जो आपने अभी तक छिपा कर रखा हुआ था? अरे हमने वह वर्जित फल खाने की इच्छा तो नहीं कर दी? वाह, आपने क्या हमें स्वतंत्रता दी? लाज न आई आपको? झूला झूलने पर भी आपको लगा कि अरे हमारे परिधान क्या हों? कहीं से पैर तो नहीं दिख रहे? कहीं से वर्जित अंग तो नहीं दिख रहे? क्या हमारी रेखाएं हथेलियों में नई कहानी तो नहीं गढ़ रही? आप कितनी चिंताओं से घिर गए? आपने खुद को प्रगतिशील दिखाने के लिए स्वयं के परिधान तो बदल लिए? 

आपने अपने मठ का भी पूरा रूप रंग बदल लिया। उसे एकदम पूरी तरह आधुनिक बना दिया। पर आपने एक काम नहीं किया, वह जो कालीन हमने अपने कोने में बिछा रखा था, उसे आपने कुछ नहीं किया, उस पर तो एक उपेक्षात्मक द्रष्टि डाली और जैसे आपने एक मौन अट्टाहास किया और सोचा “अरे तुम भी चलोगी, इस नए संसार में मेरे साथ” पर आप एक बात भूल गए, हमारे कोने ने वह अट्टाहस सुन लिया, उसने वह चुनौती स्वीकार कर ली। कोने ने एक नई अंगड़ाई ली और बहुत ही करीने से अपना कालीन उठा लिया और वह अब रसोई से बढ़कर बाहर चलने लगा। आपने चाहा तो बहुत कालीन को थाम लें, कालीन को पकड़ लें, पर उसने तो अब आकाश देख लिया था जो आप उससे छिपाना चाहते थे। और वह अब व्यग्र था हमें उस पर बैठा कर उसी आकाश में ले जाने के लिए। उसने मेरा आंचल पकड़ा और एक ओर से आपने आँचल पकड़ा पर हाय रे, मैं तो उड़ चली अपना आंचल आपके पास ही छोड कर। देखा अपना आकाश और खो गयी, धीरे धीरे आपने हमारे जिन सपनों को दबा रखा था वह भी खिलने लगे एकदम सूरजमुखी की तरह। 

पीले अमलतास की तरह हर तरफ फैल गए। पर उस कालीन ने कहा कि हम अभी उन सपनों को तब तक पोटली में बांधे रहें जब तक कि सपनो को पूरा करने की रणनीति न बन जाए। हम हँसे- “अरे सपने और रणनीति, अरे पागल हो क्या तुम? लग रहा है कोने की धुल तुम्हारे दिमाग पर फैल गयी है” कालीन ने कहा “नहीं, मैं पागल नहीं हुआ हूँ, तुम जिसे अपना आँचल देकर आई हो,  उसके पास तुम्हारी एक पीढ़ी पुरानी है, जो उसी मठ के अनुसार ही सोचती है। तुम जाओगी अपने सपने लेकर, कोई नहीं पहचानेगा। और  व्यर्थ तुम्हें उपहास का केंद्र बनना होगा।” हम सोच में डूब गए “तो क्या करें” कालीन बोला “अभी सपनों को कहीं दबा लो दिल के किसी कोने में” हमने बात मान ली। नीचे जाकर देखा तो जैसे कालीन ने सही कहा था। हां हम उसी की तो छाया थे, हमारे जैसी वहां पर कई थी, कुछ इस पीढी की, कुछ कलियों सी खिलने के लिए आतुर, कुछ एकदम पका हुआ फूल। पर सभी के मुख पर एक ही प्रश्न- कहाँ ले गया था ये कालीन, देखा नहीं हम सबने इसे कैसे अपने अपने मठों में कोने में कितने आराम से बिछा रखा है। क्या हुआ जो उस कालीन के नीचे हमारे सपने दबे हैं? क्या हुआ जो हमारी आकांक्षाओं को असमय ही यह कोना मार रहा है? अरे क्या हुआ हम सदेह ही मृत्यु का वरण रोज़ ही करती है? कम से कम मठ के कोने में हम सुरक्षित तो हैं? हमारे सिर  के ऊपर एक छत तो है! ये सभी प्रश्न उस पर कई और कोनों में सिमटी हुई परछाइयों से आने लगे!  किसी परछाई की भी देह साबुत नहीं थी। हर देह पर कितनी दरारें थी, हम देख भी नहीं पा रहे थे।

फिर उन चेहरों में आपने ही संशय भरा, आपने ही हमारी उड़ान को गिद्ध की तरह दबोचने के लिए हमारा ही प्रयोग किया। वाह, वाह आपने हमें आपस में ही भिड़ा दिया? आप अपने मठ को सुरक्षित रखने के लिए हमारा प्रयोग किया आप ये भी भूल गए कि हम आपके मठ की प्रतिष्ठा को कभी चोट नहीं पहुंचाएंगेसदियों से ये हमारे ही खून पसीने से सिंचित हैकैसे हम उन्हें ठेस पहुंचाएंगीज़रा सोचिये तोहमने स्रष्टि के आरम्भ से ही इन्हें अपने कन्धों पर सम्हाला हैअब क्यों तोड़ेंगे इन्हें। आज भी नहीं तोड़ेंगेपर जरा हमें इंसान समझ कर हमारी साँसें वापस कर देते तो हमारे अक्षर भी हम में मिल कर खिल जाते। बाकी तो आपका मठ हमेशा सलामत रहेगाक्योंकि आने वाली पीढी के लिए हमने भी इसमें अपना समर्पण किया है। पर आपने कब हमारे समर्पण को समझा? आपने हमें आपस में लड़वाया! आपने कभी आर्थिक तो कभी मानसिक आधार पर हमें केवल कोने में समेटे रखा! जैसे ही हमारे कोने ने स्वतंत्रता का वर्जित फल खाया या ये कहें कि कुछ आपकी लापरवाही से तो शायद कुछ आपके वर्ग के कुछ लोगों की समझदारी के कारण हमारे कोने ने उसका स्वाद चख लिया, जो हमारे लिए वर्जित था! इससे आपको ठेस लगी, हां जाहिर है लगना स्वाभाविक है। हमारे उस कोने ने आपकी सत्ता को चुनौती दी। उसने कहा देखो मैं देखूंगा अपना आकाश, जो करना है कर लो। हम तो जाएंगे उस कोने में भी, हम तो जाएंगे वर्जित क्षेत्र में भी, जाओ क्या कर लोगे? आप कैसे कांप गए? और हमारी स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह लेकर आ गए। वाह साहब, आपने तो गज़ब किया। आपने एक रस्सी ली और उसे हमारी स्वतंत्रता के लिए प्रयोग करना चाहा। आपने हमारी स्वतंत्रता को केवल देह के आस पास ही समेट दिया। आपने हममे से ही एक ऐसा वर्ग खड़ा कर दिया जिसने देह की स्वतंत्रता को केवल यौन स्वतंत्रता का ही हिस्सा बना दिया। 

और फिर आपमें से एक संस्कारी वर्ग उपजा, एक कौमार्य का रक्षक वर्ग पैदा हुआ जिसने हमारे कंधे पर हाथ रखकर कहा “भय मत करो, मैं तुम्हारे कौमार्य की रक्षा करूंगा” पर हमें भय किससे था? हमें भय आपसे था। हमें भय अपनी स्वतंत्रता से नहीं था बल्कि आपकी छद्म रक्षा से था। हमारे कौमार्य पर लार टपकाते हुए हमारे कौमार्य के रक्षकों से हमें भय था। फिर आपने हमारे कोने को फिर से रक्षक बनकर उसी स्थान पर रखने का कार्य किया और इस बार तो आपका कार्य बहुत ही आसान था, आपके मठ में फिर कई कोने बन गए थे, आपने उसे अपने अनुसार समेट दिया। वाह वाह! आपके इस पौरुष को हमारा नमन। हम इधर अपने कोने को संवारने में और अपने स्थान को ही बनाए रखने व्यस्त  रहे और आपने उधर हम में से ही हमारे विरोधी तैयार कर दिए। जिन्होंने आपकी छाया तले हमारे ही विरुद्ध तलवारें उठा लीं और हमारे सपनों को छलनी कर दिया। और आपने क्या किया आप ताली बजाते रहे, उसी कोने में खड़े होकर जहाँ पर आपने हमें कभी बंद किया था। हम पाखंडों से लड़ते रहे और आपने हमें ही पाखण्ड बना दिया? हमारे सपनों को पाखण्ड बना दिया! आपने सोचा भी नहीं कि आप “फूट डालो और शासन करो” की नीति पर चलकर एक वर्ग पर शासन कर रहे हैं! क्षमा कीजिएगा, ये विवाह, संस्कार, समर्पण आदि की बात आप हमसे न कीजिएगा, याद कीजिये, विवाह से पूर्व एक बार बात करने पर आपने नाम पूछने से पहले यही पूछा था सदियों से कि हम पवित्र तो हैं न! आपने कभी मन से पवित्र होने की बात ही नहीं की। हमारे देह के उभार पवित्र हैं या नहीं? ये आपके लिए महत्वपूर्ण थे, हमारी योनि अनछुई ही थी न! ये आपके लिए महत्वपूर्ण था।

