शायद वे बहुत ज्यादा लोग नहीं थे। ऊपर जाते समय और नीचे जाने के समय हज़ारों
बार मैंने उन्हें गिना होगा, पर यकीनन ही शक्ल और आंकड़े बिलकुल ही मेरे दिमाग से
निकल चुके हैं। मुझे नहीं पता कि क्या आपको सड़क की पटरी पर चलते हुए एक कदम, या दो
कदम या पहले कदम के बाद आने वाले वे तमाम कदम, या फिर पटरी को बिलकुल गिनना ही
नहीं चाहिए। बहुत सारे क़दमों के आ जाने पर तो मुझे भी यही भ्रम हुआ था। वहीं दूसरी
तरफ से यानि ऊपर से नीचे तक सब कुछ एक ही जैसा था, सब कुछ वही था, आवाज़ बहुत तेज
नहीं आ रही थी। मुझे नहीं पता था कि कहाँ से शुरू करना है और कहाँ पर ख़त्म करना
है, हकीकत तो यही थी। मुझे कुल मिलाकर तीन लोग लग रहे थे, मुझे नहीं पता था कि इन
तीनों में से कौन सा सही था। और जब मैं ये कह रहा हूँ कि मेरे दिमाग से ये आंकड़े
उड़ चुके हैं, गायब हो चुके हैं तो मैं यह मानता हूं कि वाकई इन तीनों में से कोई
भी मेरे दिमाग में अब नहीं है, ये तीनों ही वहां से न जाने कहां जा चुके हैं। हां,
यह भी सच है कि अगर मुझे अपने दिमाग में यह पता करना होगा कि आखिर वह कौन है तो
मैं शर्तिया ही उसे खोज लूंगा और केवल उसका ही पता लगा पाऊंगा, फिर ये पता नहीं
चलेगा कि बाकी दो कौन हैं। और अगर मुझे दूसरे को खोजना होगा तो मैं तीसरे को नहीं
पहचान पाऊंगा। नहीं, नहीं, मुझे उन तीनों को ही पहचानने के लिए काम करना होगा,
मुझे उन तीनों को ही खोजना होगा। यादें मारती हैं, यादें हमें नष्ट कर देती हैं। तो
आपको बिलकुल भी ऐसी कुछ चीज़ों को याद नहीं करना चाहिए जो आपको प्रिय हैं या बल्कि
आपको तो उनके बारे में सोचना चाहिए, क्योंकि अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें
अपने दिमाग में थोडा थोड़ा पाने का खतरा होता रहेगा। यह ऐसा ही हुआ कि मान लीजिए फिर
इनमें से अधिकतर को आप थोड़ी देर के लिए सोचें, और थोड़ी देर, रोज़ दिन में कई बार,
और इसे तब तक करें जब तक कि यह मिट्टी में पूरी तरह डूब न जाए। यह भी एक क्रम है।
और अकेले ये ही याद रखना तो जरूरी नहीं है कि कितने लोग थे। सबसे जरूरी चीज़ तो
यह याद रखना है कि बहुत सारे लोग नहीं थे और यह कि यह मुझे याद है। यहाँ तक कि जब
बच्चा चलना सीखता है तो उसके सामने भी ऊपर और नीचे जाने और घुटनों चलते खेलते समय
और न जाने कितने खेल खेलते समय कितने कदम आते हैं, उसे ध्यान नहीं रहता है। तो फिर
ऐसा मेरे जैसे गबरू जवान/वयस्क इंसान के साथ क्यों नहीं होगा?
मैं बहुत तेज या जोर से नहीं गिरा था। यहां तक कि जैसे ही मैं गिरा मैंने
दरवाजे के बंद होने की आवाज़ सुनी, जिसने मुझे मेरे गिरने के बीच थोड़ी राहत दी।
इसका मतलब यह हुआ कि वे स्टिक लेकर मुझे सड़क तक खदेड़ते हुए नहीं आ रहे थे, वे
रास्ते चलते वालों के सामने मुझे पीटने नहीं आ रहे थे। अगर वे हकीकत में ऐसा ही
करना चाहते, अगर ऐसी ही उनकी मंशा होती तो वे दरवाजे को बंद नहीं करते, उसे खुला
रहने देते और वे चाहते कि सड़क पर चलने वाले लोग मेरी कुटाई देखें, वे मुझे घर से
बाहर निकलते हुए देखें, वे मेरी इस दुर्दशा का लुत्फ उठाते और फिर कोई फिर कोई
आध्यात्मिक उपदेश देते। तो गनीमत थी कि उन्होंने केवल मुझे मेरे घर से ही उठाकर
फेंका था और कुछ नहीं किया था। अभी उन्होंने
केवल मुझे बाहर उठाकर फेंकने तक ही सीमित कर दिया था और बहुत ज्यादा अत्याचार नहीं
किया था। इस नर्क में आराम करने से पहले मेरे
पास इस तर्क को इसके अंजाम तक पहुंचाने के लिए काफी समय था।
इन परिस्थितियों में किसी ने भी मुझे तुरंत उठने के लिए मजबूर नहीं किया।
मैंने पटरी पर अपनी कोहनी टिकाई, हर मजेदार बात को याद किया, कान पर हथेली को रखा
और अपने अपरिचित से हालातों के बारे में सोचने लगा। पर तभी मेरे कानों में मद्धिम
सी दरवाजा खुलने की आवाज़ आई, नहीं नहीं मुझे कोई
गलतफहमी नहीं हुई थी, मैं अपने उस
दिवास्वप्न से जैसे जागा, जिसमें पहले से ही एक परिद्रश्य बुना जा चुका था, उस
सपने में जंगली गुलाबों के साथ नागफनी थी और मैं एक झटके से उठा, मेरे हाथ पटरी पर
एकदम समतल रूप से थे और मेरी टाँगे जैसे उड़ने के लिए तैयार थी। पर ये क्या! ये तो
मेरा हैट था, जो उन्होंने मेरी तरफ उछाला था और वह घूमता हुआ उड़ता हुआ मेरे पास आ
रहा था। मैंने उसे लपका और उसे पहन लिया। वे अपने भगवान, अपने देवता के हिसाब से तो
एकदम ठीक काम कर रहे थे, एकदम सही थे। वे इस हैट को अपने पास रख सकते थे पर यह
उनका तो था नहीं, यह तो मेरा था, तो उन्होंने इसे मुझे वापस कर दिया। पर उसका घेरा
टूट गया था।
