“क्या तुम मुझे वाकई मारोगी?” उसने मुझसे पूछा!
“हां सोच तो रही हूँ!”
“मतलब?”
“मतलब, सोच रही हूँ तुम्हें मारने की!, वैसे भी दूसरी नायिका के मरने से ही मेरी कहानी बढ़िया होगी, त्याग की मूर्ति बनेगी मेरी कहानी!”
“पर सुनो, मैं भी तो तुम्हारी ही तरह विद्रोही हूं.
सुनो, मैं नहीं मरूंगी!, नहीं मरूंगी!,
बिलकुल भी नहीं! देखती हूं कैसे तुम मुझे मारती हो! लेखिका हो तो
क्या मुझे मारोगी?”
कहानी
की नायिका पन्ने से बाहर निकल कर मुझसे लड़ रही थी।
“देखो, तुम्हें मरना ही होगा”, मैंने
उससे रिरियाते हुए कहा।
पर
वह नहीं मानी। वह जिद्दी हो गयी थी, जैसे ही मैं अपनी कहानी का अंत करने बैठ रही थी, और
उसे कहानी की जमीन पर बोरिंग करते हुए दो तीन सौ फीट की गहराई पर दाब कर आ रही थी,
वह बार बार एकदम से उछलकर बाहर आ जाती,
और अंत पर कब्ज़ा जमा कर बैठ जाती।
मुझे
उसे मारना ही था, कैसे भी! मारूं?
पर हाथ पैर चलाकर कैसे भी उसे मारना था.
मेरी
कहानी का अंत नहीं हो पा रहा था।
मैं
द्वन्द में फंसी हुई थी. न जाने कितने दिनों से मैं अपने दिमाग में कहानी को आकार
दे रही थी।
कहानी
क्या थी, संस्कार की क्रांति
थी.
वाह
क्या कहानी थी मेरी! नायक, नायिका, उनमें प्यार होना। जाति का एंगल। सामाजिक क्रांति का पैदा होना और फिर उस
सामाजिक क्रांति का परिवार के सम्मान के नाम पर दम तोड़ना एवं अपनी ही जाति में
नायक का ब्याह कर लेना।
पहली
नायिका का दूसरी औरत बन जाना और सहनायिका का पहली औरत बन जाना।
पहली
नायिका की मांग में सिंदूर के बिना ही सुहाग की लालिमा।
और
सहनायिका में नायक के न होने के बावजूद सिंदूर।
मगर
जब सिंदूर है तो मिलन भी होगा.
मन
तो पहली नायिका माने नव्या के पास है. नव्या एक चुलबुली लड़की है. वह समाज की
मर्यादाओं को नहीं मानती. गोरे रंग की नव्या अपनी मंजिल अपने आप ही पाने की चाह
रखती है. नव्या के अन्दर बहुत अरमान है. ज़िन्दगी बदलने के.
अपनी
नौकरी में वह बहुत खुश है. एमबीए करते हुए उसकी मुलाक़ात हुई निकुंज से हुई थी.
निकुंज माने मेरा नायक भी समाज की मर्यादाओं को ताक पर रखता है. उसे कोई फर्क नहीं
पड़ता कि वह लिव इन में रह रहा है या नहीं. उसे ये शरीर और पवित्रता के पैमाने से
कोई खास मतलब नहीं है. उधर वह नव्या से मिला तो जैसे उसका पूरा शरीर हिल गया.
नव्या
है ही ऐसी. वह कई लोगों के दिल की मल्लिका है. उसकी महत्वाकांक्षाएं बहुत हैं.
वह
बहुत आगे जाना चाहती है. माँ बाबा शादी की रट लगा रहे हैं, पर नव्या के कान पर जूं नहीं रेंग रही है. वह
निकुंज के साथ लिवइन में बहुत खुश है. न कोई अपेक्षा है और न ही कोई उम्मीद.
कुछ
दिनों से निकुंज परेशान सा है
“क्या हुआ निकुंज?” चाय का कप पकडाते हुए नव्या ने
कहा
“कुछ नहीं! घर वाले शादी की बात कर रहे हैं”
“अरे, तुमने बताया नहीं कि तुम शादी नहीं करना चाहते?”
“मैंने तो कहा था, पर वे मान नहीं रहे.”
“तो?”
“माँ को दिल की बीमारी है, माँ मर जाएगी अगर ज्यादा
उसकी बात टाली”
“ओह, तो?”