हमारे उरोज अनदेखे हैं हैं नहीं ये आपके लिए प्रश्न था? हमारा नाम क्या था? उससे क्या फर्क पड़ता था! फिर आप हमारे उन्नत उरोजों, अनछुई योनि को लेकर तृप्ति और अतृप्ति के एक ऐसे जगत में ले गए जहां पर एक ओर संतुष्टि की सांसें थी तो एक ओर असंतुष्टि की कुंठा। असंतुष्टि की पीड़ा और वह पीड़ा भी धीरे से उसी कोने का हिस्सा बन गयी। आपकी नाक से तो संतुष्टि के सितार की आवाज़ आती रही और जो उस कोने की कुंठा को और बढाती ही रही। जब सदियों की कुंठा के बाद तनिक आकाश दिखा तो उसीमें आपको हमारे कौमार्य के भंग होने की चिंता होने लगी? ये चिंता हमारे कौमार्य की नहीं थी, बल्कि ये चिंता थी, आपके अहम् की, आपके पौरुष की, यह चिंता थी जूठे होंठ की? जूठी योनि की! मन का समर्पण तो आपके लिए न तब महत्वपूर्ण था और न अब रहा था। अब तो आपने हमें पुन: संस्कार की बेड़ियों में बाँधने का प्रयास किया, पर इस बार आप चतुर निकले। कितनी ही चतुराई से आपने एक संस्कारी वर्ग खड़ा किया और उसने हमसे कहा “सुनो, सिंगार अपने रक्षक के लिए करो, सिंगार और पिटार करके जो बाहर निकलोगी, तो रक्षक ही भक्षक बन जाएगा, अपने रूप की रक्षा करो, उसे सहेजो” पर इस बार हमने पलट कर पूछ लिया “हम किसके लिए सहेजे? क्या हम खुद के लिए अपने रूप और कौमार्य को नहीं सहेज सकते?” अरे गुस्से में आपके संस्कार के नथुने फड़कने लगे? आपकी सत्ता भनक उठी! आपकी सदियों की धारणा भड़क गयी? आपने हमारा गला दबाना चाहा, पर कैसे दबाते? आपकी संतुष्टि तो केवल हमारी ही योनि की दास थी, अब आपने एक और चाल चली। आपने सोचा कि कोने को तो आकाश चाहिए तो क्यों न आकाश को ही अपने अनुसार बना लें। अब आप बाजारवाद के सितारे ले आए, देह से स्वतंत्रता का चाँद ले आए, और हमें वह चाँद दिखाया, देखो ये देह तुम्हारी है, तुम इसका कुछ भी करो, आज हमारे साथ या कल किसी और के साथ, क्या फर्क पड़ता है! आपने तो ये चाँद दिखाकर अपने लिए देह का समन्दर बना लिया और जब चाहें जिसके उभारों में खोने के लिए द्वार खोल लिए। बहुत ही शीघ्र एक वर्ग ऐसा भी आपने बना ही लिया न और अपने लिए कितनी सुविधाएं उपलब्ध करा लीं। फिर आप मूंछों पर ताव देते हुए आए और घर के एक कोने को लात मारी। हमारी प्रतिभा, हमारे सपनों को देह की ही परिधि में बाँधने का पाप आपने किया। आपके पास हमसे लड़वाने के लिए अब एक नहीं दो वर्ग थे। एक तो वह जो अपनी गुफा से बाहर आकर हमारे परिधानों पर आघात करता, प्रहार करता “अरे सारे झगड़े और सारे बलात्कार केवल इन्हीं छोटे कपड़ों के कारण होते हैं। अरे देखो कैसे समाज का माहौल इन लड़कियों के कारण बदल रहा है, हमारे संस्कारों की नदी प्रदूषित हो रही है” और हमें डसने लगते उस वर्ग के दंश। हमारी साँसें घुटने लगती। पर नहीं नहीं आपने तो अपने लिए एक और वर्ग तैयार कर रखा था जो बिकनी में आकर हमारे परिधानों पर तंज कसता। आपकी बांहों में समाते हुए हमें ऑर्थोडॉक्स कहता। और आप अपनी इस विजय पर मुस्काते। आपने हमसे लड़ने के लिए दो वर्ग बना दिए और स्वयं को शक्तिशाली कहते हैं? अरे आपसे भयभीत तो कोई भी नहीं है। आप हमसे भयभीत हैं, हमारी प्रतिभा से भयभीत हैं, हमारे सपनों से भयभीत हैं। और इस भय को आपने किस तरह से व्यक्त किया, वाह साहब बलिहारी आपकी। आपने फिर अपने ही वर्ग में बात करनी आरम्भ की “स्त्रियाँ सुनो, स्वार्थी हो गयी हैं। संस्कारी नहीं बची हैं। विवाह से पूर्व ही वे अपवित्र होने लगी हैं। ये अराजक हो गयी हैं, उन्मुक्त हो गई हैं, कुसंस्कारी हो गयी हैं, कुछ तो करना होगा।”

आपके साथियों ने हामी भरी, और एक लालच भरी द्रष्टि से आपके दाएं ओर में बैठे हुए वर्ग की ओर देखा और एक याचक की द्रष्टि से आपके बाएँ ओर बैठे वर्ग की ओर देखा। दाईं ओर वह था जो बिकनी में आपकी बाहोंमें हिलोरे लेता था तो बाईं ओर वह था जो संस्कारों की रक्षा करने के लिए था। और आप सब मिलकर किसे परास्त करने में लग गए, हमें। जो झुकने के लिए तैयार नहीं, अनुचित शर्तों को मानने के लिए तैयार नहीं। हम विमर्श के माध्यम से आपसे बात करना चाहती हैं तो आप हममें से कमजोर और उससे कमजोर वर्ग को छांट कर उन्हें हमारे विरुद्ध प्रयोग करते हैं। नहीं साहब अब तो ये नहीं चलेगा। अब तो आपको इस छद्म युद्ध को समाप्त करना ही होगा। आपको अपने मठ को सुरक्षित रखने के लिए छल बल का सहारा लेना बंद करना होगा। अब हमें अभिव्यक्ति की वास्तविक स्वतंत्रता चाहिए। हमें स्वतंत्रता चाहिए, पर हम परिवार से परे स्वतंत्रता नहीं चाहतीं। आप ने शायद समझा ही नहीं, हममें आत्मनिर्भरता है, पर हम प्रेम भी करते हैं और प्रेम देना भी चाहते हैं, पर केवल थोड़ी स्वतंत्रता के साथ, हम चाहते हैं आप हमारी सांसों को केवल सांस ही न समझें, आप हमारी साँसों को भावनाओं का स्पंदन समझें। हमारे देह के उभारों को केवल देह के उभार ही मात्र न समझें, उन्हें सदियों से चली आ रही कामनाओं का वह पाश समझें जिसके सम्मुख कुबेर का खजाना भी कुछ नहीं है। हमारे आलिंगन को प्रेम, स्नेह आदि सबका मिश्रित रूप समझें। हमारी स्वतन्त्रता से आपका अस्तित्व संवरेगा, पर आप को लगता है कि हमारी स्वतंत्रता से आपका अस्तित्व ही खतरे में आ जाएगा, और इसी भय के कारण आप हम पर तीन ओर से वार कर रहे हैं। 

देखिये, इस चक्कर में आपका मठ ढहा जा रहा है, आप अपने मठ की दीवारों की रक्षा करने के लिए हथियार लिए बैठे हैं और किससे ढह रहा है, हमसे? नहीं वह ढह रहा है आपसे, आपकी निराशा से, आपकी प्रतिहिंसा से, आपके इस भय से कि हमारी स्वतंत्रता से आप खतरे में आ जाएंगे। जरा अपनी नज़रें उठाकर हमें एक बार देखिये तो सही, एक बार विश्वास के साथ हमें देखिये तो सही। हां पहल तो हो रही है, कुछ कदम आपके वर्ग से आ रहे हैं। पर वे शायद अभी नाकाफी हैं। हमारा कोना तो आकाश पर अपनी मज़िलों को पाने के लिए उड़ चला है, अब आप हमारे कोने पर फूल माला चढ़ा कर श्रद्धांजली दे दीजिए, क्योंकि अब वह कोना कोना नहीं रहेगा, अब उस कोने की रोशनी दुनिया में फैलेगी? आप रोकेंगे तो भी रोक न सकेंगे पर एक ही अनुरोध हैं कि हमें केवल देह के आधार पर आंकना बंद कर दें।  हमें केवल योनि समझना बंद कर दें, हमें आपस में लड़वाकर आप हमारी बहुत हानि कर चुके है, पर हां, अब अभिव्यक्ति नहीं रुकेगी, अब अभिव्यक्ति नहीं रुकेगी। हम मेहंदी रचेंगी तो हम देह के अपने आयाम भी रचेंगी। हमें देह पर अधिकार इसलिए नहीं चाहिए क्योंकि हमें कई लोगों से देह साझा करनी है, अपितु हमें देह पर अधिकार इस लिए चाहिए जिससे हम देह को महसूस कर सकें। देह के प्रति आप हममें कोई शुचिता बोध न दें, पवित्र देह और अपवित्र देह से परे हमारी अभिव्यक्ति की एक दुनिया है उसे समझें। हमें मर्यादा की डोर में बाँधने के स्थान पर क्यों न मर्यादा की ही डोर को तनिक ढील दे दें। न तो आप ही इससे छोटे हो जाएँगे और न ही मठ का गुम्बद हिलेगा। मठ आपका है बस हमने अपने लिए अपने अनुसार एक राह बना ली है। अब हम मठ में कोई कोना नहीं मांगेंगे, अब हम अभिव्यक्ति का अधिकार भी नहीं मांगेंगे। हम बोलेंगे, हम लिखेंगे, जब आपने हमें कोना दिया था तभी हमने अपने  अक्षरों का संसार उसमें बना लिया था और अब तो हमारे पास आकाश है, कहाँ देह की सीमाओं में बांधकर हमें कुंठाग्रस्त कर सकेंगे? नहीं अब आप नहीं कर सकेंगे? हम उठ चले हैं देह बोध से परे, देह के प्रति हमारे मन में अब कोई कुंठा नहीं है। हम अपनी कूपमंडूकता से ऊपर उठ चुके हैं। आपके मठ की नींव में मट्ठा डालने का पाप हमने न कल किया था और न ही आज करेंगे बल्कि उस मठ को संवारेंगे, मिल कर। बस आप अपनी कुंठा का त्याग कर दें।

साहब, मांगेंगे नहीं अब करेंगे। खुल कर खुद को अभिव्यक्त, जो नियम हमारे अनुकूल नहीं होंगे हम उन्हें तोड़ेंगे।  आप इस के लिए हम पर जो भी आरोप लगाएं, पर अब मठ में हमारे पसीने की भी गंध होगी, जो आपको हर क्षण हमारे अस्तित्व का अहसास कराएगी।

शनिवार, 20 अगस्त 2016

इंटरनेट और स्त्री चरित्र पर प्रश्नचिन्ह : आप देह की देहरी बनाते रहिये, हम देहरियों को लांघकर बढ़ते रहेंगे आगे