मैं कैसे बताऊँ कि वह हैट कैसा था? और क्यों? जब मेरे दिमाग को यह पता चला कि
मैं इसे एक परिभाषा के रूप में न बोलकर केवल इसके अधिकतम आयामों के साथ कहूँगा, तो
मुझे ध्यान आया कि मेरे पिता ने मुझसे कहा था, चलो बेटा हम तुम्हारे लिए हैट
खरीदने जा रहे हैं, चूंकि यह तो पहले से ही या कहें अनंत काल से एक स्थापित जगह पर
मौजूद था। उन्होंने सीधे हैट माँगा। मुझे तो निजी तौर पर कुछ नहीं कहना था और न ही
हैट बेचने वाले को। मुझे कभी कभी अब ये लगता है कि मेरे पिता कहीं न कहीं मुझे
शर्मिंदा तो नहीं करना चाहते होंगे, मुझे लगता कि वे मुझसे जलते होंगे जो उनकी
तुलना में युवा और आकर्षक है, या कम से कम उनसे ज्यादा ताजगी तो है ही, जबकि वे
पहले ही बूढ़े और पिलपिले हो चुके थे। अगले
ही दिन से ही मेरा नंगे सिर बाहर जाना वर्जित हो गया था जबकि मेरे सुंदर सुनहरे
बाल हवा में खूब उड़ते थे। कभी कभी अकेली सड़क पर मैं उसे उतार लेता था और अपने हाथ
में पकड़ लेता था, मगर कांपते हुए। मुझे इसे सुबह और शाम को ब्रश से साफ करना जरूरी
था। मेरी ही उम्र के लड़के जिनके साथ हर कीमत पर मुझे घुलना मिलना ही था, वे मेरी
हंसी उड़ाते थे। पर मैंने खुद से कहा कि वे
हैट का मजाक नहीं उड़ाते हैं बल्कि वे इस हैट की इज्ज़त करते हैं क्योंकि यह बाकी से
ज्यादा चमकदार है और ऐसा चमकदार वे अपना हैट नहीं बना सकते थे या ऐसा करने की
धूर्तता या कहें मक्कारी उनमें नहीं थी। मुझे हमेशा ही अपने साथियों की धूर्तता की
कमी पर आश्चर्य होता था, मैं जिसकी आत्मा सुबह तक शाम तक केवल खुद की ही तलाश में
विकृत होती रहती थी। पर वे शायद वे मुझ पर कुछ उदार थे, उन्हें लगता होगा कौन हंचबैक
की बड़ी नाक का मजाक उड़ाए। जब मेरे पिता की मृत्यु हुई तो मैं आराम से इस हैट से
छुटकारा पा सकता था, पर मैंने ऐसा नहीं किया। पर मैं इसे कैसे बताऊँ कि ये कैसा
है? चलो, फिर कभी, फिर किसी समय।
मैं उठा और खुद को ठीक किया। मैं भूल गया कि मैं कितने बरस का हो सकता हूँ। मेरे साथ जो कुछ भी अभी हुआ था, तो उसमें से
कुछ भी याद रखने लायक नहीं था। यह न तो किसी का उद्गम स्थल था और न ही किसी की
कब्र ही थी। या इसमें इतने उद्गम स्थल और कब्रें होंगी कि मैं खो गया। पर मुझे भरोसा
नहीं, मुझे ये कहना अतिशयोक्तिपूर्ण लगता है कि मैं अपने जीवन के शिखर पर था तो
मुझे लगता है कि मैं अपनी क्षमताओं/अपनी संपत्ति के पूर्ण स्वामित्व में था। हां,
सही है, मैं उन सबका मालिक था। मैंने सड़क पार की और उस घर की तरफ वापस मुड़ा, जिससे
मुझे अभी अभी उठाकर फ़ेंक दिया गया था, मैंने उसे छोड़ते समय मुड़ कर भी नहीं देखा था।
यह कितना सुंदर था! इसमें खिड़की में जरेनियम था। मैंने खिड़की के जरेनियम पर हाथ
रखकर सालों तक न जाने कितना चिंतन किया था, न जाने कितनी विचारों की गंगा में
नहाया था। जरेनियम बहुत ही चालाक उपभोक्ता होते हैं, पर मैं अंत में मैं उनके साथ
वह करने में सफल हुआ था जो मैं करना चाहता था।
मुझे हमेशा ही इस घर के दरवाजे पसंद आए थे, उनके थोड़े ऊपर ही क़दमों की उड़ान
थी। पर इसे कैसे बताऊं? यह एक बड़ा हरा दरवाज़ा था, गर्मियों में यह एक प्रकार की
हरी और सफेद पट्टियों वाले सांचे में होता था, जिसमें लोहे का तूफानी नॉकर होता था
और चिट्ठियों के आने के लिए एक छेद था, जिसमें चिट्ठियां मिट्टी, मक्खियों के
नज़दीक होती थी और स्प्रिंग के साथ एक ब्रास फ्लैप लगा होता था। ओह, कितना कुछ है
बताने के लिए। यह दरवाज़ा एक ही रंग के दो खम्भों के बीच में लगा हुआ था, इसमें
इसके दाएं पर घंटी लगी थी। पर्दे बहुत ही शानदार थे। यहाँ तक कि एक चिमनी से धुंआ
फैलता हुआ और पड़ोसियों की तुलना में ज्यादा उदासी हवा में गायब होता और धुंधला
होता दिख रहा था। मैंने जब तीसरे और आख़िरी फ्लोर को देखा तो मुझे मेरी खिड़की
बेतरतीब तरीके से खुली हुई दिखाई दी। वहां पर खूब जोरो शोरों से सफाई चल रही थी।
कुछ ही घंटों में वे खिड़की को बंद कर देंगे, पर्दे डाल देंगे और पूरी जगह में
विसंक्रामक का छिड़काव करेंगे। मैं उन्हें जानता था। मैं घर में खुशी खुशी मर गया
होता। तभी मैंने दरवाजे को खुला देखा और मैं बाहर आ गया।
मुझे अपने देखे जाने का डर नहीं था, क्योंकि मैं जानता था कि वे पर्दों के
पीछे से मेरी जासूसी नहीं कर रहे होंगे, अगर उन्हें यह करना ही होता तो वे पहले ही
कर चुके होते। पर मैं उन्हें जानता था। वे अपनी अपनी मांदों में वापस जाकर अपना
काम शुरू कर चुके होंगे।
और मैंने ऊन्हें कुछ नुकसान भी तो नहीं पहुंचाया था न!
