“मुझे जाने दो! आखिर मैंने किया
क्या है?” स्मिता की आँखें उस अनऑथराइज़ बस्ती में बेतरतीबी से बने हुए घरों के बीच
गलियों में किसी तरह खुद को बचाती हुई लाजो चाची, रुखसाना आपा और निर्मला दीदी को
खोज रही थी। स्मिता ने जब से सार्वजनिक जीवन में कदम रखा था तब से ही उसके जीवन
में दूसरों की खुशियाँ ही रह गईं थी। वह लाजो चाची के बेटे रमेश की शादी में कितनी
खुश हुई थी। पार्टी के महिला मोर्चा के साथ जुड़कर उसका न केवल बीमा वाला काम चल
निकला था बल्कि उसने कई माइक्रो फाइनेंसिंग कंपनी से लोगों के सपने साकार करने के
लिए लोन भी दिलवाए थे।
अपनी जान बचाकर भागती हुई स्मिता को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वह करे तो
क्या, क्या वह भाग सकती है? नहीं वह नहीं भाग सकती है! वह घिरी हुई है। वह उस दिन
को कोस रही थी, जिस दिन वह न केवल महिला मोर्चा के साथ जुडी थी बल्कि वह चुनावों
में जी जान से रक्षा जी को जिताने में लग गयी थी।
रक्षा जी के नाम से उसे ध्यान आया कि वह रक्षा जी से बात करके देखती है।
मगर उसके पास बात करने का समय ही कहाँ था! वह तो आज रिकवरी एजेंट के साथ ईएमआई की
बात करने आई थी। उसे तो उन लोगों ने बंद कर दिया था कमरे में और न जाने उसके साथ
क्या कर रहे थे, मगर उसे केवल बस्ती से बाहर ही खदेड़ रहे थे। स्मिता को लगा कि
पहले अपनी जान बचाए और बाहर निकले, बचेगी तभी तो कुछ कर पाएगी। ओह, ये कैसी विडंबना
थी। कल तक सबकी चहेती स्मिता, हर घर के किसी न किसी रिश्ते में बंधी स्मिता, किसी
के दीदी स्मिता, किसी की बहू स्मिता, किसी की भाभी स्मिता, आज इस तरह पराई हो गयी
थी, न केवल पराई बल्कि दुश्मन कि वे उसे किसी भी कीमत पर अपनी बस्ती से बाहर
फेंकने पर अमादा थे।
स्मिता ने फिर से एक बार उस भीड़ की तरफ नज़र डालने की कोशिश की। ये रिश्ते
इतने भावशून्य क्यों हो गए थे? उतने ही भावशून्य जितने शायद दुर्योधन और कौरवों के
हो गए होंगे! पांडवों को बिना युद्ध के एक इंच भी भूमि न देने की हठ में एक
महाविनाश को न्योता देने वाले चेहरों पर भी यही भावशून्यता रही होगी, जब वे
रिश्तों के खिलाफ खड़े हुए होंगे!
रिश्तों की हंसी ठिठोली में भीगी रहती थी स्मिता! उसके पास कितने रिश्ते
थे, कई तो महिला मोर्चा के ही थे। स्मिता बस्ती से बाहर निकल कर किसी तरह अपनी जान
बचाकर बैठ गयी थी। उसके सामने लाजो चाची का संवेदनहीन चेहरा आ रहा था और साथ ही
लाजो चाची के इलाज के समय जो उसने उनके बीमा क्लेम हासिल करने के लिए भाग दौड़ की
थी उस समय उनके पूरे परिवार का कृतज्ञ चेहरा सामने आ रहा था। लाजो चाची ने उसकी
कितनी बलाएं ली थीं, “अरे बिटिया तुम न होतीं तो का होतो! हमाओ तो सब कुछ ख़त्म होय
गयो होतो! तुमने भाग दौड़ कर दई!”
जब से वह बीमा एजेंट बनी थी, वैसे अब सम्मानजनक भाषा के रूप में
इंश्योरेंस एडवाइज़र कहने लगे हैं! जब वह एडवाइज़र बनी थी, तब से उसने अपना सारा
ध्यान केवल काम पर ही लगा लिया था। हालांकि ट्रेनिंग में तो केवल पालिसी बेचना ही उसे सिखाया गया था मगर उसने कभी भी
बिना मतलब के कोई पालिसी नहीं बेची थी।
शुरू के दो तीन साल संघर्ष के बाद उसकी गाड़ी चल निकली थी। कितना अच्छा बीत
रहा था समय! राहुल के साथ शादी के बाद तो जैसे उसकी ज़िन्दगी के सफर को रफ्तार मिल
गयी थी। राहुल से उसकी मुलाक़ात एक क्लाइंट मीट के दौरान हुई थी। राहुल एक लोन
मैनेजर था। एक अच्छी खासी नौकरी और तनख्वाह थी। पांच सालों में ही उनके पास सब कुछ
था, कार, घर और उनकी छोटी सी बेटी!