तकनीक ने हालांकि हमारी ज़िन्दगी को बहुत ही सरल बना दिया है. पलक झपकाते ही सात समंदर पार के लोग हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा बन जाते है. सोशल मीडिया ने स्त्री को अपने विचार रखने का एक नया मंच दिया है. पहले जहाँ वह अपने विचारों को बताने से हिचकती थे, वह अब खुलकर अपने विचार रखने लगी है.
इन्टरनेट ने स्त्रियों के लिए स्वतंत्रता के नए द्वार खोले हैं, पर हां इसका एक बहुत ही बड़ा नुकसान भी हमारे सामने आया है, बढ़ती हुई पोर्न साइट्स ने स्त्रियों को बदनाम करना बहुत ही सरल कर दिया है. कुछ भी नहीं करना बस, उनका नाम किसी भी पोर्न साईट पर डालना है और जैसे ही एक दो फोन आने लगे, स्त्री घबराकर कुंठित होने लगेगी. और जिसने भी ये काम किया होगा उससे घबराकर हार मान लेगी.
हो सकता है कुछ ही मामलों में ऐसा होता हो. पर अब स्थितियां भिन्न हैं क्योंकि स्त्रियों में लड़ने की ताकत आ रही है. पर हाँ, ये शोर मचाने से नहीं होगा, नहीं तो कौमार्य की बोली लगाने वाले बहुत हैं. पहले एक सच्ची घटना के बारे में बात करते हुए आगे बढ़ेंगे. (गोपनीयता बरतने के लिए नाम नहीं दे रही हूँ).
मेरी सहेली एक बहुत ही बड़े कोर्पोरेट में नौकरी करती थी. पहनावा एकदम भारतीय यानी साड़ी या सूट रहता था. ऑफिस का ही एक व्यक्ति जो दुर्भाग्य से उसी विभाग में था जो उससे काफी अश्लील बातें करता था.
उसने हमेशा इग्नोर किया, एक दिन उसने उससे कहा “मैडम, जो पजामी आप पहन कर आई हैं, उसमें पता नहीं चलता कि लिखा क्या है?” डिज़ाईनर पजामी थी, उसकी  एक मित्र मुम्बई से वह सूट लाई थी. उसमें कुछ अक्षरों जैसी डिजाइन थी. और यह बात उन सज्जन ने पूरे विभाग में सबके बीच में कही. लगभग पचास लोग और हॉल में ठहाके लगने लगे.
द्विअर्थी मुस्कान सबके चेहरे पर फैलने लगी. आखिर स्त्री के साथ द्विअर्थी मजाक हो रहा है, तो पचास में से चालीस लोग तो आनंद उठाएंगे ही. सुनते ही उसके अंदर जो आग लगी, उसने कहा “सर, मेरी पजामी में क्या लिखा है वह अपने केबिन से देखने की जगह ये देखोगे कि मैंने MIS में क्या लिखा है, तो शायद मेरे लिए काम थोड़ा कम हो जाएगा.”
पिनड्राप साइलेंस जिसे कहते हैं वह पूरे हॉल में हो गया. कई महिला सहकर्मियों ने उसे सलाह दी, कि वह ऐसा न करे, क्योंकि वह डायरेक्टर का मित्र है. पर वह नहीं डिगी. कुछ दिनों के बाद उसके एक्स्टेंशन पर अजीबो गरीब फोन आने लगे, जैसे “रात को समय काटे नहीं कट रहा तो हम आ जाएं” और अश्लील गालियाँ. उस समय वह पांच माह की गर्भवती थी. उसे समझ में नहीं आया. दो दिन तक यही सिलसिला चला, फिर उसे लगा कुछ तो गड़बड़ है. इंटरनेट पर चेक किया. तो पता चला कि किसी ने उसका नाम एक पोर्न साईट पर डाल दिया था. और बहुत ही अश्लील सन्देश डाला था.
उसके पाँव के नीचे से जमीन जैसे किसी ने खींच दी. जैसे किसी ने भरी सड़क पर उसकी साड़ी उतार दी हो और वह द्रौपदी की तरह असहाय हो गयी है. दो पल तो उसे लगा कि क्या करूँ? अपमान के आंसूं उसकी आँखों से बह निकले, पर अगले ही क्षण जैसे उसके अन्दर से किसी ने आवाज़ दी, कि रोना क्यों? उसकी क्या गलती? उसने आंसू पोंछें, और घर आ गयी.
अपने भाई को फोन किया जो वकील है, उसने कहा पहले तो घबराना बंद करो, कल जाओ साइबर सेल में शिकायत दर्ज कराओ, और मुझे बताओ. असली संघर्ष फिर आगे वाले तीन दिन का था. वह पांच माह का गर्भ लेकर पुलिस स्टेशन जाती क्या? अगले दिन ऑफिस पहुँच कर बॉस को बताया, बॉस ने उन सज्जन को बुलाया, तो उसने सबसे पहले कुटिल मुस्कान लाते हुए कहा “मैडम, आपके किसी पर्सनल दुश्मन का काम होगा” उसने कहा.
“सर, पिछले तीन महीने की फोन लिस्ट निकालो और देखो, अगर मैंने एक भी पर्सनल फोन किया होगा तभी मेरे दोस्तों के पास होगा यह नंबर, नहीं तो यह ऑफिस से ही किसी की हरकत है.” वह झेंप गया.
बोला “इस लाइन को बंद करा देता हूँ, खुश” उसने कहा “नहीं, खुश नहीं, मुझे ऑफिस से लीगल हेल्प चाहिए, कि कैसे इस वेबसाईट के खिलाफ कदम उठाना है” अब बारी उसके बॉस के चौंकने की थी. बोले “क्या बात है? तुम ऐसी हालत में पुलिस के पास?” उसने कहा “सर, ये मेरा चरित्र हनन है, किसी ने अपनी शरारत से मुझे एक वैश्या बना दिया है, और आप चाहते हैं, मैं कोई कदम न उठाऊँ? मैं पुलिस में जरूर जाऊंगी, आप ऑफिस से लीगल मदद दिलाएं या फिर मैं खुद करूँ?”
फिर लीगल टीम ने उसे समझाया “मैडम, ये आपके चरित्र के बारे में गलत सिग्नल देगा, कि कैसा कैरेक्टर है?” उसने कहा “मेरा कैरेक्टर कैसा है, ये आप न मुझे समझाएं, मेरी मदद करें. मुझे साइबर सेल से शिकायत कराने में मदद करें. अपने कैरेक्टर के बारे में मुझे किसी से कोई प्रमाणपत्र नहीं चाहिए?, वैसे भी चरित्र और शरीर की पवित्रता दो अलग चीज़ें हैं” जैसे एक छन्न से किसी ने कोई शीशा तोड़ दिया हो.
अरे गज़ब, एक कॉटन की साड़ी पहनने वाली महिला ऐसी भी हो सकती है, शायद उन मॉडर्न स्कर्ट पहनने वाली लड़कियों ने सोचा नहीं होगा, जो उसे शरीर और पवित्रता का सम्बन्ध समझाने का प्रयास कर रही थी. उसे हर तरह से समझाया गया कि पुलिस में जाने से उसके चरित्र पर उंगलियाँ उठेंगी, और वह दुनिया के सामने चरित्रहीन साबित हो जाएगी.
कितना आसान होता है, पुरुषों के लिए किसी भी स्त्री को चरित्रहीन ठहरा देना. बस उस एक व्यक्ति के कारण मेरी सहेली वैश्या बनने की कगार पर खड़ी थी, और इस द्वन्द के बीच में से पेट में भी जो जीव था वह हाथ पैर चला कर अपनी उपस्थिति का अहसास कराता और सिर से लेकर नीचे तक पूरे बदन में दर्द और अपमान की एक तीव्र लहर दौड़ जाती. उफ, वे तीन दिन, और उन तीन दिनों में पूरे ऑफिस वालों की आँखों का सामना. उसने सब कुछ छोड़ कर न्याय पाने का मार्ग अपनाया.
उसने साफ मैनेजमेंट से कह दिया, किसी ऑफिस के ही व्यक्ति का काम है, क्योंकि ऑफिस का नंबर दिया है. अगर मेरा मित्र करता कोई तो मेरा मोबाइल नंबर देता. ये बात मैनेजमेंट को समझ में आई. और अंतत: पांच दिन बाद उसे पुलिस के पास जाने की व्यवस्था ऑफिस से ही की गयी. उसने शिकायत दर्ज की. हालांकि उसे पता था कि किसने किया, पर मैनेजमेंट ने इसी शर्त पर उसे पुलिस के पास जाने दिया कि रिपोर्ट नामजद नहीं होगी, क्योंकि ऑफिस का नाम बदनाम होगा.
दो दिन के बाद उसके पास पुलिस से फोन आया कि उन लोगों की पहचान कर ली गयी थी जिन्होंने उस नंबर पर फोन किया था और उन लोगों की सम्बन्धित थानों में इतनी ठुकाई हुई कि वे कभी शायद इंटरनेट को ही हाथ न लगाएं और उसके एक सप्ताह बाद उसे पता चला कि वह वेबसाईट भी बंद हो गयी. और इसी बीच में उससे उन्हीं सज्जन व्यक्ति ने कहा “मैडम, आपका नाम अब उस वेबसाईट पर नहीं है”.
उसने कहा “सर, पुलिस का डंडा होता ही ऐसा है, अच्छे अच्छों को गायब कर देता है और ये तो वेबसाईट पर मेरा नाम था”. ये एक सप्ताह का समय उसके लिए एक ऐसे संघर्ष के रूप में सामने आया जिसमें उसके चरित्र पर उंगली उठी, उसके चरित्र हनन का प्रयास हुआ और मैं कहूंगी कि चरित्र हनन हुआ. उसे वैश्या बनाने में उस व्यक्ति ने कोई भी कसर नहीं छोडी.
पर उसके इस एक सप्ताह के संघर्ष का ये परिणाम हुआ कि उसे पुलिस वालों ने भी धन्यवाद व्यक्त किया कि आपके साहस के कारण न जाने कितनी लड़कियों के साथ खिलवाड़ रोका जा सका और उस ऑफिस में भी महिला दिवस के अवसर पर महिलाओं को कोर्पोरेट में उनके सुरक्षा नियमों और आत्मरक्षा के गुर सिखाए गए.