“वही समझ नहीं आ रहा!”
“वैसे निकुंज, मेरे घर वाले भी शादी की बात कर रहे हैं, तुम कहो तो
मैं भेजूं उन्हें तुम्हारे यहाँ?”
“अरे, अमा कमाल करती हो तुम? फिर
कर दी न बेवकूफों वाली बात?”
“अरे!”
“अरे यार, माँ कभी भी हमारी शादी नहीं होने देगी!”
“पर क्यों?”
“देखो, तुम्हारी जाति हमारी जाति से एकदम अलग है. माँ
बहुत जाति मानती है!”
“और तुम?” नव्या ने आँखों में आँखें डाल कर देखा
उन
आँखों में एक अलग ही आग सी थी, उसमें
वह जलने लगा.
“अरे यार छोड़ो, माँ की बातें! हम तो जानेमन तुम पर
मरते हैं”
निकुंज
स्मार्ट था, उसे पता था कि औरतों
को कैसे टैकल करना है!
कंघे
से कब बाल कब काढने हैं और कब उन्हें बिखराकर माँ के पास जाना है, कब मुंह बनाना है, उसे
सब कुछ पता था.
निकुंज
की दुनिया छल और प्रपंच की दुनिया थी.
नव्या
की दुनिया सच्चाई की दुनिया थी. अपने बनाए गए मूल्यों की दुनिया थी.
निकुंज
की दुनिया में प्यार तो था, मगर रूप अलग थे.
एक
कहानीकार का मन बंट रहा था.
ओह, इस उजाले में और महानगर की रोशनी में भी मेरे
मन में विचार नहीं आ पा रहे थे.
बुलबुलों
का सिलसिला जारी
था.
नव्या
की माँ शादी की
रट लगाते लगाते चली गयी. उस दिन नव्या रोई थी. न जाने किस पीड़ा के वशीभूत होकर रोई
थी, पर रोई थी.
माँ
की इस गुहार में कि शादी कर लो, शादी
कर लो, में एक प्यार था, एक अपनेपन की
फुहार थी. उसे ऐसा लगता था कि कोई है जिसे उसकी चिंता है. बाबा को कोई मतलब न था.
उस
दिन उसे लगा कि पेड़ से शाख हमेशा के लिए अलग हो गयी.
नव्या
की शादी न करने की जिद्द के कारण कोई रिश्तेदार उसे रिश्ता भी सुझाने की हिम्मत
नहीं कर पा रहा था. भरे पूरे व्यक्तित्व की मल्लिका नव्या, हर दिल अज़ीज़ नव्या.
दिल्ली
में नाम कमाने की होड़ में नव्या ने बहुत कुछ भुला दिया था.
ये
चाह कितनी कष्ट देती हैं. चाहें चाँद में छेद कर देती हैं.
“निकुंज!” निकुंज के कंधे पर सिर धरकर नव्या ने कहा
“हां”
“माँ के जाने के बाद मैं अकेली हो गयी!”
“माँ होती ही है ऐसी! तुम्हें पता मेरी माँ दो दिन से खाना छोड़े बैठी है,
बीपी एकदम हाई हो गया है! बोल रही है, जब तक
मैं शादी के लिए हां नहीं करता तब तक वह एक भी दाना नहीं लेगी”
“अरे! अब”
“नव्या, तुमने अपनी माँ को अभी अभी खोया है, तुम जानती हो कि माँ का जाना क्या होता है! अगर मेरी माँ को कुछ हो गया तो
मैं भी मर जाऊंगा” निकुंज के दिल में माँ को खोने का डर है.
“और तुम्हें कुछ हो गया तो मैं मर जाऊंगी” निकुंज के कंधे पर उसने अपना सिर
रखते हुए कहा. निकुंज ने उसके अकेलेपन में झाँकने का मौक़ा नहीं छोड़ा.
अकेलेपन
की सीढ़ियों पर चलना बहुत घातक है. उस पर बहुत काई जमी होती है.
तमाम
फिसलन है.
नव्या
का मन निकुंज को फिसलने से रोकता नहीं है.
वह
अकेलेपन में फिसल कर चंद पलों का सुकून खोजता है.
नव्या
के मन में अकेलेपन का एक फंदा कस गया है और वह उस फंदे में एकदम उलझ रही है. उसके
मन में छोटे शहर का गदोलापन खुरच खुरच कर गिर रहा है.