स्मिता ने गहरी सांस ली! उसने पीछे मुड़कर देखा, पीछे गली में उसके सभी
रिश्ते खड़े थे, तार तार होते हुए! उसने जैसे हर लम्हे को अपनी मुंदती आँखों में
मुंदते हुए देखा। लम्हों की जलन कितनी घातक होती है, उसे आज पता चला। राहुल ने उसे
उस दिन शायद इसी जलन के चलते महिला मोर्चा के साथ जुड़ने के लिए मना किया होगा!
“देखो यार, बीमा ही बेचो, ये राजनीति में क्या जाना, हमें क्या मतलब?”
उसने राहुल को मनाते हुए कहा था “राहुल देखो न, और कितनी नई महिलाओं से
मिलूंगी, अपना बिजनिस भी बढेगा!” राहुल को पता था कि स्मिता जो एक बार ठान लेती
है, वह हमेशा करती है। उसने अपने हथियार डाल दिए थे। इधर स्मिता का उठना बैठना जब
से पार्टी के महिला मोर्चा में हुआ था, तब से वह एक नई ही दुनिया में डोलने लगी थी।
उसके व्यक्तित्व और लोगों के साथ तुरंत घुलमिल जाने की खूबी के कारण उसे नगरप्रमुख
के पद पर नियुक्त किया गया था, और उसके अधीन खंड प्रमुख, खंड उपप्रमुख, मंत्री,
आदि जैसे पद थे। स्मिता तो एक नई ही दुनिया में थी। यहाँ पर उसके बीमा बेचने के
कौशल काम आए थे, जिस तरह वह लोगों को मना लेती थी कि बीमा कितना जरूरी है, वैसे ही
घर घर जाकर औरतों को यह समझाना उसके बाएँ हाथ का खेल होता था कि आखिर उसकी पार्टी
को वोट देना क्यों जरूरी है। दिन और रात उसका फोन टिनटिनाता रहता था।
राहुल को शुरू में अजीब लगा था, मगर धीरे धीरे उसके सेल्स वाले दिमाग ने
अपना मुनाफा खोज ही लिया था! राहुल ने भी स्मिता के माध्यम से कई ऐसी जगहों पर
प्रवेश पा लिया था जहां पर वह नहीं जा सकता था। उसके लोन प्रोडक्ट भी बिकने लगे थे।
वह तो पक्का हार्डकोर सेल्स पर्सन था। उसकी कंपनी तमाम नए ऑफर्स के साथ लोन दे रही
थी। उसने भी स्मिता के डेटाबेस का इस्तेमाल करते हुए अपनी तरक्की की राह बनाई!
“ओह राहुल! ये क्या किया?” स्मिता अपने सिर पर हाथ रखकर रो रही थी! वह
समझ नहीं पा रही थी। उसकी आँखों के सामने वे सब नुक्कड़ सभाएं आ रही थी, जिनमें वह
रक्षा जी के बगल में खड़ी होकर कर्ज माफी की घोषणा करती थी। वह कितने जोश में घोषणा
करती थी कि हमारी सरकार आएगी तो आपके सारे लोन माफ हो जाएंगे! कर्जमाफी को लेकर हर
तरफ शोर होता चला गया था। आह, कितना नशा था उस एक शब्द में! एक उन्माद था!
उन्माद और कर्जमाफी जैसी लोकलुभावन घोषणाओं के परों पर बैठकर चुनाव की
वैतरणी पार कर ली थी रक्षा जी ने और स्मिता के हिस्से आई थी, खूब तारीफें! जिला
स्तर क्या प्रदेश स्तर तक उसकी धाक जमी थी, स्त्रियों को एकजुट करने के लिए वह एक
प्रमुख व्यक्ति के रूप में उभर कर आई थी। वह पार्टी के हाथ में एक हथियार थी। मगर
जल्द ही स्मिता को इस हथियार के नुकीलेपन का अहसास हो गया था। जैसे भस्मासुर ने वर
पाते ही भोले बाबा पर वरदान को आजमाया था, उस समय भोले की क्या गत हुई होगी वह उसे
एक दिन राहुल का उतरा चेहरा देखकर लग गया। स्मिता को वह दिन नहीं भूलता जब राहुल
उदास और उतरे चेहरे के साथ घर आया था। पानी पीते पीते वह स्मिता का हाथ पकड़ कर
रोने लगा था;
“मुझे बचाओ, केवल तुम ही मुझे और मेरी नौकरी को बचा सकती हो!”
