मंगलवार, 9 जुलाई 2019

रीमैरिज




रोज़ की ही तरह सूरज निकल रहा था, रोज़ की तरह ही बगीचे में चिड़ियों का आना शुरू हो गया था, और रोज़ की ही तरह एक बार फिर से रोहित अपनी पत्नी अणु को चाय की पुकार लगाने जा रहा था. कैसे लोग अपनी आदतों के गुलाम होते हैं, और जो आदतों में रिश्ते भी आ जाते हैं, प्रेम है या नहीं यह नहीं पता! इस आदत के चलते ही रोहित रोज़ सुबह सुबह अपने पत्नी को आवाज़ लगाता था.
‘अनु अनु।‘ चेहरे पर हल्‍की सी धूप आने पर रोहित कुनमुनाया और उसने बिस्‍तर से ही अनु को आवाज लगाई। “अनु कहाँ हो भई! देखो यहाँ सिर पर सूरज चढ़ आया है और तुम्हारी चाय का भी अता पता नहीं है!” वह चिडचिडा रहा था. ‘उफ यह अनु भी, किसी काम की नहीं है। यहां पूरे सात बजने वाले हैं, और मैडम ने अब तक चाय ही नही दी है। अनु भई, दे भी दो चाय, तो उठा जाए।‘ रोहित ने चादर से मुंह को ढाक लिया और चाय का इंतजार करने लगा। मगर कभी कभी छोटी छोटी चीजों का इंतजार भी कितना लंबा हो जाता है जो हमारे लिए चुटकी बजाने जितना सरल होता है। और यह चुटकी कभी कभी बजती ही नहीं,
यह अनु भी न।‘ दस मिनट तक चाय नही आने पर रोहित एक बार फिर से झल्‍ला गया और गुस्‍से में उसने अपनी चादर हटाई और बिस्‍तर से उठा। जैसे ही उसने अपने पैर नीचे रखे, उसके पैरो से उसकी चप्‍पलें टकरा गईं। अनु हर चीज को जगह पर ही रखती है। रोहित की नजर बाथरूम की तरफ गई, नहीं अनु की लाल चप्‍पलें वहां नहीं थीं। इसका मतलब था कि वह बाथरूम  में नहीं थी, नहीं तो उसकी लाल चप्‍पलें बाहर होतीं और बाथरूम स्‍लीपर अंदर, मगर ऐसा नहीं था। उसने चप्‍पलों में पैर डाला और कमरे से बाहर आ गया। रसोई में इंडक्‍शन पर चाय का बर्तन चढ़ा था। रोहित ने उस पर ढकी प्‍लेट को हटा कर देखा, अदरख वाली चाय की तेज गंध उसकी नाक में समा गई। अब उसे अनु पर और भी गुस्‍सा आ रहा था। आखिर है कहां वह। उसने चाय छानी और चाय का कप लेते हुए बाहर की तरफ बढ़ा, क्‍या पता वह पूजा के लिए फूल लेने गई हो। उसने बगीचा भी तो अच्‍छा खासा लगा रखा है, न जाने कितने और किस तरह के फूल लगा उसने अपने दोस्‍त बना रखे हैं। रोहित बाहर तो आया मगर उसे अनु का पता नही चला। पौधो की मिट्टी गीली थी, शाम को जो पानी अनु ने इनमें डाला था, उसकी नमी अभी तक थी। अनु, अनु’ फिर से रोहित ने आवाज लगाई। मगर बाहर भी कोई नही था।
‘हद है लपरवाही की। अगर जाना था तो बताकर जाती। ये लड़कियां ऐसी ही होती हैं, गैर जिम्‍मेदार।‘ रोहित भुनभुनाता जा रहा था, ‘बस फूल पत्‍तियों की परवाह करवा लो, मजाल है कि काम धाम कर लें। मां ने भी न जाने कैसी लड़की से शादी करा दी है।‘ रोहित ने चाय का प्‍याला सिंक पर रखा तेजी से तीसरे कमरे की तरफ बढ़ने लगा। उसने एक अजीब से डर से दरवाजा खोला। कमरे में बेड पर करीने से चादर बिछी हुई थी। यहां पर भी अनु नहीं थी। उसके गुस्‍से की जगह अब खीज ने ले ली थी। तभी उसकी नजर इस बिस्‍तर के किनारे पर रखी मेज पर रखे हुए कागज के टुकडे पर गई, जो बिना हवा के भी फड़फड़ा सा रहा था, जैसे कि कह रहा हो कि मुझे उठाते क्‍यो नहीं। रोहित ने कांपते हाथों से उसे उठाया, अनु का ही था। उसमें लिखा था ‘मैं जा रही हूं।‘
