सोमवार, 27 मार्च 2017

यह प्रेम वह प्रेम



चौदह फरवरी का खुमार एक दिन बाद भी हवाओं में था, फिजाओं में था। आज भी चौदह फरवरी की तरह मॉल में भीड़भाड़ थी। दिल्ली से सटे वैशाली और वसुंधरा के मॉल आज भी उसी तरह गुलाबी और लाल फूलों और गुब्बारों से भरे थे। हाथों में हाथ लिए न जाने कितने युवा दिल आज भी अपनी भावनाओं का इज़हार करने के लिए मॉल में टिके हुए थे। तो कुछ लोग अभी भी हां और न की ऊहापोह में थे। इन सब चमक और दमक से परे माला ऑटो का इंतज़ार कर रही थी। घर में उसका बेटा उसका इंतजार कर रहा होगा! सुबह से शाम तक ऑफिस और घर के बीच में उसका बेटा पिसा जा रहा था। आलोक तो हमेशा ही रात को दस बजे से पहले नहीं पहुँचता था। उसके लिए तो प्यार केवल आधे घंटे की घटना होती थी। माला के लिए प्यार शायद अभी कहीं दबा हुआ था। माला इस समय ऑटो का इंतजार कर रही थी, मगर इस मॉल के आगे या तो भरे हुए औटो आ रहे थे या फिर बड़ी बड़ी कारें।
“उफ, रोज़ का ही यह काम है!” माला ने अपने मन में मिस्मिसाते हुए कहा!
“का हुआ मैडम जी, टम्पू न मिला?” पीछे से ऑटो वाले ने उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए पूछा
वैसे तो माला इन नज़रों से रोज़ ही दो चार होती थी, मगर आज उसे बुरी तरह गुस्सा आ गया! वह पॉइंट नॉएडा और मोहननगर के बीच का पॉइंट था। यहाँ पर रोज़ ही इतनी ही भीड़ होती थी, और ये टैम्पू वाले, ये तो सवारियों को इंसान समझते ही नहीं हैं। उनके लिए तो बस दस रूपए की सवारी ही होती थी। माला इन शेयर्ड टैम्पू में बैठने से बचती थी, वह नहीं बैठती थी, शेयर्ड ऑटो का इंतजार करती थी। माला के शरीर को ऊपर से नीचे तक अन्दर तक चीर देने वाली नज़र से एक बाद फिर से उसने पीछे की सीट पर इशारा किया “मैडम जी, बैठ जाओ, ऑटो न मिलेगा आज! जब जो मिले उसी से काम चलाओ!”
माला का मन हुआ कि उसे दो थप्पड़ लगा दे, आखिर हद होती है, मगर उसे इन लोगों के रैकेट का भी पता था। ये सब देखने में जरूर गरीब लगें, मगर सम्बन्धों में अमीर होते हैं। उसे याद है एक दिन एक लड़की ने एक टैम्पू वाले को थप्पड़ मार दिया था, तो सभी बाकी टैम्पू वाले अपने साथी की तरफ ही मुड़ गए थे। उस दिन का बवाल देखने के बाद, माला बहुत डर गयी थी, और उसे यह भी पता था कि आलोक तो उसे बचाने नहीं आएगा!
जैसे जैसे समय बढ़ रहा था, माला की चिंता बढ़ती जा रही थी। बेटा अब बेचैन होने लगा होगा!  माला को इस बेचैनी में आईलवयू कहता आलोक याद आता था।
लव, माला को हंसी आई! कितना भ्रामक शब्द है! ऑटो की आवाज़ से वह चौंक कर वर्तमान में आई! अब माला की आँखें मॉल के प्रवेश द्वार पर अटकने लगी थीं। कई लड़कियों ने छोटी ड्रेस भी पहन रखी थी और उनके कमर में हाथ डाले उनके बॉयफ्रेंड बिना किसी डर या संकोच के इधर से उधर सफर कर रहे थे। कुछ जोड़े मॉल में ही चुम्बन लीला में लीन थे।
“देख लो, ये हाल है आज की लड़कियों के? न जाने कैसे ये किसी का घर बसाएंगी?” माला के बगल में खड़ी हुई औरत ने मॉल के अंदर जाती हुई लड़कियों को देखकर कहा
“रहने दीजिए न, और जो घर की परवाह करती हैं, उन्हें क्या मिलता है?” माला ने उस महिला के अनर्गल हस्तक्षेप का जबाव देते हुए कहा। माला ने कंधे उचकाते हुए अपने आधे घंटे के प्रेम को याद करके कहा।
“जीने दीजिए न उन्हें अपनी ज़िन्दगी, आप और हम कौन होते हैं!” माला ने मोबाइल पर समय देखते हुए कहा। अब तो बात उसकी बर्दाश्त से बाहर हो रही थी, उसने सोचा कि थोडा आगे जाकर ही किसी ऑटो का इंतज़ार करे या फिर टैम्पू में ही चली जाए!