मैं इस शहर को बहुत नहीं जानता था, मेरे जन्म और इस दुनिया में मेरा पहला कदम,
और फिर अन्य बातें कितना कुछ मैंने अपनी खोज करने के लिए सोचा, खो गया था, पर मैं
गलत था। मैं बाहर ही कितना निकला था/मैं जानता ही कितना था। अब, और फिर मैं खिड़की
तक गया होता, पर्दों को अलग किया होता और उनसे झांका होता। पर मैं जल्दी से कमरे
में बीच में गया, जहां पर बिस्तर था। मैं अपने सामने होने वाली तमाम संभावनाओं के
भ्रम में खोने से पहले इस कमरे में आसानी
से बीमार पड़ सकता था, खो सकता था।
पर मैं जानता था कि कैसे ऐसी स्थिति में व्यवहार करना है जो उस समय सबसे ज्यादा
जरूरी था। पर पहले मैंने आँखें उठाकर उस आसमान को देखा, जो हमेशा मददगार होता है, जहाँ
से हमें मदद मिलती है, जहां कोई सड़क नहीं है, जहां आप मुक्त होकर घूम सकते हैं,
जैसे एक रेगिस्तान में और जहां कोई भी आपकी आँखों के रास्ते में नहीं आता, वह
निर्बाध होकर देखती हैं, जैसे ही आप आंखें मोड़ते हैं, वैसे ही द्रष्य भी सीमित हो
जाता है। यही कारण है कि किसी भी परेशानी में मैं हमेशा आसमान को देखता था, उसी
आसमान में जहां पर कोई सीमा नहीं है, कोई फर्क नहीं पड़ता कि जब हम कस्बे, देश, इस
धरती के विचारहीन भ्रम से उसे देखने पर उसमें बादल पाते हैं, उसे धूसर पाते है, या
बारिश से भरा हुआ पाते है। यह अंत में नीरस ही होना है पर मैं इसमें कोई मदद नहीं
कर सकता। जब मैं छोटा था तो मुझे लगता था कि मैदानों की ज़िन्दगी बहुत ही अच्छी
होती होगी, तो मैं लाइनबर्ग हीथ गया था। अपने दिमाग में मैदान को रखते हुए, मैं
हीथ गया था। हालांकि कई और मैदान वहां से नज़दीक थे पर मेरे दिल से जैसे कोई आवाज़
आती रही कि तुम्हें लाइनबर्ग हीथ ही की तलाश है, तुम्हें वहीं जाना है। कभी कभी
आपकी ऐसी बातों में आपके दिमागी पागलपन का भी हाथ होता है। और जब मैं लाइनबर्ग हीथ
पहुंचा तो वह सबसे ज्यादा असंतोषजनक साबित हुआ, सबसे ज्यादा असंतोषजनक। मैं वहां
से बहुत ही असंतुष्ट होकर लौटा और उसी समय मैं चिंतामुक्त भी वापस आया। हां मैं
नहीं जानता कि क्यों, पर मैं इतना असंतुष्ट कभी नहीं हुआ था और अक्सर मैं अपने उन
शुरुआती दिनों में उस समय को या उसके बाद के समय को महसूस किए बिना, यकीनन ही बहुत
ही राहत में था।
मैं उठा। सच में, क्या चाल थी। मेरे शरीर के निचले अंग एकदम कठोर हो चुके थे
जैसे प्रकृति ने मेरे घुटने को उठने से मना कर दिया हो, पैर कदमताल करते समय कभी
कभी एकदम दाएं तो कभी एकदम बाएं जा रहे थे। इसके विपरीत, पूरा धड़ एक पुराने चीथड
हुए थैले की तरह ढीला हो गया था और एक क्षतिपूर्ति प्रणाली के प्रभावों से जैसे
कूल्हे के अनजान और अचानक हिचकोले के साथ झूल रहा था। मैंने अक्सर ऐसी कमियों को
दूर करने का प्रयास किया है, अपनी छाती को कड़ा किया, अपने घुटनों को मोड़ा और अपने
क़दमों को एक दूसरे के सामने रखकर कदमताल करता हुआ चला, शायद पांच या छह कदम चला
होऊंगा, पर हमेशा मेरे साथ यही होता था, मेरा मतलब है संतुलन के खो जाने के बाद
गिर जाना। एक व्यक्ति को यह सोचे बिना चलना चाहिए कि वह क्या कर रहा है, उसे ऐसे
चलना चाहिए जैसे वह सांस लेता है और जब मैं यह सोचे बिना चलता हूं कि मैं क्या कर
रहा हूं मैं उसी मस्त चाल से चलता हूं, और जब मैं अपने दिमाग में चल रही उथलपुथल
के बारे में सोचते हुए चलता हूं तो केवल कुछ ही कदम चल पाता हूं और फिर गिर जाता
हूं। मैंने फिर फैसला किया कि मैं जैसा हूं वैसा ही रहूँगा। यह सफर मेरे ख्याल से
टुकड़ों में ही कम से कम एक निश्चित प्रवृत्ति के कारण था जिससे मैं खुद को पूरी
तरह मुक्त नहीं कर सका था और जिन्होंने अपेक्षानुसार ही मेरे चरित्र निर्माण करने
वाले वर्षों में यकीनन ही अपनी बहुत गहरी अनुमानित छाप छोड़ी थी। मैं समय की उस
अवधि को बता रहा हूँ जो कुर्सी के पीछे से मेरे लड़खड़ा कर चलने से लेकर मेरे पढ़ाई
पूरे करने तक विस्तारित है। मेरी उस समय बहुत ही बुरी आदत थी और वह थी अपने कपड़ों
में ही पेशाब कर देना या उनमें ही पखाना कर देना, जो मैं साढ़े दस वर्ष की आयु तक
में सुबह उठकर नियमित करता था और पूरा दिन सामान्य रहकर और अपने दिन को ख़त्म कर
सोचता था कुछ भी तो ख़ास नहीं हुआ था। अपने ट्राउजर को बदलने का ख्याल या अपनी मां
को जो केवल मेरा भला ही चाहती थी, ये गुप्त बात बताने का ख्याल भी मेरे लिए एकदम
असहनीय था, मैं नहीं जानता क्यों और बिस्तर पर लेटते समय तक कैसे मैं अपनी छोटी
जाँघों के बीच यह जलन और बदबू झेलता था, या वह यह जलन और बदबू एकदम मेरे शरीर के
नीचे तक मेरी अक्षमताओं के कारण पहुंच जाती थी। इससे मेरी चाल बदल जाती थी, मेरी
टांगें एकदम कड़ी होकर कदम दूर दूर होने लगते थे और शरीर के इस अजीबोगरीब लुढ़कने के
कारण, लोगों को मुझसे आती बदबू का पता नहीं चल पाता था और वे यह सोचने लगते थे कि
मैं दुनिया की परवाह किए बिना और अपने निचले हिस्से के कड़ेपन, जिसे मैं अनुवांशिक
गठिया पर मढ देता था, को बताने की एकदम दुविधा से दूर कितना हंसमुख और ज़िन्दगी से
भरपूर हूं। मेरी इस युवा होती गंध ने मुझे अपने समय से कुछ पहले ही छुपाने की
स्थिति को चाहने के कारण मुझे चिडचिडा और गैर भरोसेमंद बना दिया। किशोरावस्था की
बेचारी समस्याएं, कुछ बताया भी नहीं जा सकता। उन्हें सावधानी की जरूरत नहीं होती
हम अपने दिल की बातों पर प्रश्न उठा सकते हैं, पर धुंध नहीं हटेगी।