बस यह चार शब्‍द। रोहित ने कागज को उलट पुलट कर देखा, वहां और कुछ नहीं था। उसका मोबाइल भी वहीं रखा था। अनु के नाम पर कागज का यह टुकड़ा उसके हाथ में था, और उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था।
तूफान आता तो एक ही पल के लिए है, पर वह सब कुछ तहस नहस कर जाता है और हम लोग उस विनाश के बीच खड़े रहते हैं चुपचाप। रोहित भी उन चार शब्‍दो में आए तूफान के बीच खड़ा था और उसके पास थे सवाल।
‘अनु क्‍यो और कहां चली गई हो।‘ अचानक से उसे एक धक्‍का लगा। कहां तो पता नहीं, पर क्‍यों, कारण तो उसे पता ही है न।
अनु के लिखे वह चार शब्‍द उसे अतीत की गलियों में वापस खींचे जा रहे थे। ऑफिस न आने का मैसेज कर वह बिस्‍तर पर ही बैठ गया। उस दिन भी तो आराम से घर आकर बैठा ही था कि मां का फोन आ गया था।
‘बेटा तुम्‍हारे लिए लड़की देख ली है, अब फोटो तुम्‍हें फोन पर भेज रहे है तुम्‍हारे पापा। तुम ओके करो, तो हम लोग बात आगे करें।‘
‘तुम भी न अम्‍मा, हर समय एक ही बात। अभी नहीं करनी है मुझे शादी।‘ वह झुंझला गया था।
‘देखो बेटा अब तुम 33 बरस के हो गए हो। अभी जो रिश्‍ते आ रहे हैं वह अब आगे आएंगे या नहीं, कह नहीं सकते। और अगर तुम्‍हारे मन में कोई हो तो तुम बता दो, हम दोनों खुद चलेंगे बात करने।‘ मां बोलती जा रही थी और रोहित सुनता जा रहा था, जैसे वह खड़ा हुआ है और बगल से एक तेज स्‍पीड में रेलगाड़ी गुजर रही है, उसके कानों को सुन्‍न करती हुर्ई।
‘मां, आप लोग भी न। चैन से जीने नहीं देते। ठीक है जो मन है करो, जब बुलाना तब आ जाऊंगा।‘ कहकर रोहित ने फोन रख दिया था और अपने मन की पसंद की बात आते ही एक चेहरा उसके दिल और दिमाग दोनों में कौंध गया था। ओह मनीषा। इतनी जल्‍दी क्‍या थी जाने की, अब हम साथ रह सकते थे। मनीषा, उसका प्‍यार। कॉलेज से लेकर इस नौकरी तक उसका साथ। जब वह एमबीए करने आया था तभी वह मनीषा से मिला था। कब वह साधारण सी लडकी उसकी जिंदगी में आ गई थी उसे पता नही चला था। नोट्स लेने से यह सिलसिला शुरू हुआ था और बहुत ही जल्‍द वह दोनों कॉलेज की कैंटीन से लेकर बाहर घूमने तक साथ थे। कॉलेज के खत्‍म होने के बाद दोनों ने अपने अपने घरो में बात करने का मन भी बना लिया था। पर मनीषा ने उससे कहा था कि एक दो साल नौकरी कर लेते हैं, बाद मे बता देंगे। और मान गया था रोहित उसकी बात। रोहित और मनीषा को नौकरी करते हुए अब दो साल हो गए थे और धीरे धीरे उन दोनों की पसंद से इकट्ठा होने लगा था उनके घर का सामान। दोनो ने जल्‍द ही अपने अपने घरों में बात करने का फैसला कर लिया था। उम्‍मीदों के सूरज का स्‍वागत करने के लिए उस दिन भी दोनों एक साथ अपनी फैवरेट आइसक्रीम खाकर निकले थे।