उस मोड़ पर इधर उधर कहीं से भी कोई गाडी आ जाती है। वह मोड़ बहुत ही खतरनाक और तीखा है, न जाने कितनी बार वह भी गिरते गिरते बची है। और आज तो भीड़ भी थी, वह बहुत सम्हलते हुए आगे बढ़ी। तभी सामने से नॉएडा की तरफ जाने वाले टैम्पू ने उस सड़क पर जिस तरह से एंट्री की, “सेक्टर बांसठ, तिरेसठ वाले, दस रुपया सवारी”, उससे न केवल माला चौंकी, बल्कि सामने से आ रहा एक प्रेमी युगल भी चौंक गया और लड़की नीचे गिर गयी! उसके हाथों में जो गिफ्ट आदि थे, वे वहीं सड़क पर फैल गए! लड़का इतने वाहनों की भीडभाड से घबराकर पीछे बैठ गया जबकि लड़की को न केवल चोट आई थी, बल्कि उसकी छोटी ड्रेस फटकर और भी छोटी हो गयी थी। वह घबराकर अपने मित्र को देख रही थी, मगर उसे हर तरफ केवल वाहनों की आवाज़ ही दिख रही थी। उसे अपना वह मित्र कहीं नहीं दिखा, जिसका हाथ पकड़ कर शायद उसने कुछ लम्हों को जिया होगा!
“देखा!” माला को कोहनी से टोकते हुए उसी महिला ने कहा
“ये होता ही आज का प्यार! चला गया न! चलिए, हम लोग आगे चलते हैं, यहाँ तो भीड़ बढ़ेगी अब!” उस महिला ने कहा। माला अब थक चुकी थी। आलोक का घर देर से आने का मेसेज उसके मेसेजबॉक्स में झाँक रहा था। माला ने चाहा कि वह उस लड़की को एक थप्पड़ मारकर कहे कि प्यार व्यार कुछ नहीं होता!
जैसे ही वे लोग दस कदम आगे बढे, एकदम से किसी गाड़ी में ब्रेक लगने की आवाज़ के साथ एक  मानव स्वर भी सुनाई दिया “मार डाला!” माला ने नज़र उठाई! “उफ, ये आज क्या हो रहा है!” उसने झुंझलाते हुए अपने मन से कहा।
माला की आँखों के सामने एक टूटा रिक्शा और उसका घायल रिक्शेवाला पड़ा था। उसके पैरों में चोट थी, रिक्शा टूट गया था और सामने सफेद स्कोर्पियो से एक जोड़ा उतर रहा था। नॉएडा से सटे हुए वैशाली और वसुंधरा इलाके में आईटी बूम के बाद नवधनाढ्यों की संख्या बहुत ही बढ़ गयी है। माला को हालाँकि बहुत ही देर हो रही थी, मगर फिर भी रिक्शेवाले के पैरों से बहते हुए खून और उसके टूटे हुए रिक्शे को देखकर वह आगे कदम बढ़ा न सकी!
“अबे साले, तुझे मरने के लिए मेरी ही गाड़ी मिली, ये गाडी में जो खरोंच आई है, उसका खर्चा तेरा बाप देगा क्या?” गाडी से उतरते ही उस लड़के ने रिक्शेवाले से कहा
“मालिक, माफी, बहुत भीर हथी, जगह ही नहीं थी, फिर भी मालिक माफी दय दयो!” वह अपने दर्द को जज़्ब करते हुए माफी मांग रहा था।
माला को बहुत गुस्सा आया। उसने तुरंत ही सौ नंबर को फोन लगाया और सारी शिकायत करने के बाद मैदान में कूद पड़ी! “मैडम, ये आपके मतलब का नहीं है, जाइए आप यहाँ से?” एक दो ऑटो वालों ने उसे पीछे करते हुए कहा
“क्यों, मेरे बस का नहीं है! मैंने पुलिस को फोन कर दिया है और जैसे ही पुलिस आएगी, जनाब की सारी हेकड़ी निकल जाएगी!”  माला ने उसे गुस्से से देखते हुए कहा
“अरे, काहे मैडम जी! बाउजी की कौन्हू गलती नहीं है! वो तो हमाओ जी बलंस बिगर गाओ” रिक्शेवाले ने माला से हाथ जोड़ते हुए कहा।।
माला उसका दर्द महसूस कर पा रही थी, मगर चूंकि कोई बड़ा आदमी नहीं गिरा था, तो अस्पताल पहुंचाने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा था। उस गाडी वाले से माला ने कहा “उसका रिक्शा टूटा है, आप उसे पैसा दीजिए”
“पैसा और मैं, मैं अठन्नी नहीं दूंगा उसे!” स्कोर्पियो वाले ने माला की मांग ठुकराते हुए कहा
धीरे धीरे भीड़ बढ़ने लगी थी और उस गाड़ी वाले पर उस रिक्शेवाले को दवाई के पैसे और रिक्शे की मरम्मत के पैसे का दबाव बढ़ने लगा था। पुलिस के आते ही बाकी तो सब तितर बितर हो गए मगर माला ने न डरते हुए पुलिस को सारी बात बता दी!
“माई बाप, माई बाप, जाए छोड़ द्यो,” पीछे से एक महिला स्वर आया
माला ने एकदम से मुड़कर देखा, सांवले रंग की मझोले कद की सीधे पल्ले की साड़ी पहने करीब बत्तीस बरस की एक औरत उसके पीछे खडी थी। उसके माथे पर लाल रंग की बड़ी गोल बिंदी थी और मांग में सिन्दूर भरा हुआ था। लाल चूड़ी और सस्ती पायलें भी उसकी ख़ूबसूरती को बढ़ा रही थीं।
“तुम कौन?” पुलिस वाले ने पूछा
“हम, जे रमैया के महरारू। साहब, हमें कुछो न चाहिए! रमैया ठीक ठाक है, और का  चाहिए! जैसें ही सुनी, वैसे ही जे घोल बनाय के लाए, अब जे घोल लगाय दियें जा पे, एक ठो टिटनेस का इंजेक्शन होय जाइये, बस जे ठीक! जाने चोट दई है, बाके पैसन से इलाज न कराइए, जाके बदले में हम दोय घर को काम और पकड़ लियें!, साहब, हमाए बच्चन को बाप है जे, हमाओ सुहाग, हमाओ पियार, बाके खून को सौदा नहीं”
और उसने अपने साथ आए बच्चों के साथ मिलकर उसका रिक्शा उठाया और धीरे से उसे दूसरे रिक्शे पर बैठाया। माला के पास आकर उसने हाथ जोड़े “मैडम जी, आपने बात तो सही कही, मगर आप खुद ही बताओ, जाने तुम्हारे पियार को चोट दई होय, बाके घर को पानी पिय ल्यो तुम? न हम तो न? हम खुद ज्यादा मेहनत करके जाकी चोट सही कर लियें! नमस्ते मैडम!”
उस औरत के जाते ही माला एक सोच में पड़ गयी? यह औरत, अनपढ़ औरत, गंवार औरत, जमाने के लिए घर में काम करने वाली औरत, मगर प्रेम की परिभाषा रचने वाली औरत! माला को अब इन मॉल की चमक दमक में बसा हुआ प्यार बहुत ही फीका लगने लगा था

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