यहाँ पर इस किस्से को बताने का मेरा उद्देश्य केवल इतना ही है कि स्त्रियों को अब बदनाम करना कितना सरल और सुगम हो गया है, कितने नए नए मार्ग खुल गए हैं. उन्हें आप केवल देह के कारण चरित्रहीन साबित कर दें, क्योंकि आप किसी से बौद्धिक रूप से नहीं जीत सकते तो आप उसे ऐसे हराइये. आप उसे दुनिया की नज़र में ऐसे चरित्रहीन साबित कर दें और वह इस कारण घर से ही बाहर न निकल सके.
जैसा पहले होता था, दुपट्टा खींच लो और उसे हरा दो. पर समय के साथ स्त्रियों ने जैसे ही घर की चौखट लांघ कर स्वयं को स्थापित करना शुरू किया तो जैसे आपकी तो सत्ता ही हिल गयी और आपने उसे अपमानित करने के नए नए तरीके खोज लिए. जब आप उसे प्रतिभा से नहीं परास्त कर सके तो आपने छल का सहारा लिया पर आप भूल गए कि अभी वह द्रौपदी की तरह केवल श्राप ही नहीं देगी बल्कि वह शस्त्र भी स्वयं ही उठाएगी.
वह शरीर को पवित्र मानती है, पर उस पवित्रता को लेकर रोएगी नहीं. अगर आप केवल शरीर को लेकर उसे दोराहे पर खड़ा करेंगे या फिर आप अगर ऐसा कुछ करेंगे जिससे उसे अपने शरीर को लेकर किसी अपमान का सामना करना पड़े, उसमें कुंठा उत्पन्न हो तो अब वह नहीं करेगी.
अब वह अपने शरीर से जुड़ी किसी समस्या को एक टैबू नहीं बनाएगी. वह लड़ेगी, वह अब आपसे अपने शरीर के बारे में प्रमाणपत्र हासिल नहीं करेगी. क्या कहा, फिर लोग उसे चरित्रहीन मानेंगे? तो चरित्रवान मान कर ही क्या करते हैं? आप अगर किसी स्त्री को चरित्रवान मानते हैं तो क्या आपका मन उसे भोगने का नहीं होता?
अगर हां, तो भोगा आपने है उसे अपने मन में, अपवित्र तो आप हुए, उसमें स्त्री का क्या दोष? स्त्री को आप जानते हैं कि केवल मनोबल ही तोड़कर हरा सकते हैं, तो आपने इस तकनीक का प्रयोग स्त्री का मनोबल तोड़ने के लिए कर दिया. और कुछ हद तक आप इसमें सफल भी रहे हैं. आज कुछ स्त्रियाँ भय खाने लगी हैं. भय खाने लगी हैं इंटरनेट के प्रयोग करने से. वे भय खाने लगी हैं इस तकनीक से. उन्हें भय है निजता खोने का और सबसे अधिक भय है उन्हें अपने चरित्रहीन होने का.
कितना आसान है, सोशल साईट से किसी का भी चेहरा लेकर उसे किसी नग्न तस्वीर के शरीर पर लगाना. और आजकल तो ये बदला लेने का बहुत ही सरल माध्यम हो गया है. स्त्री के कोमल ह्रदय के अन्दर देह के प्रति शुचिता का भाव इस कदर व्याप्त है कि वे सोच ही नहीं पाते इससे इतर.
घर के अन्दर जिन छोटी छोटी बच्चियों के साथ गलत होता है, उसमें भी देह के प्रति जुड़ी शुचिता होती है. मेरी एक सखी थी, जब हम सब अपनी किशोरावस्था में कदम रख ही रही थी, तो उसके साथ हादसा हुआ और वह अपने में ही सिमट गयी. जब वह सो रही थी तो उसके फुफेरे भाई ने उसके उभरते हुए वक्षों को मुट्ठी में लेकर एकदम से मसल दिया. उसने आँखें खोलकर डरकर देखा तो उसकी रजाई में उसका फुफेरा भी घुसा हुआ था. और उसके वक्षों को कस कर मसल रहा था. और उसकी जींस खोलने की कोशिश कर रहा था.
वह क्या करती? उसने आँखें खोली, उसका भाई बोला “अरे आप जाग रहे हो, सॉरी” और कहकर वह भाग गया और वह रह गयी, अपनी अस्तव्यस्त सांसों को सम्हालती हुई. एक ऐसे भय से कांपती हुई जिसे वह किसी को बता भी नहीं सकती थी. अगले दिन जैसे ही उसने अपनी बुआ से कहा, उसकी बुआ ने उसे ही चरित्रहीन ठहरा दिया, मात्र तेरह वर्ष की लड़की, और चरित्रहीन, क्या शब्द, क्या गाली? उसकी बुआ ने या घर वालों ने एक बार भी  यह नहीं सोचा कि उसके कोमल मन पर जो प्रभाव पड़ा है, उसका परिणाम क्या होगा?
हालांकि मैं उस समय भी बहुत लड़ाका थी तो मैंने बहुत समझाया उसे, कि जाओ और सबके सामने अपने भाई के मुंह पर थप्पड़ लगाकर सबक सिखाओ, जो तुम्हें सबके साथ मिलकर चरित्रहीन कह रहा है, पर वह नहीं कर सकी.
कैसा समाज है? कैसे लोग हैं हम? हम आखिर चाहते क्या हैं? स्त्री को केवल देह तक मानने की जो हमारी विचारधारा है कब बदलेगी? कब हम मानेंगे कि स्त्री भी एक इंसान है? उसकी भावनाएं हैं. आपने उसे अपमानित करने के जो नए तरीके खोजे हैं, उससे अब वह अपमानित होने वाली नहीं है. हाँ वह एक पल को झिझकेगी कि कैसे वह विरोध करे? कैसे वह विद्रोह करे? पर वह विद्रोह करेगी? उसे आप जितना देह के आसपास लाएँगे वह उतना ही देह के सिद्धांतों का विरोध करेगी. आपने देखा होगा आप स्प्रिंग को जितना दबाते हैं वह उतना ही ऊपर जाती है.
और अब आपने उसे दबाने का घिनौना कार्य तकनीक के हवाले कर दिया? आपको तनिक भी लाज न आई अपनी अकर्मण्यता छिपाने में? आपने कितने सहज तरीके से कह दिया कि अरे आपका नाम तो पोर्न वेबसाईट में है, तो आप कैसे जमाने को मुंह दिखा पाएंगी? पोर्न वेबसाईट में मेरा नाम है, ये बात पुरुषों को कैसे पता चली? क्योंकि देह के भूखे आप हैं? देह के पुजारी आप है! देह के आसपास केवल आप ही घुमते हैं हम नहीं!
अगर आपमें देह की भूख नहीं है तो आप पोर्न वेबसाईट पर क्या करने जाते हैं? जाहिर है भजन गाने तो जाते नहीं होंगे? आप अपनी कुंठा को शांत ही करने जाते होंगे? पर आपने पोर्नवेबसाईट पर जाने का आरोप किस पर लगा दिया? स्त्री पर? चरित्रहीन किसे बना दिया? स्त्री को? वैश्यालय में जाकर किसी का शरीर खरीदने वाला तो चरित्रवान रहा पर शरीर बेचने वाली चरित्रहीन हो गयी?
कैसी चतुरता से आपने केवल पवित्रता का पैमाना देह कर दिया और हमें उस सलीब पर टांग दिया. और आप चाहते हैं कि हम अब भी टंगे रहें, नहीं अब नहीं. अब आप चाहें तकनीक का सहारा लेकर हमें बदनाम करने का प्रयास करें या फिर किसी और का, अब हम बदनाम होने वाले नहीं हैं. हम लड़ेंगे अब.
देह की सीमाओं से परे हमारा चरित्र है, और आप जो किसी भी स्त्री की आत्मा तक को भोगने की ख्वाहिश करते हैं, हमें पवित्रता की परिभाषा समझाएँगे, तो हम ऐसे किसी भी चरित्र प्रमाणपत्र को लेने से इंकार करते हैं. मैं विद्रोह करती हूँ, मैं ऐसे हर उस प्रमाणपत्र को जलाती हूँ, जो केवल मुझे मेरी देह के आधार पर चरित्र का आंकलन करता है.
आप हर उस माध्यम का सहारा लेकर हमें बदनाम करने का प्रयास करते रहें, हम अब इतने वर्षों के संघर्ष की जमीन छोड़ने के लिए तैयार नहीं. आप बदनाम करिए, हम प्रतिकार करेंगे. और अब हम इस बात को भी स्वीकार नहीं करेंगे कि अमुक लड़की शराब पीती है, छोटे छोटे परिधान पहनती है, अत: वह चरित्रहीन है. आप ही इंटरनेट पर बैठकर उसके छोटे छोटे कपड़ों को फोटोशोप से और छोटा करते हैं. है कि नहीं? और उसके अंत:वस्त्रों की रेखाओं को भी देखना चाहते हैं. आप अपनी कुंठा शांत करना चाहते हैं.
पिछले साल एक अभिनेत्री के क्लीवेज पर बहुत विवाद हुआ था. अपने तकनीक के माध्यम से इस प्रकार ज़ूम करके दिखाया कि उस अभिनेत्री का भी दर्द झलक आया. पर आपको कहाँ परवाह है, स्त्री मन के दर्द की. आप तो आप हैं.
पर अब करने का समय आ गया है. अब आप देह की देहरी बनाते रहिये, हम उन देहरियों को तोड़कर आगे बढ़ते रहेंगे. हम जाएंगे आगे, आपकी हर प्रकार की कुंठा से बहुत दूर, आपकी उम्मीदों से बहुत आगे. आप बनाते रहिये षडयंत्र, और हम हर छलावे को तोड़कर आगे बढ़ेंगे.
इंटरनेट पर बैठकर जहाँ हम अपने लिए आकाश खोजेंगे तो वहीं अब यह आप पर है कि आप इसे हमारी अभिव्यक्ति को रोकने के रूप में प्रयोग करना चाहते हैं या फिर अपने लिए उन्नति के द्वार खोलने के लिए. सोचिये जरा. बांचिये जरा, तब तक हम एक बूँद सांस लेकर आते हैं, आई मीन, फेसबुक और ट्विटर पर चहचहा कर आते हैं.
– सोनाली मिश्र

शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

एम्बर्स (रेडियो के लिए एक नाटक)

सैम्युअल बेकेट

एम्बर्स
(रेडियो के लिए एक नाटक)

समंदर की आवाज़ नेपथ्य में धीरे सुनाई पड़ रही है
हेनरी के जूते बजरी पर हैं। वह रुकता है
समंदर की आवाज़ अब तेज हो रही है

हेनरी: चलो  (समंदर की आवाज़ तेज है) चलो! (वह आगे बढ़ता है, जूते रेत और बजरी पर हैं, जैसे ही वह आगे बढ़ता है)। रुको। (जूते बजरी पर ही हैं, जैसे ही वह आगे बढ़ता है आवाज़ तेज होती है), रुको! (वह रुकता है। समन्दर और थोडा तेज होता है), नीचे (समंदर की आवाज़ और तेज होती है), नीचे! (जैसे ही वह बैठता है वैसे ही रेत और बजरी फिसलती है, समंदर अभी भी दूर है, जब भी विराम का संकेत होता है, तब वह दूर से सुनाई पड़ता है) मेरे पीछे कौन है? (विराम)। क्या एक अंधा और बेवकूफ बूढ़ा आदमी। (विराम)। जैसे कि वह मरा ही न हो (विराम)। नहीं, शायद वह कब्र से उठकर मेरे साथ, इस अजनबी जगह पर रहने के लिए आ गया है। (विराम)। क्या वह मुझे सुन सकता है (विराम)। हां, उन्हें मुझे सुनना ही चाहिए (विराम)। मुझे जबाव क्यों नहीं देते? (विराम), नहीं वह मुझे जबाव नहीं देते (विराम)। बस हर समय मेरे साथ ही रहते हैं (विराम)। जो आवाज़ सुनाई दे रही है, वह समंदर की आवाज़ है। (विराम, आवाज और तेज हो रही है)। मैंने कहा कानों में जो आवाज़ आ रही है वह समंदर की है, हम समंदर के किनारे पर बैठे हैं (विराम)। यह मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि आवाज़ बहुत ही अजनबी है, समंदर की आवाज से एकदम अलग, कि उसे जब तक आप देखेंगे नहीं तब तक आपको पता ही नहीं चलेगा कि आखिर यह था क्या। (विराम) हूव्स! (विराम, आवाज़ तेज होती है) हूव्स (हूव्स के कड़ी सड़क पर चलने की आवाज़ आती है। वे धीरे धीरे दूर होते जाते हैं। विराम) फिर से! (पहले की तरह हूव्स। विराम, उत्साह से) इसे समय को बताने के लिए प्रशिक्षित करो! इसमें स्टील की नाल लगाओ । जूते पहनाओ और यार्ड में बांध दो, पूरे दिन इस पर नाल लगाओ! (विराम)। एक दस टन मैमथ जिंदा होकर वापस आ गए हैं, उनमें स्टील की नाल लगाओ और इस दुनिया को कुचलने दो! (विराम) इसे सुनो (विराम)। अब रोशनी को सुनो, तुम्हें तो हमेशा ही रोशनी पसंद थी न, तुम कभी नहीं चाहते थे कि दोपहर के बाद शाम आए, न ही अपनी परछाई और न ही समंदर का कोई किनारा और न ही कोई द्वीप। (विराम)। तुम कभी भी खाड़ी के इस तरफ नहीं जिए, तुम हमेशा चाहते थे कि शाम को नहाते समय सूरज भी समंदर में गोता लगाए। पर जब मुझे तुम्हारा पैसा मिला, मैं विचलित हुआ, जैसा तुम्हें पता होगा (विराम)। हमें कभी भी तुम्हारा शरीर नहीं मिला, क्या तुम जानते हो कि हम एक बेमतलब से समय में मौत के प्रमाण में उलझकर रहा गए थे, उन्होंने कहा कि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि तुम हम सबसे कहीं दूर भाग गए हो, और किसी दूसरे झूठे नाम से अर्जेन्टाइना में जिंदा हो और मेरी मां पर इससे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।  (विराम)। मैं इसके मामले में आप की ही तरह हूं, मैं इससे दूर नहीं रह सकता और पर मैं इसके अंदर नहीं गया कभी, नहीं शायद आपके ही साथ मैं इसमें गया था (विराम)। केवल इसके नज़दीक। (विराम)। आज यह शांत है, पर मैं इसे अक्सर घर में सुनता हूं, सड़क के किनारे चलते हुए बात शुरू कर देता हूं, ओह, इसमें बाधा डालने के लिए बहुत तेज तेज, ऊंची आवाज़ में, कोई भी ध्यान नहीं देता (विराम)। पर अब मैं आपसे बात करूंगा, कोई फर्क नहीं पड़ता मैं कहां था, एक बार मैं इन सब अभिशप्त चीज़ों से पीछा छुड़ाने के लिए स्विटज़रलैंड भाग गया था, और जब तक मैं वहां था ये रुका नहीं, मैं पार न पा सका (विराम)। मुझे किसी की जरूरत नहीं है, केवल मैं ही काफी हूं, कहानियां हैं, उनमें से एक है बोल्टन नामक वृद्ध व्यक्ति के बारे में, मैंने उसे कभी ख़त्म नहीं किया, मैंने उनमें से किसी को भी ख़त्म नहीं किया, मैंने कभी किसी को ख़त्म नहीं किया। बस सब कुछ अपने आप ही हमेशा के लिए चला गया (विराम) बोल्टन (विराम, आवाज़ तेज होती है) बोल्टन! (विराम)। और आग से पहले (विराम)।  आग के अपने पूरे लाव लश्कर के आने से पहले ही सभी लटकन टूट चुकी हैं और कोई रोशनी भी नहीं है केवल आग की रोशनी है, उसमें बैठा हुआ................नहीं नहीं अँधेरे में वह आग से बचने वाले कंबल में लिपटा हुआ खड़ा है, चिमनी के तख्ते पर अपने हाथों के साथ और उसकी बाहों पर उसका सिर है, आग के अपने लाल ड्रेसिंग गाउन पर पहुँचने से पहले अँधेरे में खड़े होकर इंतज़ार कर रहे हैं, कोई भी आवाज़ नहीं है, बस केवल आग की ही आवाज़ है। (विराम) अपने लाल रंग के ड्रेसिंग गाउन में खड़े होकर वह उसी तरह आग के पास जा सकता है जैसे जब वह बच्चा था, नहीं नहीं वह उनके पजामा हैं जो अँधेरे में खड़े होकर इंतज़ार कर रहे हैं, कोई रोशनी नहीं है केवल आग है, नहीं नहीं कोई आवाज़ नहीं केवल आग की ही आवाजें हैं, वह बूढ़ा व्यक्ति बहुत बड़े संकट में है (विराम)। फिर दरवाजे पर घंटी बजाता है और जैसे ही वह खिड़की पर जाता है और लटकनों के बीच देखता है, वह बूढ़ा आदमी, बहुत बड़ी और मजबूत, सर्दियों की चमकीली रात, हर तरफ बर्फ, थोड़ा ठंडा और सफेद संसार, बोझ से तले देवदार और फिर जैसे ही बाजू घंटी बजाने के लिए ऊपर जाती है, पहचानता है ..................... होलोवे ....................(लम्बा विराम).............................या होलोवे, पहचानता है, होलोवे, नीचे जाता है और खोलता है (विराम) बाहर सब शांत है, ठहरा हुआ है, कोई आवाज़ नहीं है, अगर कान लगाकर सुनेंगे तो कुत्ते की चेन या टहनी की आवाज़ सुनाई देगी, सफेद संसार, होलोवे अपने छोटे काले थैले के साथ, कोई आवाज़ नहीं, काफी ठंडक है। पूरा चाँद छोटा और सफेद, होलोवे के जूतों के कुटिल निशान, लायर में वेगा बहुत ही हरे थे। (विराम)। लायर में वेगा बहुत ही हरे थे। फिर उनमें ये बातचीत कहाँ हुई, सीढ़ियों पर, नहीं नहीं ये सब कमरे में हुआ, ये बात कमरे में हुई “मेरे प्रिय बोल्टन, अब आधी रात हो गयी है, तुम्हारी कृपा होगी अगर..................” चुप्पी, बोल्टन “कृपया कृपया!”। सन्नाटा, मुर्दा सन्नाटा, कोई आवाज़ नहीं, केवल आग, कोयला जल रहा था, कम्बल में लिपटा होलोवे, अपने कूल्हों को गर्म करने की तैयारी में था, बोल्टन, बोल्टन कहाँ है, कोई रोशनी नहीं, केवल आग, बोल्टन खिड़की पर है, उसके पीछे लटकनें हैं, वह उन्हें अपने हाथ से पकड़ता है, देखता है, सफेद संसार, यहाँ तक कि पहाड़ों की चोटियां, उनके शिखर, पत्ते बर्फ से सफेद पड़ चुके थे, और सबसे असामान्य है घर की शांति, जहां कोई आवाज़ नहीं है, केवल आग है, कोई लपट नहीं है केवल अंगारे हैं। (विराम) अंगारे (विराम)। उछलते, कूदते, दोबारा गिरते हुए, लुकाछिपी करते हुए, अजीब भद्दी डरावनी आवाज़ निकालते हुए, होलोवे अब कालीन पर, वह बूढ़ा आदमी, छह फीट, ह्रष्ट-पुष्ट, टाँगे अलग और पीठ के पीछे उसके हाथ उसके पुराने मैक्फरलेन के पिछले हिस्से को पकडे थे, खिड़की पर बोल्टन, लाल ड्रेसिंग गाउन में वही वृद्ध व्यक्ति, लटकन के विपरीत पीछे, दरार को चौड़ा करने के लिए हाथ फैला रहा था, सफेद संसार, भयानक संकट, कोई आवाज़ नहीं केवल और केवल अंगारे।, मरते हुए, रोशनी में लिपटी हुई मौत के आगोश में जाते, होलोवे, बोल्टन, बोल्टन, होलोवे, बूढ़ा आदमी, भयानक संकट, सफेद संसार, एक भी आवाज़ नहीं (विराम)। उसे सुनो! (विराम),अपनी आँखें बंद करो और इसे सुनो, क्या सोचते हो यह क्या था? (विराम, प्रचंडता के साथ आवाज़) एक बूँद, रिसाव! एक रिसाव (रिसाव की आवाज़, तेजी से बढ़ती हुई, और अचानक से बंद होती है) फिर से (रिसाव फिर से। बढ़ता है)। नहीं! (रिसाव बंद होता है! विराम) पिता जी! (विराम, गुस्सा होता है), कहानियां, कहानियां, और बरस दर बरस केवल कहानियां ही कहानियां, मुझे भी जरूरत थी, किसी ऐसे की जो मेरे साथ होता,कोई भी एक अजनबी, मुझसे बात करता, वह मुझे सुनता,कितने बरस हो गए ऐसा हुए और उसके लिए जो मुझे बचपन से जानता, मेरे साथ होता, मुझे सुनता, मैं अब क्या हूं वह जानता, मैं क्या हूं यह उसे पता होता.......... (विराम)। कोई नहीं (विराम), न ही वहां। (विराम)। एक बार और कोशिश (विराम) सफेद संसार, कोई आवाज़ नहीं। (विराम)। होलोवे। (विराम)।होलोवे ने कहा वह जाएगा, भगवान न करे अगर वह पूरी रात एक काली अंगीठी के पास ही बैठा हो, वह नहीं समझता, एक पुराने दोस्त को बनाए, एक पुराने दोस्त को, सर्दी और अँधेरे में, एक पुराना दोस्त बहुत जरूरी होता है, बैग लाता है, फिर कोई शब्द नहीं, कोई व्याख्या नहीं, कोई गर्मी नहीं, कोई रोशनी नहीं, बोल्टन: “कृपया! कृपया!” होलोवे, कोई मनोरंजन नहीं, कोई स्वागत नहीं, अपनी मज्जा तक थमा हुआ ठंडा, उसकी मौत को देखो, नहीं समझ सकता, अजनबी व्यवहार, पुराना दोस्त, बोलता है वह जाएगा, हिलता नहीं, एक भी आवाज़ नहीं, आग बुझ रही है, खिड़की से बाहर आते सफेद धुंए के कतरे, भयानक द्रश्य, भगवान से चाहता है कि वह आया न होता, कोई सामान नहीं, आग बुझ गयी है, बहुत ठंड, भयानक संकट, सफेद संसार, कोई आवाज़ नहीं, कोई सामान नहीं। (विराम) कोई सामान नहीं (विराम) इसे नहीं कर सकता (विराम)। इसे सुनो (विराम)। पिताजी (विराम) आप मुझे अब नहीं जानते होंगे, आपको दुःख होगा कि कभी मैं आपका था, पर आप तो वाकई बेकार हो थे, मैंने आपसे आख़िरी शब्द यही सुना था, बेकार (विराम)। अपने पिता की आवाज़ की नक़ल बनाना) “क्या तुम गोता लगाने आ रहे हो?” “नहीं” “अरे आओ न, आओ न” घूरना, दरवाजे को मारना, मुड़ना और फिर घूरना “तुम एक बेकार और असफल व्यक्ति हो, एकदम असफल!” (दरवाजे को बहुत जोर से बंद करना, विराम)/ फिर से (मारना, विराम)। बर्बाद जिंदगियां इसी तरह ख़त्म होती हैं! (विराम) बेकार (विराम)। उम्मीद करता हूं कि उसके पास हो (विराम)। कभी भी एडा से नहीं मिला,क्या आप या क्या आप, मुझे यदा नहीं, कोई फर्क नहीं पड़ता, कोई उसे अब जानता नहीं है। (विराम)। उसे मेरे खिलाफ आखिर किसने कर दिया, क्या आपको पता है, शायद उस भयानक छोटे बच्चे ने, मैं भगवान से चाहता हूं कि वह वो हमारे पास कभी न होती, मैं उसके साथ उसका हाथ पकड़कर चलता था, जीसस, कितना अजीब था कि वह मुझे हाथ छुड़ा कर कभी जाने न देती थी और मैं बात करने से पागल हो रहा था। “साथ भागो एडी और मेमने को देखो” (एडी की आवाज़ की नक़ल) “नहीं पिता जी” “जाओ, जाओ” (फरियाद करते हुए)नहीं पिता जी (हिंसक)। “जब भी तुम्हें बोला जाए, तुम्हें जाना होगा और मेमने को देखो!” (एडी का भरी विलाप। विराम)। एडा के साथ बात करना भी कभी कभी गुनाह लगता था, छोटी छोटी बातों से लेकर उन पुराने सुनहरे दिनों के बारे में बात करना जब हम सोचते थे कि काश हमें मौत आ जाती (विराम)। पचास साल पहले एक नकली राजकुमार (विराम) और आज (विराम, एक औपचारिक नाराजगी के साथ)। ब्लूबैंड का राजकुमार। (विराम), मैं आपसे बात करके थक गया हूँ (विराम)। हमेशा ऐसा होता है, आपसे बात करते करते पूरे पहाड़ों पर चढ़ते जाओ और फिर एकदम से चुप हो जाना और घर को संकटों में छोड़ देना और सप्ताहों तक खुद से एक भी शब्द न बोलना, एक हरामी की तरह मनहूस, इससे बेहतर है मर जाना, इससे बेहतर है मरजाना। (लम्बा विराम) एडा (विराम, जोर से) एडा!