रोहित के हाथों में मनीषा का हाथ था, वह हाथ जो उसके साथ हमेशा रहने वाला था, वह हाथ जो वह जन्‍म जन्‍मांतर के लिए थाम लेगा। उस रात कोहरा बहुत था, दोनों ने ही अपनी अपनी हथेली में एक दूसरे को लिख लिया था।
पर तकदीर के पांव बहुत तेज होते हैं, इंसान से ज्‍यादा। वह दो कदम चलता है तो तकदीर चार। ऐसे ही चार कदम धरती हुई तकदीर एक ट्रक की शक्‍ल में आई, जो कोहरे में बैंलेस खो चुका था और बस एक ही पल, और सब कुछ लाल लाल। मनीषा ने उसे तो बचाने के लिए एक तरफ धक्‍का दे दिया था, पर खुद को तकदीर की चपेट में आने से नहीं बचा पाई। रोहित को होश आया तो उसके हाथ में कुछ भी नहीं बचा था। बस याद था तो मनीषा की बंद होती आंखों का दर्द। काश वह उस दिन नहीं गया होता, काश कि मनीषा को अपने घर पर उस नए टीवी को दिखाने के बहाने रोक लेता जो वह अपनी शादी के बाद साथ देखने के लिए लाया था, काश कि वह मनीषा से कहता कि चलो आज घर पर ही रहते हैं। पर यह सारे काश थे, और रोहित के दुख को और बढ़ाते थे।
‘रोहित तुम शादी कर लेना और प्लीज खुश रहना।‘ मनीषा ने उससे यह आईसीयू में कहा था।
‘मनीषा, इतनी बड़ी सजा मत दो मुझे। पहले ही मेरे लिए तुमने अपना यह हाल कर दिया है’ रोहित फफक पड़ा था।
‘मुझे तो जाना ही था रोहित। याद है तुम मेरी हथेली देखकर कहा करते थे कि यार तुम्‍हारी लाइफ लाइन तो बहुत छोटी है, तो मैं कहा करती थी कि तुम मिल कर इसे बड़ा कर देना।‘ मनीषा के मुंह से बहुत ही मुश्‍किल से निकले यह शब्‍द रोहित को और रूला रहे थे। वह मनीषा के हाथो को थाम कर न जाने कितनी ही देर तक वहां खडा रहा था, जब तक डॉ0 ने आकर नही कह दिया कि अब वह मनीषा को ले जा सकते हैं।
वह मनीषा को इस तरह विदा नहीं कर सकता। और इस तरह उसे अधूरा कर मनीषा चली गई थी। एक ऐसे सफर पर जहां वह चाह कर भी नहीं जा सकता था क्‍योंकि जाते जाते वह वादा लेकर गई थी कि वह जिंदगी जिएगा।  
मनीषा तो चली गई थी, पर वह टूट गया था, जब मन होता तो घर आता, जब मन होता तो खाना खाता। जो सामान मनीषा के मन से खरीदा था उन सब पर उसने कपड़ा डाल कर रख दिया था। मां और पापा जब जब शादी की बात करते, वह उखड़ जाता, और ऐसे ही इस दर्द मे जलते हुए दो साल बीत गए थे।
कहते हैं समय सारे घाव भर देता है, पर रोहित का घाव तो समय के साथ और भी गहरा होता जा रहा था। उसमें शादी की बार बार बात नमक छिड़क रही थी। पर जैसा मनीषा ने कहा था कि प्‍लीज शादी कर लेना।, रोहित को बार बार मनीषा सपने मे आती और उसके साथ ही मां के फोन भी ज्‍यादा आने लगे।