जो कुछ राहुल ने बताया, उसे सुनकर स्मिता के पैरों तले जमीन खिसक गयी।
राहुल की कम्पनी ने जिन लोगों को लोन दिए थे, उन लोगों ने विधायक साहिबा के वादे
का हवाला देकर लोन की ईएमआई देना बंद कर दिया था। राहुल के वहां जाने पर उससे न
केवल अपशब्द बोले गए थे बल्कि उसे धमकी भी दी गयी थी कि आइन्दा से बैंक का कोई भी
आदमी इस बस्ती में आया तो वह वापस नहीं जाएगा। विधायक साहिबा ने लोन माफ करने का
वादा किया था, अब वे कोई किश्त नहीं देंगे। राहुल के पास न तो पुलिस का प्रोटेक्शन
था और न ही राहुल ऐसा व्यक्ति था जो कोई विरोध झेल पाता, वह तो कोमल साआदमी था जो
एमबीए करने के बाद केवल सेल्स और मार्केटिंग में विश्वास रखता था।
रिकवरी के लिए रिकवरी वाले करें! ऐसा कहकर वह चला तो आया था, मगर अगर सही
रिकवरी नहीं हुई तो उसका पूरा ट्रैक रिकोर्ड खराब हो जाएगा और फिर वह क्या करेगा?
वह फंसता जा रहा था! राहुल के साथ साथ स्मिता को भी लग रहा था जैसे वे अजगर की पकड़
में आ गए हैं।
“तुम चिंता न करो, कल रिकवरी एजेंट के साथ मैं जाऊंगी!” स्मिता ने उसका
हाथ दबाकर आश्वासन दिया था। राहुल उसकी गोद में ही सो गया था उस दिन! स्मिता सिहर
गयी थी। रक्षा जी से बात करने की हर कोशिश बेकार, पार्टी के जिला प्रमुख से बात की
तो उन्होंने अपनी विवशता जाहिर कर दी, “क्या करें मैडम, अब देखिये ये तो प्राइवेट
कम्पनी और उसके क्लाइंट के बीच की बात है, हम क्या कहें! हम तो सरकारी लोन माफ करा
सकते हैं और करा ही रहे हैं”
स्मिता ने बहुत कहा कि वे चलकर ये सब बातें उन लोगों से कहें! मगर वह भूल
गयी थी कि राजनीति में संख्याबल जरूरी होता है, वे अपने वोटबैंक का नुक्सान क्यों
करेंगे!
वे चुपके से बोले “मैडम, काहे पड़ रही हैं, च्क्करे में! अपने हजबैंड को
बोलो कहीं और नौकरी खोज लें और रिकवरी एजेंट भेजना वैसे भी गैरकानूनी है! पुलिस भी
मदद नहीं करेगी! तो पचड़ा छोड़ो और आगे बढ़ो! नौकरी वौकरी चाहिए तो बताना, अच्छा
नमस्कार! मामला सुलझे तो बताना, रक्षा जी को डिस्टर्ब न करना!”
खाली खाली स्मिता भरे विश्वास के साथ उस बस्ती में गयी थी, मगर उसे क्या
पता था, रिकवरी एजेंट को तो बंधक बना
लेंगे वे, और उसे इस तरह निकालेंगे! “जाओ, हम कोई किश्त नहीं देंगे, आप ही तो आईं
थीं न! सारे कर्ज माफ होंगे! अब करो माफ!”
रक्षा जी का फोन लगातार स्विच ऑफ आ रहा था.................
राहुल की आवाज़ उसके कानों में गूँज रही थीं, “प्लीज़ सेव मी! केवल तुम ही
बचा सकती हो! आई विल गेट टर्मिनेटिड, नाउ आई विल नोट यूज़ योर डेटाबेस! बट प्लीज़
सेव मी! क्या होगा! ओह स्मिता!”।
पीछे से उन्मादी शोर आ रहा था “हम किश्त नहीं देंगे! विधायक जी ने
कर्जमाफी की है! उन्हीं से मांगो!”
और वह उस चौराहे पर एक गिलास मशीन का पानी पी रही थी जहां से उसने और
रक्षा जी ने “कर्जमाफी की घोषणा की थी। उसके सामने कर्जमाफी और भस्मासुर दोनों
गड्डमगड्ड हो रहे हैं.................
सोनाली मिश्रा
सी-208, जी-1
नितिन अपार्टमेन्ट
शालीमार गार्डन, एक्स- II
साहिबाबाद, गाज़ियाबाद
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