मौसम अच्छा था, मैं सड़क से उठा और पटरी के जितना नज़दीक जा सकता था, मैं चल रहा
था। यह इतनी चौड़ी पटरी मेरे लिए इतनी चौड़ी नहीं थी, जब मैं चलता हूं तो मुझे
असुविधा देने वाले अजनबियों से बहुत ही चिढ़ होती है। एक पुलिसवाले ने मुझे रोका,और
कहा “सड़क वाहनों के लिए है और यह पटरी पदयात्रियों के लिए।” यह एक पुराने क़ानून की
तरह था। तो मैं उस पटरी पर वापस आया, लगभग क्षमा याचना के साथ और मैंने वहां खुद
को सुरक्षित कर, उछलते उछलते हुए बढ़िया से बीस कदम पूरे किए, जब तक कि मुझे एक
बच्चे को कुचलने से बचाने के लिए जमीन पर अचानक से रुकना नहीं पड़ा। वह एक छोटी जीन
पहने था, मुझे याद है उसमें छोटी छोटी घंटियाँ थीं, वह घोड़ी पर जा सकता था या कोई
क्लाइडेसडेल पर जा सकता था और क्यों नहीं। मैं उसे खुशी खुशी कुचल सकता था, मुझे
बच्चों से नफरत थी और यह मेरे लिए एक सेवा ही होती पर मैं उसके नतीजों से डरता था।
हर कोई अभिभावक होता है और यही आपको ऐसे उलटे सीधे कदम उठाने से रोकता है। समस्या
पैदा करने वाले इन छोटे चूजों, उनकी प्रैम, झूलों, मिठाई, स्कूटर, स्केट, दादा,
दादी, नानी, गुब्बारों, और गेंदों और संसार की हर झूठी खुशी के लिए ख़ास के लिए हर
किसी को व्यस्त सड़कों पर जगह अरक्षित करनी चाहिए और इनके लिए ख़ास रास्ते बनाए जाने
चाहिए। मैं गिर गया और मेरे साथ एक वृद्ध महिला भी गिरीं, जो चमकीली और लेस वाली
पोशाक पहने थी और जिसका वजन लगभग सोलह पत्थरों के बराबर होगा/ उसकी चीखों से अच्छी
खासी भीड़ जमा हो गयी, मुझे लग रहा था कि उस बूढ़ी औरत की जांघ की हड्डी टूट गयी
होगी, बूढ़ी औरतों की जांघ की हड्डी बहुत ही आसानी से टूट जाती है, पर शायद ऐसा
नहीं था। मैंने इस पैदा भ्रम का लाभ उठाकर बचकानी कसमें खानी शुरू कर दीं जैसे मैं
ही पीड़ित होऊँ और मैं था भी पर में इसे साबित नहीं कर सकता था। वे कभी भी बच्चों
को नहीं मारते थे, उन्हें नहीं दबोचते थे फिर चाहे उन्होंने कितना ही कुछ न बिगाड़ा
हो, उनके किये कराए पर कितना ही पानी क्यों न फेरा हो। मैं भी बहुत खुशी से तो
उन्हें मारूंगा नहीं, मैं नहीं कहता कि मैं अपना हाथ उठाऊंगा, नहीं मैं एक हिंसक
पुरुष नहीं हूं, पर जब ये होगा तो मैं और लोगों को प्रोत्साहित करूंगा और उनके साथ
ही खड़ा रहूंगा। पर जैसे ही मैंने दोबारा चलना शुरू किया वैसे ही एक और पुलिसवाला
एकदम से सामने आ गया, मुझे नहीं लगता कि वह पहले वाला होगा। वह मुझ पर चीखा कि यह
सड़क के किनारे की पटरी सभी के लिए है और उसकी बात से जाहिर था जैसे मैं उस श्रेणी
में नहीं मिल सकता था। मैंने उससे पूछा तुम क्या चाहते हो कि इस गटर से उठकर मैं
कहां चला जाऊं? उसने कहा “भगवान के लिए कहीं भी जाओ, पर दूसरों के लिए भी कुछ जगह
तो छोड़ो, अगर तुम यहां पर चलने वाले लोगों के साथ नहीं चल सकते तो बेहतर था कि घर
पर ही रहते। शायद यही मैं चाहता था और यह कि उसने मुझे एक घर के साथ तो कम से कम
जोड़ा, भी कम संतोषजनक नहीं था। इसी समय एक जनाजा वहां से गुजरा तो लगा कुछ हुआ।
वहां पर अनगिनत हैट के झोंके और अनगिनत उँगलियों की फड़फड़ाहट थी। व्यक्तिगत रूप से
क्रोस का निशान बनाते समय मैं अपने दिल तक आते आते अपने दाएं, नाक, ठोड़ी, छाती के
बाईं तरफ और फिर दाईं तरफ से होता हुआ आ सकता था। पर वे जिस तरीके से कर रहे थे वह
एकदम लापरवाह और जंगली तरीके से कर रहे थे, वह ऐसे लग रहा था कि अचानक से ही किसी
ढेर में मर गया होगा, कोई सम्मान नहीं, उसके घुटने उसके चिम्बुक और हाथ के नीचे ही
किसी तरह रहे होंगे। एक जोशीले युवक ने मृतक को रोका और वह कुछ बुदबुदाया।
पुलिसवाले का जहां तक सवाल है तो उसके लिए उसने ध्यान आकर्षित किया, अपनी आँखें
बंद की और सलाम किया। घोड़ागाड़ी के अंदर से मुझे शोकाकुल परिजनों की एक जीवंतता की
बातचीत की एक झलक मिली, जाहिर है उनके भाई या बहन के जीवन के बारे में ही बात हो
रही थी। मैंने सुना कि दोनों ही पेटियों में अर्थी को एक ही तरीके से नहीं रखा गया
था, पर अंतर क्या था यह मुझे पता नहीं चल पाया
था। घोड़े तो ऐसे पाद रहे थे और मल त्याग कर रहे थे जैसे कि वे मेले में जा
रहे हों। मैंने किसी को भी घुटने के बल बैठे नहीं देखा था।
पर यह अंतिम यात्रा हमें छोड़कर जल्द ही आगे बढ़ गयी, अपनी चाल बढ़ाना बेवकूफी था।
परिवार के लोगों को लेकर अंतिम घोड़ागाड़ी जैसे ही आपको पीछे छोड़कर आगे जाएगी लोग
अपनी अपनी दुनिया में वापस आ जाएंगे और फिर आप लोग एक दूसरे से आँखें मिलाकर बात
कर सकते हैं। तो मैं भी तीसरी बार रुका, अपनी इच्छानुसार मैंने एक घोड़ागाड़ी ली।
अभी अभी मैं जिन लोगों के साथ भिड़कर या कहें खूब जोरदार बहस करने के बाद आया था,
वे मेरे बारे में बातें कर रहे होंगे, और मेरी एक बुरी छवि बना रहे होंगे। यह एक
बड़ा काला डिब्बा था जो अपनी स्प्रिंग पर उछल रहा था और हिचकोले ले रहा था, इसमें
छोटी खिडकियां होती है और आप एक कोने में सिकुड़ जाते हैं। इसमें फफूंदी या सीलन
वाली बदबू आ रही थी। मेरा हैट उस घोड़ा गाड़ी की छत को छू रहा था। कुछ देर बाद मैं
आगे की तरफ झुका और मैंने खिड़की बंद कर दी, फिर मैं घोड़े की तरफ पीठ करके बैठ गया।
मैं ऊंघ ही रहा था कि एक आवाज़ से चौंक गया, और वह उस कोचवान की ही थी। उसने दरवाजा खोला, जाहिर है वह खिड़की
से आवाज़ लगाकर थक गया होगा। मुझे केवल उसकी मूंछें ही दिख रही थी, “कहाँ चलना है?”