अंत में थक हार कर उसने हां कर दी और बिना फोटो देखे ही उसने अनु के लिए हां कर दी थी। प्‍यार का बोझ बहुत भारी होता है, रोहित ने जब अनु के लिए हां की थी तो उसकी टीस महसूस की थी, अनु के साथ फेरे लेते हुए उसे लगा था जैसे मनीषा उसके आसपास ही थी। वह फेरे ले रहा था, और उसकी आंखें गीली थीं, उस गीले पन में स्‍वाहा हो रहा था बहुत कुछ।

सपना किसी और ने देखा हो और पांव किसी और ने धरे हो उसमें तो कहीं कुछ दरक जाता है, समझ नहीं आता कि दर्द क्‍यों और कहां हो रहा है। ऐसे ही रोहित ने जब अनु के गले में मंगलसूत्र पहनाया तो उसे अपनी हथेली में मनीषा की हथेली की वह गर्माहट याद आ गई जब उस शाम उसके लिए मंगलसूत्र लाया था। गुलाबी कागज में लिपटे हुए मगलसूत्र को मनीषा ने एकदम से झपट लिया था और फिर एकटक देखते हुए रोहित की हथेली में ही थमा दिया था।
‘समय आने पर अपने आप पहनाना।‘
‘क्‍या कर रहे हो बेटा, जल्‍दी पहनाओ।‘ और मां की आवाज आते ही उसने अपनी हथेली के गुलाबी कागज में बंधे हुए मंगलसूत्र को अनु के हवाले कर दिया था। देखा भी नहीं कि वह सही से सेट हुआ है या नहीं, उसने बस एक गांठ लगा दी थी। मां ने उसका यह अनमनापन देखकर मंगलसूत्र की गांठ सही से बांध दी थी और कहा था
‘बेटा, यह जीवन भर की गांठ होती है।‘ रोहित को लगा जैसे मां इशारे इशारे में कुछ कह रही हैं, पर वह उस समय कुछ भी सुनने और कहने की हालत में नहीं था। उसे लगा जैसे वह एक रोबेाट है और जो जैसे जैसे कह रहा है, वह करता जा रहा है। उसने अपने आप कुछ भी सोचना समझना बंद कर दिया था। वह एक लड़ाई लड़ रहा था, अगर मनीषा उसे नहीं बचाती तो आज मनीषा जिंदा होती और वह शादी कर रही होती। वह मनीषा का कर्जदार है, इसमें अनु कहां फिट होगी। उसने एक उड़ती उड़ती सी नजर लाल रंग की एक गठरी नुमा लड़की पर डाली। ठीक ठाक ही लग रही थी। लाल रंग की चुनरी पीली साड़ी पर डालकर वह पंडित जी के कहे अनुसार कभी अपना बिछुआ दबवा रही थी तो कभी आल्‍ता लगवा रही थी। उसका सांवला चेहरा सिंदूर और बिंदी के बाद अलग ही लगने लगा था। मेंहंदी लगे हाथ उसने अपने घुटने पर रखे हुए थे। रोहित ने बहुत जोर लगाया कि अनु का चेहरा उसके दिमाग में रजिस्‍टर हो जाए, पर वह ऐसा कर नहीं पाया था और दिल और दिमाग से पूरी तरह से अनजान अनु को अपने घर ले आया था।
वह घर जिसे वह मनीषा की अमानत समझता था। अनु के घर से आया हुआ सारा सामान मां और पापा के पास ही छोड़ आया था।
‘सब कुछ खरीद कर रखा है मां, आप लोगों ने देखा ही है, फिर यह सब लेने की क्‍या जरूरत थी।‘ रोहित ने सामने रखे हुए सामान की तरफ देखते हुए कहा था।
‘अब बेटा हमने तो पहले ही मना कर दिया था, यह सब उन्‍होनें भेज दिया।‘  पापा ने उसे समझाते हुए कहा था।
‘ठीक है तो फिर रखिए खुद के पास ही। बस इसे भेज दीजिए मेरे साथ।‘ और  कहते हुए बस एक ही सप्‍ताह में अनु उसके साथ इस घर में थी।