उसकी
देह खुरच रही है और उसके साथ ही उसका मन भी.
उसका
स्त्री मन चाहता है निकुंज की माँ बच जाए.
“सुनो, नव्या” अकेलेपन की खाई
से बाहर निकल कर शर्ट पहनते हुए निकुंज पूछता है “मैं क्या
करूं?, माँ की बात नहीं मानी तो माँ मर जाएगी और तुम्हें छोड़
नहीं सकता! मैं दो हिस्सों में बंटता जा रहा हूँ”
नव्या
चाय के साथ अपने विचारों को खौला रही थी.
चाय
तो शांत हो गयी, पर विचार? उनका खौलापन?
माँ
को खोकर, वह बेचैन थी. वह नहीं
चाहती थी कि वह जिस अकेलेपन के दर्द से वह होकर गुजर रही है, उससे निकुंज भी गुजरे.
पर
वह क्या करे? फ्लैटों के इस जंगल
में केवल निकुंज ही तो है, जो शोर के सन्नाटे में उसे छूता है, उसे अपनेपन का अहसास
कराता है. क्या करे, वह निकुंज की माँ की लाश पर अपना घर
नहीं बसा सकती. निकुंज की अनदेखी माँ के लिए उसके मन में बहुत इज्ज़त थी. वह कुछ भी
ऐसा नहीं करना चाहती थी. उसे निकुंज के मन का हरापन दिख रहा था. उसे निकुंज के दिल
का रेगिस्तान दिख रहा था. और एक दिन उसने उस रेगिस्तान पर कुछ बूंदे गिरा दीं.
निकुंज
से उसने कहा “अपनी माँ को बचा लो”
लेकिन
उसने नहीं देखा कि उसके रेगिस्तान का विस्तार हो गया था.
जूही
ने निकुंज के जीवन में कदम रखा. आखिर उसे आना ही था. लिव इन का भविष्य ही कितना
होता है.
नव्या
के रेगिस्तान पर उस दिन कालबेलिया का नृत्य हो रहा था. और वह उस नृत्य में खुद को
सराबोर कर रही थी.
वह
रो रही थी. उस रात सुना बहुत बरसात हुई थी, पर रेगिस्तान की प्यास भी कहीं बुझी है.
निकुंज
ने नव्या को वादा किया था कि वह तन मन से नव्या का ही रहेगा. मगर तन के आकर्षण को
कौन रोक पाया है, और उस पर जूही चावला
जैसे मांसल चुलबुले यौवन की मल्लिका हो कोई तो उसकी उपेक्षा कहाँ तक हो पाएगी!
आखिर
में हवन को साक्षी मानकर जो फेरे लिए हैं, उसके कारण ही एक दिन उस जूही चावला जैसी नायिका की कमर के इर्द गिर्द ही
नायक का डेरा बन जाना है।
और
अगर सही कहा जाए तो समाज की भी यही मांग है!
सिंदूर
का सलामत रहना ही तो समाज चाहता है!
मांग
भरो सजना के “दीपक मेरे सुहाग का
जलता रहे” गाते हुए वह जूही चावला जैसी नायिका, नायक के दिल में जगह बना लेती है।
निकुंज
के दिल में बहुत जगह है। बहुत सी नायिकाएं इसमें फिट हो सकती हैं। समा सकती हैं।
शायद
समाज में नायकों का दिल बहुत बड़ा होता है और वह नायिकाओं को दर्द में नहीं देख
पाता है। नायक का दिल मचल जाता है कि वह अपने जीवन की नायिकाओं के लिए बहुत कुछ
करे।
अब
क्या क्या करे वह?
दो
नायिकाओं को वह तो रख सकता है, जिंदगी
भर.
पर
नव्या का क्या होगा? क्या वह ज़िन्दगी भर
रखैल बनकर रहेगी?
एक
मयान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं, पर निकुंज के दिल में दोनों जिंदगी भर रह सकती थीं.
नव्या
को लेकर मैं बहुत पजेसिव थी.
ओह, नव्या!
उसे
लेकिन मरना होगा!
अगर
नहीं मरेगी तो समाज के ऊपर काले बादल छा जाएंगे। चरित्र नष्ट हो जाएगा! परिवार टूट
जाएंगे!
नायिका
को मरना ही होगा!
बहुत
हुआ!