उसका सवाल था। वह अपनी सीट पर मुझसे यह पूछने के लिए बैठ गया था। और ये मैं था जो
पता नहीं कितनी दूर पहले से ही आ गया था। मैंने किसी सड़क, स्मारक का नाम खोजने के
लिए अपनी याददाश्त पर बहुत जोर डालने की कोशिश की, उसे खुरचा। मैंने उससे पूछा “क्या तुम्हारी घोड़ागाड़ी
बिक्री के लिए है?, पर घोड़े के बिना। घोड़े के साथ मैं क्या करूंगा? पर मैं इस
घोड़ागाड़ी के साथ भी क्या करूंगा? क्या मैं जितना चाहूं, उतना इस में रह सकता हूं?
मेरे लिए खाना कौन लाएगा? मैंने कहा “चिड़ियाघर चलो”। किसी भी देश की राजधानी में
ऐसा हो नहीं सकता कि चिड़ियाघर न हो। फिर
मैंने कहा “बहुत ज्यादा तेज नहीं चलना”। वह हंसा। शायद यह सुझाव कि चिड़ियाघर बहुत
तेजी से नहीं चलना है, ने उसे विस्मित किया होगा। जब तक कि घोड़ागाड़ी रहित होने की
आशंका न हो। जब तक कि मैं खुद, एक व्यक्ति के रूप में, घोड़ागाड़ी में जिसकी उपस्थिति
से इतना बदलाव न आ जाए कि घोड़ागाड़ी का मालिक, छत की छाया में मुझे देखकर और मेरे
घुटनों को खिड़की पर टिका देखकर यह न सोचने लगे कि क्या वाकई यह उसी की घोड़ागाड़ी
है, वाकई उसी की ही घोड़ागाड़ी है। उसने तेजी से एक बार
अपने घोड़े को देखा और खुद को भरोसा दिलाया। पर क्या कोई कभी भी यह जान पाता है कि
कोई अचानक से क्यों हँसता है? वह शायद मेरी उसी बात पर हंसा था, पर वह मेरे लिए तो
कोई चुटकुला नहीं थी। उसने दरवाजा बंद किया और अपनी सीट पर वापस चढ़ गया। और जल्द
ही घोडा भी हवा से बातें करने लगा।
हां, यह थोडा आश्चर्यचकित कर सकता है कि मेरे पास अभी भी थोड़ी रकम थी। अपनी
मृत्यु पर मेरे पिता मेरे लिए एक छोटी रकम एक उपहार के रूप में छोड़ गए थे, और उस
पर कोई भी प्रतिबंध नहीं था और मुझे अभी भी यह अचरज ही होता है कि किसी ने इसे
मुझसे अभी तक चुराया भी नहीं था। फिर मेरे पास धेला भी न होता। और फिर मेरी
ज़िन्दगी चलती ही और यहाँ तक कि उसी तरह जिस तरह मैं चाहता था। उस स्थिति का एक
नुकसान होता, वह था मेरे द्वारा मेरी मनचाही खरीद की संभावना का लोप होना, और आपको खुद ही काम करने के लिए बाध्य करना।
ऐसा होना दुर्लभ ही है कि जब आप ठनठन गोपाल होते हैं और फिर भी आपके आश्रय स्थल पर
समय समय पर अपने आप ही खाना आ जाए। आपको बाहर निकलना ही होता है और अपने आप ही सब
कुछ कमाना होता है, कम से कम सप्ताह में एक बार तो आपको खुद कमाना ही होता है। इन
हालातों में आपके पास अपना घर और कहने के लिए अपना पता भी नहीं होता है, और इससे
आप बच नहीं सकते हैं। थोड़ी देर से ही मुझे
पता चला कि वे किसी मामले के कारण मुझे ही खोज रहे हैं। नहीं पता कौन से चैनल के
माध्यम से और मैंने कई दिनों से न तो कोई अखबार ही पढ़ा था और न ही मैंने इन बीते
बरसों में किसी से भी खाने के अलावा किसी से तीन या चार बार बात की थी। किसी भी
कीमत पर मुझे इन मामलों को निपटा देना चाहिए था, तो मुझे वकील, श्री नीदर से कभी
भी मिलने की जरूरत न होती, अजीब लगता है न कि कैसे कोई व्यक्ति कुछ नामों को भूल
जाता है जैसे मैं उनके पास कभी गया ही नहीं था। उन्होंने मेरी पहचान की जांच की।
इसमें समय लगा। मैंने उन्हें अपने हैट की लाइनिंग में कुछ धातु के अक्षर दिखाए,
इसने हालांकि कुछ साबित नहीं किया, पर कुछ संभावनाएं जरूर बढ़ा दीं। उन्होंने
हस्ताक्षर करने के लिए कहा। वे एक बेलनाकार पैमाने से खेल रहे थे, वे बोले “तुम
इसे एक बैल को मार सकते थे”। उन्होंने गिनने के लिए कहा। एक युवा महिला शायद वेनल,
उस साक्षात्कार में उपस्थित थी, और जहां तक मुझे लगता है वह यकीनन ही एक गवाह के
रूप में ही होगी। मैंने उस पैसे को एकदम से अपनी जेब में भरना चाहा। उन्होंने कहा
“तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था।” वहीं मुझे लगा कि उसे मुझे हस्ताक्षर करने से
पहले ही गिनने के लिए कहना चाहिए था, शायद वह सही क्रम रहता। उन्होंने मुझसे पूछा “अगर जरूरत हो तो मैं
तुमसे कब मिल सकता हूँ?” सीढ़ियों पर नीचे उतरते हुए मैंने कुछ सोचा। जल्द ही मैं
उनके पास वापस पूछने गया कि आखिर यह पैसा कहाँ से आ रहा है क्योंकि मुझे यह जानने
का पूरा हक़ है। उन्होंने मुझे एक महिला का नाम बताया, जो मैं अभी भूल रहा हूं।
शायद उन्होंने मुझे अपने घुटनों पर तब झुलाया होगा जब मैं एकदम लंगोट में ही लिपटा
रहता होऊंगा और उन्हें मुझसे प्यार भी रहा ही होगा। कभी कभी यह पर्याप्त होता है।
मैं फिर कह रहा हूँ, कि मैं लंगोट में ही रहा होऊंगा क्योंकि बाद में प्यार होने
के लिए बहुत देर हो जाती है। यह तो इस पैसे का शुक्रिया कि मेरे पास थोडा बहुत कुछ
तो था, हां बहुत थोडा था। मेरी आने वाली
ज़िन्दगी के लिए अगर सोचूँ तो यह न के बराबर था, जब तक कि मेरे सारे अनुमान ही
ध्वस्त न हो जाएं, एकदम निराशावादी न हों।
मैंने अपने हैट के पीछे बने विभाजन के बगल में, घोड़ागाड़ी के मालिक के पीछे
थपथपा कर जांचना चाहा कि क्या मैंने सही गिना होगा। एकदम से सोफे से धुल का गुबार
सा आया। मैंने अपनी जेब से एक पत्थर निकाला और तब तक तक ठकठकाया, जब तक कि वह गाड़ी
रुक नहीं गयी। मैंने ध्यान दिया कि जहां
और गाड़ियां धीरे धीरे करके रुकती हैं यह एकदम से ही रुक गयी। मैंने इंतज़ार किया।
पूरी गाड़ी एकदम हिल रही थी। अपनी ऊंची सीट
पर कोचवान सब कुछ सुन रहा होगा। मैं घोड़े को अपनी आँखों से देख रहा था। वह अपनी
छोटी लगाम की निर्जीवप्राय मुद्रा में फंसा नहीं था, वह सजग ही था, और उसके दोनों
ही कान एकदम चौकन्नी मुद्रा में, उठे हुए थे। मैंने खिड़की के बाहर देखा, हम अब फिर
चल रहे थे। मैंने फिर से उस विभाजन पर थपकी दी, जब तक कि गाड़ी दोबारा रुक नहीं गयी।
बडबडाता हुआ वह कोचवान अपनी सीट से उतर कर मेरे पास आया। मैंने उसे दरवाजा खोलने
से रोकने के लिए अपनी खिड़की नीचे कर दी। वह अब और आग बबूला हो रहा था, गुस्से से
उसके चेहरा एक दम लाल हो गया था। मैंने उससे कहा कि मैंने उसे आज पूरे दिन के लिए
किराए पर लिया है। उसने जबाव दिया, कि उसे एक शवयात्रा में तीन बजे जाना है। ओह,
मृत्यु। मैंने उससे कहा कि मैंने चिड़ियाघर जाने का अपना इरादा बदल दिया है। उसने
कहा कि उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कहां जाएंगे पर वह अपने जानवर के कारण यह
चाहता है कि हम जहां भी जाएं वह बहुत दूर न हो। और उन्होंने हमसे आदिम लोगों के
बात करने की खासियत की बात की। मैंने उससे पूछा कि क्या आस पास कोई खाना खाने की
अच्छी जगह है। मैने उससे यह भी कहा कि वह भे मेरे ही साथ खा सकता है। मैं ऐसी
जगहों का नियमित ग्राहक बनना चाहता था। वहां पर एक मेज के दोनों तरफ समान लम्बाई
की दो बेंच थी। मेज के उस पार बैठकर वह मुझसे अपने जीवन के बारे में खूब बातें
करता रहा, उसने अपनी बीवी के बारे में बात की, अपने जानवर के बारे में, फिर अपने
जीवन के बारे में और अपनी उस भद्दी और घटिया ज़िन्दगी के बारे में बात की जो उसके
चरित्र के कारण थी। उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं महसूस कर सकता हूँ कि हर मौसम में
घर से बाहर निकलने का मतलब क्या है? मुझे पता था कि कुछ घोड़ागाड़ी वाले थे जो अपना
पूरा दिन कतार में अपनी गाड़ी के अन्दर अपना पूरा दिन आराम से और गर्मजोशी से
बिताते थे, इंतज़ार करते थे कि ग्राहक आकर उन्हें उठाए। ऐसी बातें बीते जमाने में
तो सक्षम थी, पर आज अगर इंसान को अपने दिन के ख़त्म होने तक कुछ रखना है तो और भी
कई तरीके थे। मैंने उसे अपनी हालत बताई कि मैंने क्या खोया है और मैं आखिर क्या
खोज रहा हूं। हम दोनों ही अपनी तरफ से बेहतर समझने का और बताने का प्रयास कर रहे
थे। उसे समझ में आया कि मुझसे मेरा कमरा छीन लिया गया है और मुझे दूसरा कमरा
चाहिए, पर बाकी उसकी समझ में नहीं आया। उसने अपने दिमाग में केवल वही लिया जहां से
इस बात को कोई बाहर नहीं निकाल सकता था कि मुझे एक पूरी तरह से तैयार कमरा चाहिए
था। उसने एक दिन पहले का अपनी जेब से शाम का समाचार पत्र निकाला और कुछ ऐसे
विज्ञापनों पर एक छोटी पेंसिल से निशान लगाया जिनमें केवल बाहर वालों को ही घर
देने के लिए खास तौर पर लिखा गया था। इसमें कोई शक नहीं है कि वह खुद को मेरी जगह
पर रखकर सोच रहा था या शायद वह अपने जानवर के कारण उसी शहर के कमरों को मुझे बता
रहा था। मैंने उसे यह कहकर और भी भ्रमित कर दिया था कि पलंग को छोड़कर मुझे किसी भी
तरह का कोई भी फर्नीचर नहीं चाहिए था और जैसे ही मैं उस कमरे में कदम रखूं, तब तक
सारा फर्नीचर यहाँ तक कि नाइट टेबल भी वहां से हट जानी चाहिए। लगभग तीन बजे हम उठे
और घोड़े को उठाया और सफर पर चल पड़े। घोड़ागाड़ी वाले ने मुझसे कहा भी कि मैं उसके
साथ ही बैठ जाऊं पर मैं चूंकि उस गाड़ी के अंदर बैठने का सपना देख रहा था तो मैं
पीछे अन्दर ही बैठा। हमने सुनियोजित तरीके से हर वह घर देखा, जिस पर उसने अखबार
में निशान लगाए थे। और सर्दियों का वह छोटा दिन अब ढलने वाला था। कभी कभी मुझे
लगता था कि मेरे पास भी इस रात की चादर छाने से पहले कुछ बहुत खुशनुमा दिन थे और
खास तौर पर बहुत ही आकर्षक लम्हे भी थे। उसने जिन पतों पर निशान लगाया था या अब
उन्हें काट दिया था, जो कोई भी आम इंसान करता, एक एक करके अपने आप ही निरर्थक
साबित हो रहे थे और एक एक कर वह उन्हें काटता जा रहा था। बाद में उसने मुझे वह
कागज़ दिखाया और उसे सुरक्षित रखने के लिए कहा जिससे उसे दोबारा न खोजना पड़े, जबकि
मैं तो अभी तक एकदम अस्तव्यस्त था। खिड़की के बंद होने के बावजूद, घोड़ागाड़ी की
चरमराहट और सड़क पर गाड़ियों के शोर के बावजूद, मैंने उसे उसकी ऊंची सीट पर बैठकर
गाते हुए सुना। उसने शवयात्रा में जाने की जगह मेरा साथ चुना था, यही मेरे लिए
बहुत उपकार की बात थी और इसके लिए मैं पूरी ज़िन्दगी के लिए उसका कर्जदार हो गया था।
वह गा रहा था “वह उस जगह से बहुत दूर है जहां उसका युवा नायक है” और यही शब्द मुझे
याद हैं। हर पड़ाव पर रुकने पर वह अपनी सीट से उतरता और मुझे मेरी सीट से उठने में
मदद करता। मैं दरवाजे की घंटी बजाता था, वह मुझे रास्ता बताता था और कभी कभी मैं घर
के अंदर गायब हो जाता था। मुझे लगता मेरा एक घर, जो मेरा है केवल मेरा, ओह कितने
समय के बाद, केवल मेरा घर। वह सड़क की पटरी पर मेरा इंतज़ार करता और वापस घोड़ागाड़ी
में चढने में मेरी मदद करता। अब मैं उसके अहसानों के बोझ तले खुद को महसूस करने
लगा था। वह अपनी सीट पर वापस जाता और हम दोबारा सफर पर शुरू हो जाते। तभी यह हुआ।
वह रुका, मैंने अपने आलस को झकझोरा और नीचे उतरने के लिए तैयार हुआ। पर वह दरवाजा
खोलने के लिए नहीं आया बल्कि अपनी बांह पकड़ने के लिए दी, जिससे मैं अपने आप उतर
सकूं। वह लैंप जला रहा था। मुझे उनमें मोमबत्तियां होने के बावजूद लैंप बहुत पसंद
थे और जैसे पहली लैंप के रूप में सितारे को ही समझता था। मैंने उससे पूछा कि क्या
मैं दूसरा दिया जला सकता हूं क्योंकि पहला वह जला चुका था। उसने मुझे अपना माचिस
का डिब्बा दिया। मैंने उसके कुंडे को घुमाते हुए एक छोटे उभरे हुए शीशे को खोला,
जलाया और उसे बंद कर दिया जिससे उसकी बत्ती आराम से जले और उसके छोटे घर में कुछ
खुशी, गर्माहट लाए और हवा से बचे। मुझे इससे खुशी मिली। हालाँकि लैंप की उस रोशनी
से हमने तो कुछ नहीं देखा और घोड़े की धुंधली सी परछाईं सी ही बनी, पर दूसरों को
जरूर बहुत दूर से हवा में झूलती हुई पीली रोशनी दिख रही थी। जब भी गाड़ी किसी की
आँख के सामने आती तो लाल या हरा भी एक बड़े समचतुर्भुज की तरह दिखता।
जब हमने कोचवान के बताए हुए अंतिम पते
को भी परख लिया, तो वह मुझे एक होटल में ले आया जहां पर वह जानता था कि मैं आराम से
रहूँगा। हां होटल में लाने का कुछ मतलब भी था, यह सही भी था। जब एक बार उसने सलाह
दे दी, तो उससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं चाहिए था। उसने आँख मारते हुए कहा कि यहाँ हर
प्रकार की सुविधा मिलेगी। मैंने उसके साथ यह बात सड़क की पटरी पर उस घर के सामने
कही, जो एकदम से सामने आ गया था। मुझे याद है कि लैंप के नीचे, घोड़े की बगल एकदम
खोखली और नम लग रही थी और दरवाजे के हत्थे पर घोड़ागाड़ी के मालिक के हाथ में उसके
लकड़ी के दस्ताने थे। उस घोड़ागाड़ी की छत मेरी गर्दन तक ही थी। मैंने उससे शराब पीने
के लिए कहा। घोड़े ने सुबह से कुछ भी खायापिया नहीं था। मैंने ये उस कोचवान से कहा
तो उसने जबाव दिया उसका घोड़ा जब तक अस्तबल न पहुँच जाए, तब तक कुछ नहीं खाता पता
है। अगर वह काम के दौरान कुछ खा ले, जैसे कोई सेब या गन्ना कुछ भी तो उसके पेट में
दर्द होने लगेगा और उदरशूल हो जाएगा, जिसे वह मर भी सकता है। यही कारण है कि उसके
दोनों जबड़ों को एक बद्धी से बांधकर रखा जाता है, क्योंकि किसी न किसी कारण से वह
आँखों से ओझल तो हो ही जाता है, तो वह आसपास से गुजरने वालों की दया का शिकार न हो
जाए, इसलिए ऐसा करना पड़ता है। कुछ ही ड्रिंक के बाद उस कोचवान ने मुझसे कहा कि उसे
और उसकी पत्नी को बहुत अच्छा लगेगा अगर मैं उनके यहां रात गुजारूं। उसका घर बहुत
दूर भी नहीं था। शांति के असीम फायदे के
साथ उन भावनाओं को याद करते हुए मुझे लग रहा था कि उसने पूरे दिन कुछ भी किया नहीं
था और लौट फिर कर अपने घर आ गया था। वे एक अस्तबल ऊपर रहते थे, एक बड़े से आँगन से
पीछे। एकदम आदर्श स्थिति, मैं उसके साथ रह सकता था। अपनी पत्नी से मिलवाने के बाद
अचानक से ही वह हमें छोड़कर गायब हो गया। वह मेरे साथ अकेले सहज अनुभव नहीं कर रही
थी। मैं समझ सकता हूं, मैं भी ऐसे अवसर पर
चकित सा महसूस करता हूं। या तो इसे ख़त्म करना था या आगे बढ़ना था। मैंने इसे अंत
करने का फैसला किया और कहा कि मैं नीचे अस्तबल में सो जाऊंगा और पलंग की तरफ बढ़ा।
कोचवान ने इसका विरोध किया पर मैंने जोर दिया। उसने अपनी पत्नी को मेरे सिर पर
होने वाले फोड़े को दिखाया, जो मैंने शिष्टाचार वश हटा दिया था। उसने कहा “तुम्हें
इसे सही कराकर लाना चाहिए था” कोचवान ने एक डॉक्टर का नाम बताया जिसकी वह इज्ज़त
करता था और जिसने उससे एक सीट की कठोरता के जैसे छुटकारा दिलाया था। उसकी पत्नी ने
कहा “अगर वह अस्तबल में सोना चाहता है तो क्या समस्या है, उसे सोने दो” कोचवान ने
मेज से लैंप उठाया और मुझे सीढ़ियों या कहें नसैनी से लेकर नीचे गया जिससे उसकी
पत्नी के पास एकदम अन्धेरा हो गया। उसने घोड़े का कंबल जमीन पर भूसे पर एक कोने में
बिछाया और मुझे एक माचिस की डिब्बी दी, जिससे अगर मुझे जरूरत हो तो मैं उसे जलाकर
रोशनी कर सकूं। मुझे याद नहीं कि घोड़े उस समय क्या कर रहे थे। उस अंधेरे में मुझे
उसकी अजीब आवाज़ से यह लगा कि वह शराब पिए हुए है, चूहों की फौज का अचानक से आना और
कोचवान और उसकी पत्नी की फुसफुसाहट, जिसमें वे यकीनन ही मेरी बुराई कर रहे होंगे।
मैंने माचिस की डिब्बी अपने हाथ में ली, हां सुरक्षा माचिस की एक बड़ी डिब्बी। मैं
रात में उठा और एक तीली जलाई। उस क्षीण सी रोशनी में मुझे वह घोड़ागाड़ी खोजने में
मदद हुई। मुझे उसी समय उस अस्तबल को आग लगाने की तीव्र इच्छा ने घेर लिया। मैंने
उस अँधेरे में घोड़ागाड़ी को खोजा और दरवाजा खोला, उसमें चूहे उछलकूद मचा रहे थे, जैसे
ही वे उससे बाहर निकले, मैं उसमें चढ़ गया और जैसे ही मैं उसमे सही से बैठ गया तो
मैंने दखा कि अब घोड़ागाड़ी ज्यादा ऊंची नहीं है, चूंकि उसके शाफ्ट जमीन पर थे तो
ऐसा होना लाजमी भी था। यह बेहतर था तो इससे मैं पीठ लगाकर आराम से बैठ गया, दूसरी
सेट पर मेरे पैर मेरे सिर से ऊपर थे। कई बार रात में मुझे ऐसा लगा कि घोड़ा मेरी
तरफ ही देख रहा है और मैंने उसके नथुने से आती हुई सांस को भी महसूस किया। अब
चूंकि उसने जीन नहीं पहनी हुई थी तो गाड़ी में मेरी मौजूदगी उसे परेशान कर रही होगी।
मुझे बहुत ठण्ड लग रही थी और मैं कंबल ले जाना भूल गया था और उसके लिए उठना था और
उसे लाना था। घोड़ागाड़ी की खिड़की से अब अस्तबल की खिड़की अब और ज्यादा साफ दिखाई दे
रही थी। मैं उस घोड़ागाड़ी से बाहर आया। अब अस्तबल में उतना अँधेरा नहीं था, मैंने
धुंधली आँखों से हौदिया, कठरे, लटकती हुई जीन, और बाल्टी और ब्रश सभी को देखा। मैं
दरवाजे तक गया पर उसे खोल नहीं सका। घोड़े ने मुझसे अपनी आँखें नहीं हटाई थी, क्या
घोड़े कभी सोते भी हैं? मुझे ऐसा लग रहा था कि कोचवान से उसे बांध दिया था, शायद
हौदिया आदि से। तो मुझे खिड़की से ही अन्दर जाना था। पर यह भी सरल न था, तो सरल
क्या था फिर? मैंने पहले अपना सिर घुसेड़ा,
मेरे हाथ आंगन की जमीन पर एकदम समतल थे, जबकि मेरी टांगें अभी भी फ्रेम से बाहर
आने के लिए लटक रही थी। मुझे घास का वह गुच्छा अभी भी याद है जिसे मैंने खुद को निकालने के लिए दोनों ही हाथों से
हटाया था। मुझे अपना कोट उतारना चाहिए था और उसे उसी खिड़की से बाहर फेंकना चाहिए
था जिससे मैं अभी अभी अंदर आया था, पर इसका मतलब होता कि मैं उसके बारे में सोच
रहा हूं। जैसे ही मैं आंगन से निकला तब ही कुछ मेरे दिमाग में आया। शांति, क्लांति।
मैंने माचिस की डिब्बी में एक बैंकनोट रखा, और आँगन में वापस गया और उसे खिड़की के
उसी कोने में रख दिया जहां से मैं अभी आया था। घोडा अभी भी खिड़की पर ही था। पर
जैसे ही मैं सड़क पर कुछ कदम आगे बढ़ा, मैं वापस आंगन में गया और मैंने अपने बैंकनोट
को वापस ले लिया। मैंने माचिस को वहीं छोड़ दिया, आखिर वे मेरी तो थी नहीं। घोड़ा
अभी भी खिड़की पर ही था। अब मैं घोड़े से ऊब गया था। सवेरा होने भी वाला था। मैं
नहीं जानता मैं कहाँ था? मैं बस सूरज के उगने की तरफ चलता जा रहा था, उस तरफ बढ़ता
जा रहा था जहां से मुझे लगता था कि सूरज उगना चाहिए, मैं बस जल्दी से जल्दी उस
रोशनी के नज़दीक जाना चाहता था। मैं या तो समुद्र या रेगिस्तान के क्षितिज पर जैसे
था। जब मैं सुबह बाहर होता हूँ, तो मैं सूरज से मिलने जाता हूँ, और शाम को जब मैं
बाहर होता हूँ तो मैं तब तक उसे देखता हूं, उसका पीछा करता रहता हूं जब तक मैं उस
ढले हुए सूरज के साथ डूब न जाऊं। मैं नहीं जानता कि मैंने यह कहानी क्यों सुनाई।
मैं कुछ और सुना सकता था। शायद अगली बार आपको कोई और कहानी सुनाऊं। मेरे दोस्तों,
पवित्र आत्माओं, आप खुद ही देखें कि आप किसके जैसे हैं।
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