मनीषा सही कहती थी कि जरूरी नहीं कि हम जो सोचे वही हो, बल्‍कि जरूरी यह है कि जो हो रहा है उसे अपना लें। वह इस सही और जरूरी के बीच फंसा हुआ एक नशे मे चलता हुआ अनु को घर ले आया था। समय ने उसके घर मे आल्‍ता का लाल रंग तो ला दिया था पर किसका लाल रंग था यह। रोहित को लगा जैसे मनीषा के जिस्‍म से निकला हुआ खून उसके घर की देहरी पर पसर गया है।
जिंदंगी हर कदम एक नई जंग होती है, हम रोज खुद से लड़ते हैं कभी अपने लिए, कभी अपने सपने के लिए, मगर कभी कभी एक अजीब जंग होती है, जिसमें हम किससे और किसलिए लडते हैं पता नहीं। ऐसा ही रोहित के साथ हुआ। मनीषा के साथ जो सामान उसने खरीदा था, उसमें वह मनीषा को ही देखता था। मनीषा के साथ देखे गए सपनों के पूरा न होने का जो गुस्‍सा उसके भीतर था वह जाने अनजाने मनीषा पर उतरने लगा। उसके हाथों की मेहंदी सूखी भी न थी कि उसके सपनों का सूखना शुरू हो गया था।
जैसे ही वह दीवार पर लगे हुए टीवी को देखने के लिए रिमोट उठाती, रोहित को कुछ हो जाता। एक दिन उसने ऊंची आवाज में कह ही दिया था
‘कभी अपने मायके में देखा है इतना बड़ा टीवी, अभी कुछ हो गया तो।‘ और रिमोट उसके हाथ से लेकर ऐसे सहलाने लगा था जैसे अनु ने उसे छूकर कोई अपराध कर दिया हो।
अनु जैसे ही घर की कोई चीज छूने की कोशिश करती वैसे ही रोहित उस पर चीखने लगता
‘लाख बार समझाया है कि मंहंगी चीजों से दूर रहा करो, मगर तुम्‍हारी अक्‍ल में कुछ आता ही नहीं है।‘ अनु की मोटी मोटी आंखों में आसूं   आ जाते। वह रोहित से कुछ पूछ भी नहीं पाती।
अनु के सामने सवालों के पहाड़ थे। उसे यह महसूस होने लगा था कि यह घर उसका होकर भी उसका नहीं है। वह कहने के लिए इस घर में ब्‍याह कर आ गई है पर वह इस घर का उतना ही हिस्‍सा है जितना रोहित चाहता है। उसे लगने लगा था कि वह उधारी के घर पर है। जैसे वह उतरन वाले घर मे है।
उतरन और वह भी सपनों की उतरन, सच पहना नहीं जाता उस उतरन को। और रोहित न चाहते हुए भी अनु को यह अहसास बार बार कराता था कि यह घर उसका नहीं है, यह टीवी, यह कमरा और यहां तक कि कमरे का बिस्‍तर भी किसी की झूठन में उसे मिला है। ऐसा नही था कि रोहित को यह अहसास नही था कि वह गलत कर रहा था, पर रोहित क्‍या करता, वह मनीषा को भुला नहीं पा रहा था और उसे बार बार लगता कि अनु के साथ समय बिता कर वह मनीषा के साथ सही नही कर रहा।
ऐसे में अनु के लिए यह दूसरा कमरा ही सुकून देने वाला होता था। वह अक्‍सर रात यहीं बिताया करती, तमाम सवालों के साथ। कई ऐसे सवाल जिनके जबाव उसके पास नहीं थे, पर उसे जल्‍द ही पता लगाने थे।
कई बार सवाल भी तहों में होते हैं और जबाव भी। गलत कोई नहीं होता, पर लोगों के साथ गलत जरूर होता है। रोहित अपने आंसुओं को सुखाने में इतना खो गया था कि उसने अनु को ही रूला दिया। आंसू इधर भी थे और उधर भी। पर रास्‍ता खो गया था।
“आपने मुझसे शादी ही क्यों की थी?” एक दिन अनु ने पूछ ही लिया था.
रोहित ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था, इसलिए शायद उसके पास समय नहीं था या इस सवाल के लिए उसके पास समय हो ही नहीं सकता था. वह अनु के अस्तित्व को एकदम नकारना चाहता था, मगर अनु उसके अस्तित्व पर छाती जा रही थी. वह ऊपरी क्या भीतरी रूप से भी अनु पर निर्भर था, मगर कुछ था जो उसे अनु को स्वीकारने से रोक रहा था! वह कुछ क्या था, यही वह अनु को बता नहीं सकता था और अनु शायद समझ नहीं सकती होगी! मनीषा से जुड़ा हर सबूत उसने अपने घर से मिटा दिया था.
“सुबह सुबह क्या बेवकूफी वाली बात लेकर बैठ गयी हो अनु, मुझे ऑफिस जाना है!” वह अनु को लगभग झिड़कते हुए बोला!
“चले जाना, रोज़ ही जाते हो, और जब नहीं जाते हो तो कहीं और जाते हो! मेरे पास तुम रात के अलावा नहीं रहते, और रात में भी मन से मेरे साथ हो या नहीं, पता नहीं! पता नहीं क्या बडबडाते हो, मेरा नाम तो रात में भी नहीं होता है!” अनु ने उसे पर्स थमाते हुए कहा
“जो औरतें घर पर दिन भर रहती हैं, उनके दिमाग में यही कूड़ा भर जाता है!” वह झल्लाया
“ठीक है, कूड़ा बुहार दो!”
“तुम पगला गयी हो! अम्मा न जाने किसे पल्ले मढ़ दी हैं!” वह भुनभुनाता जा रहा था.
और इसी तरह वह ऑफिस चला गया.
उसके ऑफिस जाते ही अनु जैसे एक कटे पेड़ की तरह सोफे पर ढह गयी! वह इस शहर में अपना अस्तित्व खोजती तो क्या था? एक आलीशान घर की कथित रूप से मालकिन थी, जिसका सुबह से लेकर शाम तक काम करती, एक एक कोना साफ़ रखती, बर्तन धोती, कपड़े धोती और उसके साथ सोचती कि वह दर्द भी घुलकर बह जाए जो उसके साथ उसकी सुहागरात से पीछे है! रात को बत्ती बंद करने के बाद के अन्तरंग पलों में वह साथी भी सही से नहीं बन पाती है! वह बस एक निर्जीव सी देह है, जिस पर रोहित जो चाहता है जैसे कोई दर्द उसके भीतर है उसे निकालना चाहता है, अपना सारा दर्द उसके हवाले करता है और फिर वह तो सो जाता है, अनु जगती रहती है, अपने दर्द और रोहित के दर्द में! कई बार अपनी सास से बात करने की कोशिश की, मगर कुछ नहीं हुआ! उन्हें भी रोहित के इस बर्ताव से बहुत हैरानी हुई थी मगर उन्होंने अपनी बहुरिया को ही समझा दिया
“जे सब तो सादी में लगो रहत है बहुरिया! थोड़ो समझो!”
अपने मायके जा नहीं सकती थी, तो क्या करे? वह रोज़ गुत्थी सुलझाती रोज़ रात वह गुत्थी एक नया रूप लेकर सामने आ जाती!
रोहित उससे ऐसा व्यवहार क्यों करता है? उसके ऑफिस तक छानबीन कर ली, कोई दूसरी लड़की नहीं, कोई नशे की आदत नहीं! कभी कभार पीना, लड़कियों से सम्मानजनक रूप से बातें! तो फिर अब क्या था? क्यों था?
रोहित उसे दर्द देकर खुश क्यों महसूस करता था, यह हर रात वह सोचती! दर्द से दोहरी होकर हर रात जब वह उन क्षणों के बाद साड़ी पहनती तो उसका जी होता कि वह भाग जाए! मगर कहाँ? वह सोच नहीं पाती! कहाँ भागेगी? किस्मत से वह रोज़ दो दो हाथ लडती! और चार चार हाथ हारती! क्या कभी रोहित उसे दिल से अपना पाएगा? वह सोचती और फिर गुस्से में जाकर मिक्सर ग्राइंडर चला देती. अपने सारे दर्द को वह ऐसे शोर में डुबो देती जो किसी और को दर्द देकर पैदा होता!
दर्द में इंसान असहिष्णु हो जाता है, वह अपने दर्द को दूसरे पर डालकर खुश हो जाता है, रोहित यह अनु के साथ करता था और अनु निर्जीव वस्तुओं के साथ!
हथेली से रेत के सरकते ही पता चलता है कि हमारे हाथ में कुछ अपना था। अनु का लिखा कागज हाथ मे थामे खड़े रोहित को लग रहा था कि उसने क्‍या खोया। पिछले छह महीने से अनु ही तो थी इस घर में। उसके लिए चाय बनाने से लेकर रात के खाने के लिए उसका इंतजार करती हुई। उसके बिना कहे उसकी बात समझने वाली। मां से पूछ पूछ कर उसकी पसंद का खाना बनाने वाली, उसके तानों को बिना जबाव के सह जाने वाली।
परछाईं के जैसे ही वह इस घर में थी। मनीषा अगर इस घर की आत्‍मा थी तो अनु परछाईं। कैसे वह भूल गया, मनीषा को दिया गया वादा कि वह खुश रहेगा। अनु को उसने कितना दर्द दिया। पर वह गई कहां होगी, कहाँ हो अनु, प्लीज़ सामने आ जाओ! वह बार बार यही कह रहा था.
रोहित ने गाड़ी उठाई और मां पापा के घर की तरफ मोड़ दी। आज उसने सोच लिया था कि दर्द के जिस सैलाब में वह जल रहा है, उसे अपनी मां से कह देगा और कह देगा कि उसने मनीषा की आत्‍मा के साथ कोई अन्‍याय न हो, इस कारण अनु को दुख दिया। रोहित को पूरा भरोसा था कि मां उसकी बात जरूर मानेंगी और जैसे उन्‍होनें उस दिन मंगलसूत्र को टूटने से बचाया था वैसे ही उसका घर भी टूटने से बचा लेंगी। अनु को भी सब सच बता देगा, नहीं नहीं। अनु, प्‍लीज माफ कर दो।
वह मन ही मन अनु से माफी मांगता हुआ जा रहा था। उसे लग रहा था जैसे मनीषा की आत्‍मा को भी उसने दुखी कर दिया है। बस एक बार वह सबसे माफी मांग ले तो ही उसे चैन पड़ेगा।
दो घंटो में उसने दो सौ बार अनु से माफी मांगी होगी।
दस बजे जब वह मां  पापा के घर पहुंचा तो धूप बाहर तक पसर चुकी थी। पापा बिजली का बिल भरने के लिए बाहर जा रहे थे।
‘अरे रोहित हम तुम्‍हारा ही इंतजार कर रहे थे।‘ पापा ने उसे देखते ही कहा
‘मेरा। पर क्‍यों’ रोहित ने एक अजीब से डर के साथ पूछा
‘मुझे देर हो रही है, अपनी मां से पूछ लो, वह अंदर इंतजार कर रही है’  वह मंद मंद मुस्‍काते हुए चले गए।
रोहित अंदर गया तो मां रसोई के बाहर ही मिल गईं।
‘तो अब आ रहा है। तुमसे यह उम्मीद नहीं थी।‘ मां ने उसे देखते हुए कहा
‘मां मैं वह  आपको सब बताने ही वाला था  ‘ रोहित हकलाते हुए बोला
‘तूने बहू को ऐसी हालत में अकेले आने दिया, और वह भी बस से।‘ मां की बातों में खुशी के साथ उलाहना था
‘ऐसी हालत।‘ रोहित को समझ नहीं आया, वह और उलझ गया
‘हां, दो महीने हो गए हैं दिन चढ़े, तू बाप बनने वाला है और हम दादा दादी। और बहू ऐसी हालत में सुबह सुबह यहां आ गर्ई, लाख पूछने पर भी कारण नहीं बताया।‘ मां बोलती जा रही थी और रोहित को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था
रसोई के दरवाजे पर अनु खड़ी थी। रोहित के लिए चाय का प्‍याला लेकर।
रोहित की आंखों में आंसू थे, उसने जाकर अनु के हाथों से चाय का प्‍याला ले लिया और कहा ‘मां आज से तुम्‍हारी बहू को कोई शिकायत नहीं होगी।‘ रोहित ने देखा कि अनु के हाथो में मनीषा की डेथ रिपोर्ट थी।
रोहित ने उस रिपोर्ट को फाड़ना चाहा, पर अनु ने उसका हाथ पकड़ लिया, एकदम उसी तरह जैसे मनीषा पकड़ा करती थी अधिकार से। यह अधिकार कौन देता है! अनु की आँखें उससे बोल रही थीं “एक बार कहकर तो देखते! हम मनीषा की यादों को साथ याद करते, उसकी यादों पर साथ हँसते! बस इतना ही अपना माना था?”