एडा: (कहीं दूर से आती हुई आवाज़) हां
हेनरी: क्या तुम यहाँ पर काफी समय से थी?
एडा: थोड़े समय से। (विराम) तुम क्यों रुके, मेरी चिंता न करो। (विराम)। क्या तुम चाहते हो मैं चली जाऊं? (विराम) एडी कहाँ है?
विराम
हेनरी: अपने संगीत के अध्यापक के साथ। (विराम) क्या आज तुम मुझे जबाव दोगी?
एडा: तुम्हें ठन्डे पत्थरों पर नहीं बैठना चाहिए, इससे तुम सही से बढ़ नहीं पाओगे। जरा उठो तो, मैं अपना शॉल तुम्हारे नीचे रख दूं (विराम) क्या अब सही लग रहा है?
हेनरी: यकीनन ही बेहतर है, कोई मेल ही नहीं। (विराम)। क्या तुम मेरे साथ बैठने जा रही हो?
एडा: हां। (जब वह बैठती है तो कोई आवाज़ नहीं आती) ऐसे? (विराम) या क्या तुम चाहते हो ऐसे बैठूं? (विराम) तुम्हें कोई परवाह नहीं (विराम) मुझे लगता है बहुत ठंड है आज, तुमने अपने जैगर तो पहने ही होंगे? (विराम) क्या तुमने अपने जैगर पहने हैं, हेनरी?
हेनरी: वो हुआ यूं, कि मैंने उन्हें पहना तो और फिर मैंने उन्हें पहना और फिर मैंने उन्हें उतार दिया, और फिर मैंने उन्हें पहना और उतारा और फिर से उतारा, फिर से पहना और उतारा और फिर मैंने..................
एडा क्या तुमने अभी पहने है?
हेनरी: मुझे नहीं पता। (विराम) हूव्स! (विराम, तेज) हूव्स (हूव्स की कड़ी सड़क पर चलने की आवाज़ आती है, वह अपने आप गायब हो गयी) फिर से!
हूव्स पहले ही की तरह। विराम
एडा: क्या तुमने यह सुनाई दिया?
हेनरी: बहुत ज्यादा नहीं
एडा: तेज चल रहा है?
हेनरी: नहीं (विराम) क्या एक घोडा समय बता सकता है?
विराम
एडा: मुझे नहीं लगता कि मुझे इस सवाल का जबाव पता है
हेनरी (झुंझलाकर) क्या किसी घोड़े को प्रशिक्षित किया जा सकता है कि वह अपनी चार टांगों पर खड़ा होकर समय का पता लगा सकता है?
एडा: ओह (विराम)। मेरी कल्पना में जरूर एक घोडा था वह ऐसा करता था। (वह हंसती है। विराम) हंसो हेनरी: मैं रोज मजाक नहीं करती। (विराम) हेनरी, सुनो, क्या तुम मेरे लिए हंस नहीं सकते?
हेनरी: क्या तुम चाहती हो मैं हंसू?
एडा: तुम्हारी हंसी इतनी आकर्षक है कि शायद इसी के कारण मैं तुमपर फिदा हुई थी। तुम्हारी हंसी और तुम्हारी मुस्कान (विराम)। हंसो न, इससे हम अपने पुराने दिनों को दोहरा सकेंगे।
विराम, वह हंसने की कोशिश करता है। नहीं हंस पाता
हेनरी: शायद मुझे इस मुस्कान से शुरू करना चाहिए (मुस्कान के लिए विराम) क्या यह तुम्हें आकर्षित करता है? (विराम)। अब मैं फिर से कोशिश करूंगा (लम्बी भयानक हंसी) क्या यह पहले की तरह आकर्षक हो सका?
एडा: ओह हेनरी
विराम
हेनरी: इसे सुनो! (विराम) होंठ और पंजे! (विराम) इसे दूर ले जाओ! जहां से यह मुझे खोज न पाए! महाप्रस्थ! क्या?
एडा: खुद को शांत करो
हेनरी: और मैं इसके किनारे पर रहता हूँ? क्यों? पेशेवर मजबूरी है क्या? (संक्षिप्त हंसी)। सेहत का कारण (संक्षिप्त हंसी)। पारिवारिक संबंध? (संक्षिप्त हंसी) कोई औरत? (हँसता है और इसमें वह भी उसके साथ हंसती है) कुछ पुरानी कब्रें, जिनसे मैं खुद को अलग नहीं कर सकता? (विराम) इसे सुनो! यह कैसा है?
एडा: यह एक पुरानी आवाज़ है, जिसे मैं पहले सुना करती थी। (विराम) यह उसी जगह पर किसी और समय की तरह है (विराम)। यह कठोर है, हम पर ऊपर से छिड़का जाता है। (विराम) अजीब ही है कि यह पहले खुरदुरा हो सकता था (विराम) और अब शांत
विराम
हेनरी: हमें उठना चाहिए और चलना चाहिए
एडा: चलना? कहां? और एडी? उसे बहुत निराशा होगी जब वह यहां आएगी और देखेगी कि तुम उसके बिना ही चले गए हो? (विराम) तुम आखिर उसे अपने पास रखे क्यों हो?
पर्दा गिरता है
पियानो के केस पर गोलाकार पैमाना आता है। अस्थिर, ऊंचे और नीचे सुरों के साथ एडी ए फ्लैट मेजर, बजाती है, हाथ पहले एक साथ होते हैं, फिर उलटे चलते हैं, विराम
संगीत अध्यापक (इटली के उच्चारण में) सैंटा सेसिलिया
एडी: क्या मैं अब अपना पीस बजा सकती हूँ, कृपया?
विराम।
संगीत अध्यापक पियानो केस पर रूलर के साथ वाल्टज टाइम के दो बार की धुन बजाता है। एडी ए फ्लैट मेजर, में शोपिन के पांचवे वाल्टज के ओपनिंग बरस को बजाती है। जैसे ही वह बजाती है संगीत अध्यापक की धुन का समय हल्का होता जाता है। बॉस के पहले तार में, बार 5, में वह एफ की जगह ई बजा देती है, पियानो केस पर रूलर की दोबारा आवाज़ आती है। एडी बजाना बंद कर देती है।
संगीत अध्यापक (गुस्से से) फा!
एडी (आँखों में आंसू लाते हुए): क्या?
संगीत अध्यापक:एफ एफ!
एडी: (आँखों में आंसू लाते हुए) कहाँ?
संगीत अध्यापक: (गुस्से में) कवा! (वह नोट उछालता है) फा! विराम। एडी दोबारा शुरू करती है। संगीत अध्यापक रूलर के साथ हलके हलके बीट करता है। जब वह बार 5 पर पहुँचता है, तब वह कुछ गलतियां कर देती है। पियानो के केस पर बहुत ही तेज प्रहार। एडी रुकती है, बजाती है और रोना शुरू कर देती है।
संगीत अध्यापक : (पागलों की तरह): एफ! एफ! (वह नोट पर टोकता है) एफ! (वह नोट पर टोकता है) एफ! और एडी का रोना एक आक्रमण में बदल जाता है और पर्दा गिरता है । विराम
एडा:  तुम आज शांत हो
हेनरी: उसे इस दुनिया में घसीटना सही नहीं है, अभी उसे पियानो ही बजाना चाहिए
एडा: उसे सीखना चाहिए, वह सीखेगी। वह और घुड़सवारी।
हूव्स का आना
घुड़सवारी प्रशिक्षक: अब मिस! यहाँ पर कोहनी मिस! हाथ नीचे मिस! (हूव्स ढुलकता है) अब मिस! पीछे सीधे मिस! पीछे सीधे मिस! घुटने अन्दर मिस! (हूव्स कदमताल करता है) अब मिस! पेट अंदर मिस! ठुड्डी ऊपर मिस! (हूव्स चौकड़ी भरता है) अब मिस! आँखें सामनें मिस! (एडी को रोना आने लगता है) अब मिस! मिस!
चौकड़ी भरता हुआ हूव्स “अब मिस!” और एडी का क्रंदन चीख में बदल जाता है और पर्दा गिरता है । विराम।
एडा: तुम क्या सोचते रहते हो? (विराम) मुझे सिखाया नहीं गया और अब बहुत देर हो गयी है। मेरी पूरी जिंदगी इसका अफसोस रहेगा।
हेनरी: तुम्हारा सबसे मजबूत पहलू क्या था, मैं भूल गया।
एडा: ओह....................... मुझे लगता है रेखागणित, समतल और ठोस।(विराम) पहले समतल और फिर ठोस। (जैसे ही वह उठता है, रेत गिरती है) तुम क्यों उठे?
हेनरी: मैंने सोचा मुझे कम से कम पानी के किनारे से कहीं दूर जाने की कोशिश तो करनी चाहिए। (एक उच्छ्वास के साथ) और वापस आना चाहिए। (विराम) मेरी बूढ़ी हड्डियों को खींचों।
विराम
एडा: खैर क्यों तुम ऐसा क्यों नहीं करते? (विराम) उसके बारे में सोचते हुए यहां खड़े न रहो (विराम) घूरते हुए यहां खड़े न हो (विराम, वह समंदर की तरफ जाता है। रेत पर उसके जूते हैं, वह दस कदम जाता है। पानी के किनारे पर जाकर वह रुक जाता है। विराम। समंदर थोड़ा और तेज होता है। दूर) अपने अच्छे जूते को खराब मत करो
विराम
हेनरी: नहीं करो, नहीं
समंदर अचानक से अशांत हो जाता है।
एडा: बीस बरस पहले याचना कर रही हैं। नहीं नहीं
हेनरी: (तुरंत करता है) प्रिय
एडा (करती है, ज्यादा अस्पष्ट रूप से) नहीं
हेनरी (करता है, खुश होकर) प्रिय!
अशांत समंदर। एडा रोती है। रोती है और समंदर का विस्तार होता है,बंद होता है। पुरानी स्मृतियों का अंत होता है। विराम। समंदर शांत है। वह गहरे फैले हुए समंदर के किनारे पर वापस जाता है। जूते रेत में धंसे जा रहे हैं। वह रुकता है।विराम। वह आगे बढ़ता है। रुकता है। विराम। समंदर शांत है और शिथिल हो रहा है।
एडा: इस बीच की जगह पर खड़े न रहो। (विराम। वह रेत पर बैठता है) शॉल पर (विराम)। क्या तुम्हें डर है कि हम छू सकते हैं? (विराम) हेनरी
हेनरी: हां
एडा: तुम्हें अपनी बोली के लिए किसी चिकित्सक से मिलना चाहिए, यह बहुत ही खराब है, जबकि यह एडी की तरह होनी चाहिए थी? (विराम)। क्या तुम जानते हो जब वह छोटी थी तो उसने मुझसे क्या कहा था, उसने कहा था “माँ, पिताजी हमेशा बात ही क्यों करते रहते हैं? उसने तुम्हें शौचालय में सुना था। मैं नहीं जानती क्या जबाव दूं।”
हेनरी: पिताजी! एडी! (विराम) मैंने तुमसे कहा था कि उससे कहो कि मैं प्रार्थना कर रहा हूं। (विराम) भगवान और उसके संतों पर प्रार्थनाओं की बारिश कर रहा हूं
एडा: यह बच्चे के लिए बहुत ही बुरा है। (विराम) यह कहना बेवकूफी है कि  यह तुम्हें यह सब सुनने से रोकता है, यह तुमने इसे सुनने से नहीं रोकता और अगर ऐसा होता भी है तो तुम्हें इसे नहीं सुनना चाहिए, तुम्हारे दिमाग में जरूर ही कोई गड़बड़ है।
विराम
हेनरी: कि मुझे यह नहीं सुनना चाहिए!
एडा: मुझे नहीं लगता कि तुम इसे सुनते हो। और अगर तुम ऐसा करते हो तो इसमें क्या गलत है। यह बहुत ही शांतिपूर्ण विनम्र और कानों को सुकून देने वाली आवाज़ है तो तुम इससे नफरत क्यों करते हो? (विराम) और अगर तुम इससे नफरत करते हो तो क्यों खुद को इससे दूर नहीं रखते? तुम हमेशा यहां क्यों आ जाते हो? (विराम) तुम्हारे दिमाग में कुछ तो चलता ही है, तुम होलोवे को देखना चाहते हो, क्या वह जिंदा है है न?
विराम
हेनरी: (वहशीपन से) धमाका, मैं धमाका चाहता हूँ! ऐसे! (वह रेत में कुछ खोजता है, दो बड़े पत्थर उठाता और उन्हें आपस में रगड़ना शुरू कर देता है) पत्थर! (टकराता है)पत्थर! (टकराता है! “पत्थर” और दोनो को और भी तेज रगड़ता है, बंद कर देता है। वह एक पत्थर दूर फ़ेंक देता है। उसके गिरने की आवाज़ आती है।) यह है ज़िन्दगी! (वह दूसरा भी पत्थर दूर फेंकता है। उसके गिरने की आवाज़) न कि यह..................(विराम)........................छि!
एडा: और ज़िन्दगी क्यों? (विराम) ज़िन्दगी ही क्यों, हेनरी? (विराम) क्या यह किसी के बारे में है?
हेनरी: किसी भी जिंदा व्यक्ति के बारे में नहीं!
एडा: मुझे जहां तक लगता है (विराम) जब हम कुछ होने की इच्छा करने लगते हैं तो यह किसी न किसी के कारण तो होता ही है। अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उस जगह रेत जमी हो या बर्फ।
हेनरी: हां, तुम हमेशा ही रंगीली बातचीत में देखे जाने से बचती हो न। जैसे ही कोई ऐसी बात शुरू हुई नहीं कि तुम एकदम मैचेस्टर गार्जियन में तब्दील हो जाती हो। (विराम)। वह छेद अभी भी वहीं है, इतने बरसों के बाद भी। (विराम। बहुत जोर से) वह छेड़ अभी भी वहीं हैं।
एडा: कौन सा छेद? धरती तो छेदों से भरी पड़ी है।
हेनरी: जहां हमने यह शायद पहली बार किया था
एडा: ओह हां, मुझे लगता है कि मुझे याद है। (विराम) वह जगह अभी बदली नहीं है।
हेनरी: ओह, हां, यह बदल चुकी है। (बहुत आत्मविश्वास से) उसका कुछ समतलीकरण हो रहा है। (विराम) अब वह कितने बरस की है?
एडा: मैंने गिनना बंद कर दिया।
हेनरी: बारह? तेरह? (विराम) चौदह?
एडा: मैं तुम्हें वाकई नहीं बता सकती, हेनरी।
हेनरी: मुझे उसे पाने में बहुत समय लगा है। (विराम)। कई बरसों तक हम एक दूसरे से अलग रहे हैं (विराम)। पर हमने यह अंत में किया। (विराम) इसे सुनो! (विराम)। जब तुम इससे बाहर आ जाती हो तो इतना भी बुरा नहीं है। (विराम) शायद मुझे मर्चेंट नेवी में जाना चाहिए था।
एडा: तुम जानते हो कि यह केवल सतह पर है, ऊपरी है। इसके नीचे सब कुछ कब्र की तरह ही शांत होता है। कोई आवाज़ नहीं। चाहे दिन हो या रात हो, कोई भी आवाज़ नहीं। कोई स्पंदन नहीं, कोई कोलाहल नहीं।
विराम
हेनरी: अब मैं ग्रामोफोन साथ कुछ घूमना चाहता हूँ। पर मैं उसे आज भूल गया।