निकुंज
की वर्जिन बीवी अब पेट से है। दिन भर उसे उबकाई आती रहती है। नायक का फर्ज है कि
वह अपनी बीमार बीवी, जिसे वह अग्नि को साक्षी
मानकर घर लाया है, उसकी सेवा करे। और उसे इस हालत में एकदम
अकेला न छोड़े, जिसमें वह उसके अंश को जन्म देने जा रही है।
ऐसे
में निकुंज अपनी प्रेमिका नव्या को एकदम भूल गया है।
“निकुंज, प्लीज़ तुम फोन भी नहीं करते हो!” नव्या ने हल्का सा उपहास किया।
“हां नव्या, वो क्या है न जूही की तबियत अभी ठीक नहीं
रहती। यू नो, शी इज एक्सपेक्टिंग!”
“ओह!” वह कट कर रह जाती है। पर क्या उसकी यह कटन मैं
दिखाऊं कहानी में?
या
जूही की तरफ कहानी को मोड़ दूं?
“अच्छा, क्या सोचा है तुमने?” वह
अपने कप की चाय जल्दी जल्दी ख़त्म करती है। निकुंज को आए हुए दो तीन घंटे हो गए थे।
“मैंने?” शर्ट के बटन लगाते हुए निकुंज बोला
“हां, ये कब तक चलेगा?”
“हम्म, सही कहती हो! सुनो, तुम
ही क्यों नहीं दूसरी शादी कर लेती हो?”
“दूसरी?, पहली कब हुई?”
“अरे, ये जो हमारे बीच है वह शादी से कम तो नहीं है
न!”
“हां, पर यह शादी तो नहीं!”
“तो भी!”
“पर तुमने तो कभी यह नहीं कहा कि तुम दूसरी शादी कर रहे हो”
“क्या बेवकूफी की बात कर रही हो? ऑफिस में यही सब
बातें करती रहती हो क्या?”
“क्या?”
“कुछ नहीं!”
“चलो, अब चलूँ! जूही की तबियत ठीक नहीं है! और सुनो,
तुम वह पिल्स तो समय से ले रही हो न! नहीं तो पहले की तरह गड़बड़ हो
जाए!”
“हां! कल आओगे?”
“पता नहीं, जूही की तबियत पर निर्भर करता है”
नव्या
अकेली है, निकुंज उसकी जिंदगी
से जा रहा है, जैसे मुट्ठी से रेत फिसलती है वैसे वह हर आने
वाले पल से उससे दूर होता जा रहा है।
अकेलापन
उसे काट रहा है!
ऐसे
में अकेली लड़की कैसे बिना सहारे के रहेगी?
पर, चूंकि निकुंज के बारे में एक दो लोगों को पता
है कि उसके जीवन में कोई है, तो कौन शरीफ आदमी उससे शादी
करेगा!
उसके
सामने आत्महत्या ही इकलौता रास्ता है।
मेरी
कहानी कितनी मुकम्मल है।
मैंने
अंत का सीन भी सोच लिया है,
इधर
वह जहर खाएगी उधर जूही को लेबर पेन शुरू होगा!
और
इधर उसकी अंतिम हिचकी होगी और उधर जूही के गर्भ से माथे पर तिलक लगाए एक प्यारी सी
फूल सी बेटी का जन्म होगा।
“ओह, कितनी इमोशनल कहानी, गजब!
हलचल मच जाएगी। उसमें संवेदना का तड़का! भावनाएं, भारतीय नारी
का त्याग, शारीरिक शुचिता, एक बार जो
तुमने छू लिया फिर मुझे कोई और न छू पाएगा टाइप्स के डायलोग!
मेरी
कहानी सुपरहिट थी, सब कुछ तो था,
संस्कार, संस्कृति, प्यार,जाति, लिव इन, और अंत में ‘गलती’ का अहसास और आत्महत्या।
जूही
की गोद में नन्ही नव्या।
मगर
यहीं पंगा हो गया।
नव्या
ने कहानी में मरने से इंकार कर दिया। जैसे ही मैं उसके आत्महत्या का वाकया लिखती, वह चीखने लगती
“मैं नहीं मरूंगी! मेरी क्या गलती है?”
“हाँ, गलती तो तुम्हारी नहीं है पर क्या करूं?,
समाज का नियम तो तुमने तोडा ही है न कि शादी से पहले अपना शरीर न
सौंपने का!”