बस प्रत्यक्ष कुछ बोल न सकी! माँ के मंदिर जाने के बाद रोहित आँखों में आंसू लेकर अनु के पास आया! आज उसे अनु कुछ अलग ही लग रही थी, आज उसे अनु अपनी कोई अमानत लग रही थी जिसे वह साधिकार लेने आया था!

“अनु मुझे माफ़ कर दो! मैंने तुम्हें इतने दुःख दिए! मगर यह सच है कि मैं तुम्हें दुःख नहीं देना चाहता था! मैं बस अपने दर्द से लड़ रहा था! आज तुम्हारे हाथों में मनीषा की डेथ रिपोर्ट देखकर हैरान हूँ!”
“वैसे तो अब कुछ कहने की जरूरत नहीं है रोहित, मगर यह सब आप पहले बता देते तो हम दोनों ही दर्द के उस समंदर में जाने से बच जाते जिसमें हम रोज़ गोते लगाते थे! क्या यह सही नहीं होता कि आप शादी से पहले ही यह बात मुझसे कहकर हलके हो जाते, अपना दर्द हल्का कर लेते?” अनु बोलती जा रही थी. बार बार उसके चेहरे के रंग बदलते, और बार बार वह दर्द का एक पन्ना खोलती
“तुम्हें पता रोहित, जब तुम मुझे छोटी छोटी उन बातों पर झिड़कते थे और उन चीज़ों को छूने नहीं देते थे जो मनीषा और तुमने मिलकर खरीदी थीं, तो मैं न जाने कितनी मौतें मरती थीं, तुम बार बार मेरे अस्तित्व को उस अस्तित्व से तुलना करते थे जो होकर भी नहीं था और मैं जो तुम्हारे सामने थी, वह अपने होने के लिए रोज़ लड़ाई कर रही थी!”
रोहित चुपचाप बैठा था. उसे लगा जैसे मनीषा भी उसे नाराज़ है, वह कह रही हो, “यह  तो मैंने नहीं चाहा था रोहित!, तुम्हारी खुशी चाही थी!”
रोहित की चाय खत्म हो चुकी थी! उसने आगे आकर अनु का हाथ थाम लिया!
“आज से सब पिछ्ला खत्म करते हैं अनु! मेरी सारी गलतियों को माफ़ कर अगर साथ चल सकती हो तो चलो! तुम्हारी कोख में जो आया है, वह तमाम उम्मीदें लेकर आया होगा, और मैं उसकी माँ को अब हर खुशी देना चाहता हूँ!”
“अगर आना न होता तो अपने मायके जाती, यहाँ न आती! एक दो दिन रूककर चलते हैं!”
रोहित ने आगे बढ़कर अनु को गले लगा लिया! इस स्पर्श में पीड़ा घुल घुलकर बह रही थी. यह जो स्पर्श था वह आज तक का सबसे अनछुआ स्पर्श था! दोनों ही रो रहे थे, दोनों ही हंस रहे थे!
अच्छा छोड़ो, जाओ नहा लो! गंध्या रहे हो!” अनु ने अधिकार भाव से छेड़ा, जैसे मनीषा छेड़ा करती थी! उसने अनु का हाथ दबाया और धीरे से कहा “आई लव यू!”
अधिकार और प्यार ने अपना चेहरा बदल लिया था।


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नया साल

फिर से वह वहीं पर सट आई थी, जहाँ पर उसे सटना नहीं था। फिर से उसने उसी को अपना तकिया बना लिया था, जिसे वह कुछ ही पल पहले दूर फेंक आई थी। उसने...