एडा: इसका कोई फायदा नहीं है। (विराम) उसे डुबोने का कोई फायदा नहीं है। (विराम) देखो होलोवे
विराम
हेनरी: चलो न नौका से चलते हैं!
एडा: नाव की सवारी? और एडी? उसे बहुत खराब लगेगा जब वह यहाँ आएगी और उसे पता चलेगा कि तुम उसके बिना ही चले गए हो। (विराम)। तुम अभी अभी कहां थे? (विराम) मुझसे बात करने से पहले
हेनरी: मैं अपने पिता के साथ था
एडा: ओह (विराम) इस बारे में कोई कठिनाई नहीं।
हेनरी: मेरा मतलब है कि मैं उन्हें अपने पास लाने के लिए खोज रहा था (विराम)। तुम पहले की तुलना में आज बहुत दुष्ट लग रही हो एडा (विराम)। मैं उनसे पूछ रहा था कि क्या वे मुझसे कभी मिले हैं, मुझे तो याद नहीं
एडा: फिर?
हेनरी: उन्होंने मुझे कोई जबाव नहीं दिया।
एडा: मुझे लगता है कि तुमने उन्हें खुद पर ओढ़ रखा है (विराम) तुम्हें उन्हें जिंदा होने पर खुद पर डाला था और उनके मर जाने के बाद अब तुमने उन्हें खुद पर एकदम ही ओढ़ लिया है। (विराम) एक समय ऐसा आएगा कि तुमसे कोई भी इंसान बात नहीं कर पाएगा (विराम) आएगा वह दिन जब कोई भी तुमसे बात नहीं कर पाएगा, यहाँ तक कि कोई अजनबी भी नहीं। (विराम)। तुम अपनी आवाज़ के साथ ही अकेले हो जाओगे, और वहां पर दुनिया की कोई आवाज़ नहीं होगी, होगी तो केवल तुम्हारे आवाज। (विराम) क्या तुम मुझे सुन रहे हो?
हेनरी: मुझे याद नहीं पड़ता कि वे तुमसे कभी मिले थे।
एडा: तुम जानते हो कि वे मुझसे मिले थे
हेनरी: नहीं एडा, मैं नहीं जानता, मुझे माफ करना। मैं तुमसे जुड़ी लगभग हर बात भूल चुका हूं।
एडा: तुम वहां नहीं थे।, केवल तुम्हारी माँ और बहन थी। मैंने तुम्हें बुलाने के लिए आवाज़ लगाई थी। हम एक साथ नहाने जा रहे थे।
विराम
हेनरी: (झुंझला कर) बोलती रहो, बोलती रहो! न जाने लोग बोलते बोलते रुक क्यों जाते हैं?
एडा: उनमें से कोई नहीं जानता था कि तुम कहाँ थे?  तुम अपने बिस्तर पर सोए नहीं थे। हर कोई एक दूसरे पर चीख चिल्ला रहा था। तुम्हारी बहन से कहा कि वह पहाड़ों की चोटी से छलांग लगा लेगी। तुम्हारे पिता उठे और दरवाजे को धक्का देकर बाहर गए। मैं भी उनके पीछे पीछे भागी और सड़क पर उनसे आगे निकल गई। उन्होंने मुझे नहीं देखा। वे समन्दर की तरफ देखते हुए एक चट्टान पर बैठे हुए थे। उनकी वह भंगिमा अभी तक मेरे दिल में है, मैं भूली नहीं हूं उसे। और हां, चूंकि वह बहुत ही आम भंगिमा है और तुम भी अक्सर वैसे ही बैठते हो। शायद मैं उनकी उस जड़ता के कारण उसे अपने जेहन से नहीं निकाल पाई हूं, क्योंकि वह एकदम पत्थर बन गए थे। मैं उसे कभी समझ नहीं पाई
विराम
हेनरी: बोलती रहो, बोलती रहो! (याचना करते हुए) बोलती रहो, एडा, हर शब्द मेरे लिए अमृत की एक बूँद है
एडा: बस यही, यही मुझे याद है। (विराम) तुम्हारी या तुम्हारे पिता की कहानी याद करना या जो भी तुम कर रहे थे,  अब वाकई मुझे याद नहीं है
हेनरी: मैं नहीं कर सकता! (विराम) मैं इसे और नहीं कर सकता
एडा: तुम एक क्षण पहले ही तो कर रहे थे, मुझसे बात करने से एकदम पहले तक
हेनरी (गुस्से से): पर मैं अब इसे और नहीं कर सकता! (विराम) ओह प्रभु
विराम
एडा: हां, तुम जानते हो कि मेरा मतलब क्या है, आदमी के दिमाग में कई तरह के विचार और आदतें कई कारणों से होती हैं, वे दिमाग में कैसे जाती हैं, सब कुछ पता होता है, जैसे जब किसी भी व्यक्ति को लगता है कि उसे कोई चीज़ उठानी है तो वह नीचे झुकता है या कोई हाथ बीच हवा में झूलता है जैसे वह अनाथ हो। तो यह बात है। पर तुम्हारे पिता जिस तरह से चट्टान पर बैठे हुए थे, उस दिन ऐसा कुछ  नहीं हुआ था जो मैं तुम्हें उंगली पर गिनकर बता सकती हूँ और कह सकती हूं कि यह यह उस दिन हुआ था। नहीं मैं नहीं बता सकती, मुझे कभी वह याद नहीं आ सकता है। शायद जैसे मैंने कहा उनके शरीर का कड़ापन, जैसे उनमें कोई सांस न बची हो। (विराम)। क्या तुम्हारी मदद करना बेवकूफी है, हेनरी? (विराम) अगर तुम चाहो तो मैं और कुछ और याद करने की कोशिश कर सकती हूं। (विराम) नहीं? (विराम)। तो मुझे लगता है कि वापस जाना चाहिए

हेनरी: अभी नहीं! तुमने बोलने की जरूरत नहीं है, केवल सुनना। सुनो भी नहीं तो केवल मेरे साथ रहो (विराम)। एडा! (विराम। तेज आवाज़ में)  एडा! (विराम) हे प्रभु (विराम)! हूव्स (विराम। तेज आवाज़ में)। हूव्स (विराम) । हे प्रभु! (लंबा विराम) उनके जाने के बाद, सड़क पर आपसे आगे निकलते हुए, आपने नहीं देखा, ......................की तरफ देखते हुए (विराम), क्या समंदर को नहीं देखा जा सकता था (विराम) जब तक कि आप दूसरी तरफ नहीं मुड़ गए? (विराम) पिताजी! (विराम) मुझे अनुमान लगाना चाहिए। (विराम) वह आपको कुछ समय तक खड़े होकर देखती रही, और फिर ट्रैम की तरफ चली गयी,  ऊपर गयी और सामने की तरफ बैठी (विराम)। सामने की तरफ बैठ गयी (विराम) और अचानक से उसे अजीब सा महसूस होने लगा और वह नीचे आती है, कंडक्टर “क्या आपने इरादा बदल दिया है मिस?” वह रास्ते पर आती है अब आपका कोई संकेत नहीं दिख रहा है। (विराम) बहुत ही अप्रसन्न और बेचैन है, एक क्षण को रुकती है, कोई भी नहीं है, समंदर से बहुत ठंडी हवाएं आ रही हैं, वह वापस जाती है और घर जाने के लिए वापस ट्राम लेती है। (विराम) हे प्रभु! (विराम) “मेरे प्रिय बोल्टन......................”  (विराम) “अगर यह एक इंजेक्शन है जो तुम्हें चाहिए था, तो बोल्टन अपनी ट्राउजर नीचे करो, और मैं तुम्हें यह लगाऊंगा, मेरे पास एक नौ में एक पैन्हीस्टरेक्टोमी है” और इसे बेहोश होकर ही दिया जा सकता है। (विराम) आग बंद हो चुकी है, बहुत ठण्ड है, सफेद संसार, भयानक संकट, कोई आवाज़ नहीं (विराम) बोल्टन ने पर्दे से खेलना शुरू कर दिया है, कोई लटकन नहीं, बताना मुश्किल है, इसे वापस लेता है, उसकी तरफ चुन्नटें आती हैं, और चाँद उसमें से झाँक रहा है, और फिर उसे वापस गिराता है, भारी वेलवेट का बना हुआ है और कमरे में अन्धेरा छा जाता है, फिर उसकी तरफ जाता है, सफेद, काला सफेद, काला, होलोवे। “प्रभु के लिए उसे बंद कर दो, बोल्टन, क्या तुम मुझे ख़त्म करना चाहते हो?” (विराम) काली, सफेद, काली, सफेद, पागल बनाने वाली चीज़ें। (विराम) फिर उसने अचानक से माचिस जलाई, बोल्टन ने मोमबत्ती जलाई, उसके सिर के ऊपर पकड़ता है और चलता है और होलोवे की आँखों में आँखें डालकर देखता है। (विराम) निशब्द, केवल देखना, बूढ़ी नीली आँखें, एकदम भावहीन, जिनकी बरौनियाँ झड़ चुकी हैं, पलकें ढीली हो चुकी हैं,सब चीज़ें तैर रही हैं, और मोमबत्ती उसके सिर के ऊपर हिल रही है। (विराम) आंसू? (विराम, लंबी हंसी) ओह प्रभु नहीं, बिलकुल नहीं। (विराम) एक भी शब्द नहीं, केवल देखना, नीली बूढ़ी आँखें, होलोवे “अगर तुम्हें एक शॉट चाहिए तो ऐसा कहो और भगवान के लिए मुझे यहाँ से जाने दो” (विराम) “हम यह पहले कर चुके हैं बोल्टन, मुझसे ये दोबारा करने के लिए न कहो” (विराम) बोल्टन “कृपया” (विराम) कृपया, (विराम) “होलोवे कृपया”। (विराम) मोमबत्ती हिल रही है और इधर उधर बूँद बूँद कर चुआ रही है, अब नीचे है और बूढ़ी बांह थक चुकी है और उसने इसे दूसरी बांह में पकड़ लिया है, जैसा वह हमेशा करता था, रात है, और अंगारे ठंडे हो रहे हैं, और आपकी बूढ़ी मुट्ठी में कम्पन हो रहा है, और आप कह रहे हैं कृपया! कृपया (विराम) भीख मांगते हुए (विराम) ओह बेचारा (विराम) एडा! (विराम), पिताजी (विराम) प्रभु (विराम)। इसे ऊपर पकड़ें, शरारती संसार, होलोवे को फिक्स करता है, आँखें बंद हो रही हैं, फिर से कुछ नहीं पूछ रहा, केवल देखता है, होलोवे उसका चेहरा ढकता है, कोई आवाज़ नहीं, सफेद संसार, बहुत ठण्ड, भयानक द्रश्य, बूढ़ा आदमी, भयंकर संकट, नहीं अच्छा नहीं, (विराम) अच्छा नहीं हो रहा है। (विराम) प्रभु! (विराम, जैसे ही वह उठता है रेत गिरती है। वह समंदर की तरफ जाता है। जूते रेत पर हैं, वह रुकता है, विराम, समंदर और तेज होता है) चलो (विराम, वह चलता है। जूते रेत पर हैं, वह पानी के किनारे पर जाकर रुकता है, विराम, समंदर और तेज होता है) छोटी किताब। (विराम) यह शाम,....................(विराम), इस शाम कुछ नहीं (विराम) कल, कल.................। नौ बजे नलसाजी? (विराम) ओह हां, बर्बादी.....................(विराम) शब्द (विराम) शनिवार ...........................कुछ नहीं। रविवार,........................ रविवार, पूरे दिन कुछ नहीं (विराम) कुछ नहीं, पूरे दिन कुछ नहीं (विराम) पूरे दिन, पूरी रात कुछ नहीं (विराम) कोई आवाज़ नहीं


समंदर। 

नया साल

फिर से वह वहीं पर सट आई थी, जहाँ पर उसे सटना नहीं था। फिर से उसने उसी को अपना तकिया बना लिया था, जिसे वह कुछ ही पल पहले दूर फेंक आई थी। उसने...