“अरे, पर इसमें क्या मेरी ही गलती थी?, गलती तो निकुंज की थी, उसी ने मुझे बहलाया था,
हमेशा कहा, मैं जरूर तुमसे शादी करूंगा! मैं
तुमसे ही शादी करूंगा! उसने घर छोड़ दिया मेरे कारण! सब कुछ तो किया! वो तो उसकी माँ ने आत्महत्या की धमकी दे दी”
“हाँ ठीक है, पर फिर भी यार समाज!”
“तो क्या समाज के कारण मैं मर जाऊं! तुम जानती हो ये गलत है! शादी न दिखाओ
तो कम से कम यार जिंदा तो रखो! मैं कुछ भी करके जिंदा रह लूंगी”
“पर यार तुम्हें मरा दिखाकर ही मेरी कहानी सफल होगी, यू
नो, मेगा इमोशनल स्टोरी। कितना मजा आएगा। तुम्हारा मरना,
तुम्हारे नारी सुलभ त्याग पर मेरी भावनाएं, और
संस्कारों की विजय का दिखाना, यू नो, सब
कुछ कितना भारतीय समाज और साहित्य के मार्किट के हिसाब से परफेक्ट है”
“ओह, तो तुम साहित्यिक मार्केट के हिसाब से अपने नायक
और नायिकाओं का भाग्य तय करोगी?”
“तो न करूं क्या?”
“तुम्हें पता है, एक जो इमेज बन जाती है वह कितनी
मुश्किल से टूटती है”
मैं
घटनाओं की रेजगारी लेकर बैठ गयी। मै घटनाओं को चवन्नी, अठन्नी और रूपए के हिसाब से लगाती हुई,
जब एकदम भावनाओं के आवेग के हजार रूपए पर लाई और जैसे ही उसके हाथों
में सल्फास की गोली थमाई, वह चीखने लगी फिर से?
“नहीं, मैं नहीं मरूंगी!”
“अबे मरना होगा तुम्हें! मैं कहानी कार हूं! मैं ही तय करूंगी कि तुम्हें
जिंदा रखना है या मारना है! मैं ही तय करूंगी कि तुम्हारे साथ क्या करना है?
बड़ी आईं न मरने वाली!”
“मुझे संस्कारी कहानी लिखनी है, जिसमें गलती का और
पाप का पश्चाताप हो”
“ठीक है, पश्चाताप दिखाओ, पर
निकुंज को क्यों जिंदा रखना! गलती तो निकुंज की है!”
“फिर से बहस? अरे यार लड़कों से तो गलतियाँ हो जाती
हैं! याद नहीं नेता जी ने कहा था! अब ऐसे समाज में गलतियों की सजा लड़कों को देने
लग गए तो क्या बचेगा? क्या लड़कियों से शादी करने के लिए
योग्य लड़के रहेंगे?”
“नहीं, मुझे मत मारो, मुझे
सल्फास न दो! मैं जलना भी नहीं चाहती”
मैं
उसे जिंदा नहीं रख सकती! वह न मरने के लिए जिद्द कर रही है! वह मेरे पेन को हाथों
से पीछे पकड़ कर ठेल रही है! ओह, मैं
पसीना पसीना हो रही हूँ!
मैं
क्या करूं? मारना है मुझे उस
अपवित्र लड़की को!
मैंने
उसे सल्फास की गोलियां खिलाकर और उसे जूही की गोद से दोबारा पैदा कर दिया है। और
मैं अब कहानीकार के अभिमान से भरी हुई हूं! जूही में गोद में नन्ही नव्या कितनी प्यारी
लग रही है! उसका स्वागत देवी बनाकर किया जा रहा है,
उसकी पूजा की जाएगी, और उसे मातारानी की चुनरी
पहनाई जाएगी। पर हां जब वह बड़ी नव्या जैसी कोई “गलती”
करेगी तो वह न केवल सल्फास की गोलियों का शिकार बनेगी बल्कि वह ऑनर
किलिंग का भी विषय होगी।
ओह, मेरी संस्कारी कहानी तैयार है!
मैं
लैपटॉप खोलकर उसे मेल करने के लिए बैठ गयी हूं.............................
उधर
मेरे कानों में अभी तक सल्फास की गोलियों का शोर आ रहा
है............................
मैंने
भावनाओं और संस्कारों की रेजगारी की टोकरी से भर दी है कहानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें