“चाय पीयेगी अन्वी”
तान्या ने पूछा
“तानू, मैं यहाँ
कैसे?”
“अन्वी, तू तो पिछले
एक घंटे से ही यहां है?”
“सच में?” अन्वी के
मन में जैसे एक ज्वालामुखी फटा.
मैं यहाँ कैसे? मैं
कैसे आ गयी? मैं अविनाश के साथ थी, फिर यहाँ तान्या के घर? ओह मेरे साथ क्या हुआ
था?
“तू यहाँ एक घंटे से
है!”
“पर मैं यहाँ आई
कैसे?”
“अपनी धन्नो से?”
“सीरियसली?”
“येस डियर”
“पर मैं तो अविनाश
के साथ थी!” वह मुंह ही मुंह में बुदबुदा रही थी,
“अरे तू क्या बोलती
और कहती है समझ में नहीं आता” तान्या ने कहा
“अच्छा एक बात बता,
मैंने एक घंटे में तुमसे कुछ बातें की क्या?”
“नहीं!”
“तुम आईं और सो गईं,
अब उठी हो! क्यों क्या हुआ?”
“कुछ नहीं यार, चल
चाय पिला और फिर मैं घर जाऊं!”
“आर यू श्योर कि तुम
जा पाओगी?”
“हां, यार बस चाय
पिला दे”
“ओके”
अन्वी यही सोच रही थी कि वह क्या करे अविनाश ने जो कहा था वह उससे आगे की बात
करे या मां के पास जाए. मां को मेरी जरूरत है. मां जिस मोड़ से गुजर रही हैं, उसमें
उन्हें एक साथी की जरूरत है और वह खुद चाहती है कि वह अविनाश से शादी करने से पहले
मां का घर बसा जाए. यही बात करने के लिए आज वह अविनाश के पास गयी थी पर वहां से जो
उसे जबाव मिला था वह उसे हतप्रभ करने के लिए काफी था. वह चाहती थी कि उसके मां ने
आज से दस बरस पहले उसके कारण शादी न करने का फैसला किया था वह बदल लें और अब शेखर
अंकल से शादी कर लें. शेखर अंकल की आँखों में माँ के लिए बहुत प्यार देखा है.
उफ अविनाश! तुम ही मेरे इस फैसले में मेरे साथ नहीं हो? उसकी आँखों से आंसू बह
निकले!
“सब कुछ ठीक है न!” तान्या ने चाय का कप रखते हुए कहा
“हाँ, यार, सब ठीक है!”
“देख यार, अगर कुछ भी बात है मन में तो बता. अविनाश के यहाँ से तू जिस हाल में
आई थी, वह मुझे डराने के लिए काफी था. तुझे पता है, ऐसा तो हाल तब भी नहीं होता जब
मैं एक बोतल बियर चटका लेती हूँ!”
“तू भी न तान्या, बस हर समय तुझे पीने
की लगी रहती है!” अन्वी ने प्यार से झिड़का.
उसे तान्या का यही चुलबुला स्वभाव पसंद है. एक खदबदाते हुए कोल्डड्रिंक जैसी
है तान्या. जो अपने प्यार से सबको समेटे रहती है. माँ के बाद वह केवल तान्या के
नज़दीक है. वह तान्या को यह बात बताए या नहीं? वह समझ नहीं पा रही. आखिर माँ की
शादी में अविनाश को समस्या क्या है? वह अविनाश को सोचती जा रही है और अपनी मंगनी
की अंगूठी को घुमाती जा रही है जैसे बहुत कुछ सोच रही हो. ओह, ये क्या? अंगूठी
ढीली थी, हां जैसे उसका और अविनाश का रिश्ता, एकदम ढीला, कहीं से कोई भी हिला सकता
था. ओह, वह क्या करे? वह क्या करे? उधर
अंगूठी उसके हाथ से फिसलने ही वाली थी कि तान्या आ गयी.
“ओह, तो मैडम, कुछ सोच रही हैं?, इस सोच में अविनाश बाबू तो गए! बेचारे अभी गिर
जाते!”
“क्या तान्या? मेरा मन अजीब है!”
“क्या हुआ मेरी जान, वोदका दूं तब बताएगी क्या या चाय से ही उलट देगी अपने मन
की बात!”
“यार, तू जानती है कि मैं नहीं पीती!”
“तो पी ले, फिर तो तेरी शादी उस संस्कारी अविनाश से हो ही जानी है, तेरा आदर्श
पति, फिर तो तू कोल्डड्रिंक में ही शर्माएगी, तो फिर ये हरी परी का क्या होगा?”
“ओह अविनाश!” वह रो पड़ी
“अरे अन्वी क्या हुआ? तू मान न मान कुछ तो हुआ है! अब तू मुझे बताएगी या मैं
खुद अविनाश से पूछूं?”
“न वह फोन नहीं उठाएगा!”
“न वह फोन नहीं उठाएगा!”
“अरे ऐसा क्या?”
“सुन, तुझे पक्का याद है कि मैं यहाँ एक घंटे से हूँ?”
“हां यार!”
“चलूं फिर, माँ चिंता कर रही होगी?”
“पर हुआ क्या है?”
“कुछ नहीं, मेरी धन्नो सही है?”
“हां, वह वहीं पर खडी है जहां पर वह होती है”
“और चाबी?”
“वह भी वहीं, माने अपनी जगह दरवाजे पर”
“ओह, चल मैं चलूँ! माँ को भी पता नहीं था कि मैं अविनाश से मिलने जाऊंगी”
जैसे ही उस वन रूम अपार्टमेंट से बाहर निकली अन्वी, वैसे ही जून की लू ने उसका
स्वागत किया. अन्दर तक हुलस गयी. पर उसकी यह जलन अविनाश के शब्दों की तुलना में
बहुत हल्की थी, वह तो अपनी आत्मा को जलाकर आई थी. अविनाश के साथ की ठंडी दोपहर
में, अपने मन की बात कहने पर जैसे उसे थप्पड़ सा लगा था,
“यू ब्लडी सेल्फ डिपेंडेंट औरतें?”
“अविनाश, ये तुम क्या कह रहे हो?” अन्दर तक कहीं चटकन को समेटते हुए उसने पूछा
था
“और क्या, मतलब ये भी कोई बात होती है करने के लिए? कमाती हो तो क्या ऐसी
फालतू बात बोलोगी?”
“मैंने क्या गलत कहा?”
“क्या गलत नहीं है?, अरे यार हमारे धर्म में ये चलता ही नहीं है जो तुम कह रही
हो?”
“तो मना भी तो नहीं है हमारे धर्म में?”
“क्या मना नहीं है? यार किसी शादीशुदा औरत का दोबारा शादी करना मना है, वह भी
तब जब उसका पति जिंदा हो और तलाक भी नहीं हुआ हो”
“तुम माँ को सुहागन मानते हो?, क्या केवल सिन्दूर लगाने से ही माँ सुहागन है?
वाह,”
“चुप रहो यार!”
“अविनाश, समझो यार, मेरे जाने के बाद माँ अकेली रह जाएगी. क्या करेगी वह?”
“करेगी क्या, अगर मन हो तो तुम्हारे पास रहे और अगर मन है तो तुम्हारे पापा के पास चली जाए. आखिर
तुम्हारी माँ बीवी तो उनकी ही है न!”
“अविनाश, ओह, तुम भी? तुम भी माँ को केवल मेरे पापा की बीवी ही मानते हो. तुम
उन्हें अलग नहीं देख सके, वेल एजुकेशन के बावजूद, तुम्हें पता है मेरी माँ दस साल
से एक झूठे सिंदूर के साथ है, सरिता आंटी के पापा की ज़िन्दगी में आने के बाद वे
कभी मेरे पास नहीं आए, शैली आंटी के बच्चों को वे अपने बच्चे मानते हैं, मुझे तो
केवल नाम के लिए अपना नाम दिया है. अगर कहीं त्याग है तो वह मेरी माँ ने किया है,
दस साल, दस साल अविनाश!”
“ये क्या दस साल दस साल लगा रखा है, आखिर अंकल ने आंटी को तलाक तो दिया नहीं
है, तो फिर वह वहीं जाकर क्यों नहीं रह सकती?, आधे घर में वह रह लेंगी”
“छि अविनाश! आज तुमसे मुझे नफरत सी हो रही है, जो औरत को केवल आदमियों की एक
पूंजी सोचता है. औरतें अलग होती है, उनका अस्तित्व अलग होता है”
“यही एटीट्युड रहा होगा, आंटी का तभी अंकल वापस नहीं आए कभी, एक अकेली लड़की
जनी और दूसरा ये घमंड, अमा यार, ये तुम औरतें कैसे ऐसी हो सकती हो”
“अविनाश” वह रो पड़ी थी, उसे लग रहा था
कि अविनाश उसे सम्हालेगा, मगर उसने उसे सम्हाला नहीं!
“अरे यार, तुम रो क्यों रही हो, क्या मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं, बचपन से केवल
तुम्हें ही प्यार किया है, याद करो, कैसे तुम्हारे साथ खेलता था”
अविनाश ने उसका मूड सही करने के लिए मजाक किया. पर वह अन्दर तक टूटने लगी थी.
ओह, इस आदमी के साथ अपनी ज़िन्दगी बिताने जा रही है, ढीली अंगूठी उसकी गर्दन पर
फंदा बनकर कसने लगी थी, वह अविनाश के शब्दों की रस्सी से खुद को बंधा हुआ पा रही
थी, जैसे पापा ने उसके पैदा होने के बाद एक नई दुनिया बसा ली थी और एक बेटा न दे
पाने के कारण माँ को कभी माफ नहीं कर सके थे, वैसे ही किसी छोटी बात पर अविनाश उसे
भी छोड़ कर जा रहा है और वह माँ के कंधे पर सिर रखकर रो रही है. ओह, ओह! अविनाश,
संस्कारों की बात करने वाला अविनाश, मॉडर्न वेशभूषा में भी परिवार को अपना सर्वस्व
मानने वाला अविनाश, ऐसा था! उसकी माँ ने केवल उसके लिए कि उसे पिता का नाम मिलता
रहे, तलाक नहीं दिया था और खुद एक छोडी हुई औरत का तमगा लगा लिया था. माँ को जब
शैली आंटी के बेटा होने का पता चला था तब से वे मुक्त सी हो गयी थी, ऐसा लगता था
जैसे उनके दिल पर एक बोझ था वह भी हट गया था. माँ को कभी रोते हुए उसने नहीं देखा
था, पापा के जाने के बाद तो बिलकुल ही नहीं. जब वह बारह बरस की हो गयी थी और उसके
सामने माँ पांच बार तीन तीन महीने गर्भवती होकर गर्भपात का शिकार हुई, तो जैसे घर
में शमशान जैसी मुर्दानगी छा गयी थी. ऐसे में शैली आंटी से शादी का प्रस्ताव आने
पर माँ ने सहर्ष अनुमति दे दी थी. अपने शरीर के साथ और चीराफाड़ी करने के पक्ष में
माँ नहीं थी और नहीं थी वह ऐसे आदमी के साथ रहने में जो केवल बेटा न होने देने के
कारण उनके शरीर के साथ हर दूसरे साल प्रयोग करता था. माँ, ने केवल यह घर माँगा था
और उसकी शादी तक तलाक न लेना. ये दोनों ही शर्तें पापा और शैली आंटी को मंजूर थी.
कैसा रहा होगा माँ का दर्द. उसे याद है जब भी वह पापा के बारे में पूछती तो माँ उसे
पापा के पास जाने के लिए कभी मना नहीं करती थी, लेकर जातीं और जब शैली आंटी के
गर्भवती होने की सूचना मिली तो माँ ने उनका बहुत ख्याल रखा. माँ ऐसा क्यों करती
थी? अन्वी कभी पूछ नहीं पाई? माँ ने हमेशा दिया, और अपनी ज़िन्दगी से समझौता करने
से बची. माँ का यह निर्णय पापा को भी परेशान करता था. पर वे खुश थे, अपनी नई
ज़िन्दगी में, शैली आंटी के साथ. माँ हमेशा मुक्त होने की बात करती थी, ये कैसी
मुक्ति थी, माँ उधार में हंसती थी, ये किसका उधार था? माँ हमेशा कहती “बस.........”
वह माँ की इस बस में उलझ जाती! आखिर यह बस क्या था? वह बेचैन रहती, अजीबो गरीब
तरह से बेचैन रहती. कभी कभी इधर से उधर चक्कर काटती, बोलती, “मुक्ति दे दो प्रभु,
मुक्ति दे दो”, ओह, माँ की मुक्ति की अवधारणा उसे समझ में नहीं आई थी. जिस दिन
शैली आंटी के बेटा होने की खबर सुनी, माँ ने मेरे सिर पर हाथ फिराया और कहा “ओह,
मुक्ति! आखिर तुम आ ही गयी”
उस दिन उसने माँ के चेहरे पर अजीब खुशी देखी जैसे बुद्ध के चेहरे पर ज्ञान बोध
होने के बाद आई होगी. माँ का चेहरा देखकर उसे लगता कि वह एक लम्बा सफर तय करके आई
हैं और आराम करना चाहती हैं. उसे माँ में बुद्ध की शांति देखकर लगता कि इस शांति
का आखिर कारण क्या है? बेटा शैली आंटी के हुआ और मुक्ति माँ को? उसने कई बार पूछना
चाहा, पर माँ ने हमेशा कहा “समय के साथ तुम्हें पता चल जाएगा, कुछ सवालों के जबाव
हमेशा समय में होते हैं” माँ ऐसी ही थी. अविनाश को वह बहुत पसंद करती थी,जब से उन
दोनों का एडमिशन इंजीनियरिंग में एक साथ हुआ था. उन तीन चार सालों में अविनाश न
केवल उसके बल्कि माँ के भी नजदीक आया. नौकरी करते हुए माँ को अब बीस बरस हो चले
थे. उसकी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरे होते ही माँ ने अविनाश को लेकर उसका मन टटोला
और उसकी तरफ से हां पाकर, माँ ने पापा से बात करके अविनाश के घर रिश्ता भेजा था. पारिवारिक
संरचना के बारे में थोड़ी सी झिझक के बाद हां हो गयी थी. उसे याद है अविनाश ने उसकी
माँ की तरफदारी करते हुए अपने माँपिताजी से कैसे बात की थी. अविनाश ने कहा था
“जो भी हुआ, उसमें अन्वी की माँ की क्या गलती है?’
“बेटा नहीं जना है उसने!, उसकी बेटी भी बेटियाँ ही देगी!”
“ओफो माँ, आप लोग भी कैसी बात करते हैं! आज के जमाने में! लड़के और लड़की में
फर्क है क्या?”
“देख लो बचवा, अब बाद में हमसे न कहना कि चेताया न था, देखो हमें तो चाहिए ही
चाहिए बेटा एक, अब तुम देख लो”
“ओहो माँ, ऐसा कुछ नहीं होगा!”
पापा ने ईमानदारी से सब कुछ बता दिया था, शैली आंटी ने भी बढ़ चढ़ कर इस सगाई
में हिस्सा लिया था, आखिर उन्हें तो इस दिन का बरसों से इंतज़ार था. कुछ महीनों के
बाद उनका असली गृह प्रवेश होना था. उसकी शादी की तैयारी करते करते माँ खो जाती, वह
उस घर को देखती. हर कमरे में झांकती. उसके बचपन की छाँव बिलोती, फिर चाबी में बंद
कर उन सबको अन्वी को ही दे देती.
“ओहो माँ, ये घर मुझे नहीं चाहिए, तुम रहना यहाँ”
“न अन्वी, ये तुम्हारा घर है. तुम्हारे पापा से मैंने ये घर तुम्हारे नाम पर
करवा लिया था. अब तुम्हारी शादी हो तो मैं इस कर्ज से मुक्त होऊँ!”
“माँ, तुम कहाँ जाओगी?”
“अरे पागल, मैं! मैंने इंतजाम कर लिया है, हां, इतना बड़ा घर नहीं है, पर वन
रूम सेट है. वहा पर मेरी जरूरत का सारा सामान होगा. तुम्हें भी दिखाऊंगी, आखिर
मुझसे मिलने तो आओगी ही!”
उसे अपनी माँ का स्वाभिमान बहुत प्रिय था. उसी स्वाभिमान के कारण वह उसके पापा
के साथ नहीं रही थी, ये घर उसका था, यह वह अविनाश के सामने भी कह देती थीं.
“ओ मैडम! कहाँ खो गईं?”
अतीत के सफर से बाहर वह निकल आई!
“देखो, यार तुम समझो, तुम्हारे पापा ने जो भी किया, वह अपने बेटे के लिए किया!
अब अगर तुम्हारी माँ उन्हें बेटा दे देती तो क्या वे पागल थे दो दो गृहस्थियों
का बोझा उठाते? आखिर दो दो घर चलाना हंसी
खेल तो है नहीं”
ये कौन से अविनाश से वह मिल रही थी. यह तो वह अविनाश नहीं था, यह तो कोई और ही
था. उसके शरीर से आने वाली गंध तो वही थी, पर उसकी बातें? उसके विचार? ओह, ये कौन
है? ये कौन है? वह पागल हो रही थी!
“यार, तुम न इमोशनल हो रही हो! तुम्हारी माँ कहीं भी रह लेंगी, इतने सालों से
नौकरी कर रही हैं, पैसा तो होगा ही उनके पास, एक फ्लैट खरीद लेंगी, नहीं तो शैली
आंटी के साथ रह लेंगी. आखिर शादी के बाद तुम्हें भी तो कोई मायका चाहिए होगा? ये
घर तो हमारा होगा डार्लिंग! अब तुम्हें भी रस्में निभाने के लिए पापा मम्मी के पास
ही जाना होगा न!”
ये अविनाश ही है, ओह! तभी माँ जब बोलती थी ये घर उसका है, तो अविनाश का चेहरा
खिल जाता था! वह माँ के आगे बिछ बिछ जाता था. ये घर का चक्कर था क्या? उफ, ये क्या
कह रहा है अविनाश! ये क्या कर रहा है अविनाश! उसे लग रहा था कि जैसे उसे बुखार चढ़
रहा है, वह अजीब से ताप का शिकार हो रही है. उस एसी में उसे लग रहा था कि वह जल
रही है, उसके शरीर पर वही नीम्बू के पेड़ के कांटें चुभ गए हैं जो साइकिल सीखते समय
उसके गिरने पर उसके शरीर पर चुभ गए थे और उसने बहुत ही मुश्किल से अपने हाथों
पैरों से उन काँटों को निकाला था. उसके बाद जो जलन हुई थी वह नाइसिल से भी नहीं
गयी थी. माँ को तो बताया ही नहीं था.
वैसी ही चुभन वह अपने गले में महसूस कर रही थी, उसके मुंह से एक भी शब्द नहीं
निकल रहा था, ये उसका ड्रीम बॉय था. ओह अविनाश, ओह, वह रो रही थी. पर अविनाश तो
जैसे कुछ समझ ही नहीं रहा था.
“देखो, तुम्हारे पापा की दूसरी शादी को तो लोग मान लेंगे, पर माँ! माँ की
शादी? पागल हो क्या? मैं क्या मुंह दिखाऊंगा अपने घर वालों को? क्या कहूँगा कि ये
मेरे नए ससुर हैं? अरे तुम समझ नहीं रही हो! अभी केवल तुम ही हो अपनी माँ की पूरी
जायदाद की वारिस, उनकी शादी के बाद वह उनके नए परिवार में चली जाएगी! अबे पागल
औरत, तू समझ क्यों नहीं रही है”
अविनाश की आवाज़ तेज हो रही थी. जब से उसने शेखर अंकल और माँ की शादी की बात की
थी.
“वो, बुड्ढा ठरकी आदमी, तभी मैं सोचूँ तुम्हारे घर पर इतना क्यों आता है? आखिर
तुम्हारी माँ पर डोरे डाल रहा है, बूढ़ी औरत बेटी की शादी के बाद अकेली हो जाएगी,
और वह उसकी जायदाद पर अधिकार जमा लेगा”
अविनाश के चेहरे पर अजीबोगरीब भाव आ रहे थे.
“सुनो, यार, तुमने आज क्या रट लगा दी है, माँ और शेखर अंकल की शादी?”
अविनाश मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ, मैंने माँ जैसी स्वाभिमानी औरत नहीं देखी है.
हमेशा दिया ही है, लिया कुछ नहीं. अब उनके लिए करने का समय आया है तो क्या मैं
उनके लिए इतना नहीं कर सकती?”
“नहीं कर सकती, सुना तुम नहीं कर सकती? एक औरत इस उम्र पर शादी नहीं कर सकती!,
और अगर तुमने दोबारा ऐसा सोचा भी तो अपने लिए भी शेखर अंकल जैसा ही खोज लेना”
ओह अविनाश, तुम ऐसे निकलोगे? कभी सोचा नहीं था. गर्म दोपहर में वह न जाने
कितनी देर तक वहीं खड़ी रही थी. और न जाने कैसे भावों के साथ वह पहुँच गयी थी
तान्या के घर पर. न उसे अपना होश था और न ही खबर, वह कैसे जिएगी उस आदमी के साथ
जिसके ऐसे विचार हैं? ओह, वह अपनी स्कूटी उठाकर चल पड़ी थी, और उसे होश आया था, तब
भी क्या उसे होश आ पाया था? वह क्या करे? उस गर्म दोपहर को कैसे वह ठंडी शाम में
बदले! एक तरफ उसकी उंगली में पड़ी अंगूठी है तो दूसरी तरफ उसकी माँ की जिंदगी, उस
माँ की जिसने उसके लिए अपनी हर इच्छा त्याग दी, ऐसी ज़िन्दगी जी, जो उसकी नहीं थी!
उसे लग रहा है माँ का अकेलापन, उसका इस घर से जाना, एक छोटे घर में माँ को बुढ़ापे
की सीढियों की तरफ अकेले चलना. उसका अपनी नई ज़िन्दगी में प्रवेश और माँ? वह? उसका
क्या? पापा और शैली आंटी का कानूनन एक होना! उसकी माँ क्या करेगी? और वह? ओह,
अविनाश तुम ऐसे निकलोगे?
अपनी माँ और अपनी खुशियों में से माँ का पलड़ा उसे भारी लगने लगता! माँ, क्या
करे वह, क्या करे?
आंसू पोंछकर वह घर की तरफ चली थी,
“अरे अन्वी, कहाँ थी? इतनी देर से अविनाश का फोन आ रहा है, तुम दोनों के बीच
कोई लड़ाई हुई है क्या?”
“नहीं तो?”
“फिर तुम उसका फोन क्यों नहीं उठा रहीं?”
“बस ऐसे ही”
“माँ तुम मेरे बिना क्या करोगी? मेरे बाद तुम्हारा अकेलापन?”
“मैंने तुम्हें बताया है न, कि मैं एक वन रूम सेट में जाऊंगी, तुम्हें मेरी
चिंता करने की जरूरत नहीं है”
“माँ, तुम्हें उस दिन वाकई मुक्ति मिलेगी न!”
“अन्वी!”
“माँ बोलो न”
“अन्वी, मेरी बच्ची! जाने दे इसे!”
“माँ, अब मैं जा रही हूँ तुम्हारे पास से हमेशा के लिए तो तुम्हारे अकेलेपन
में कौन तुम्हें सम्हालेगा?”
“होंगी न तुम्हारी यादें!, जब भी याद आएगी तब तुम्हें याद कर लिया करूंगी,
तुमसे बात कर लिया करूंगी! तुम कहाँ मुझसे इतनी दूर होगी?”
“माँ, मैं तुम्हारे मानसिक और शारीरिक दोनों ही अकेलेपन की बात कर रही हूँ.
तुम्हें मैंने अकेले बहुत देख लिया है. शैली आंटी और पापा एक हैं, और तुम?
तुम्हारे अकेलेपन के लिए कोई तो हो?”
“अन्वी, ये क्या लेकर बैठ गयी है. सच कहना यही बात करने तुम अविनाश के पास गयी
थी न!”
“छोड़ो न माँ अविनाश को? मैं तुमसे बात कर रही हूँ, एक नहीं कई अविनाश मिलेंगे!
पर तुम और तुम्हारा अकेलापन”
“क्या बोल रही है अन्वी, हे प्रभु ये लड़की क्या करके आई है? क्या करके आई है,
बोल?”
“माँ आप शांत हो जाएं, कल शेखर अंकल आपके पास आएँगे, मैंने आपको और शेखर अंकल
को एक दूसरे की परवाह करते हुए देखा है, आप दोनों की आँखों में एक तड़प देखी है, वह
तड़प मुझे अन्दर तक सिहरा देती है. मैं चाहती हूँ माँ तुम दोनों अपनी जिंदगी एक साथ
जियो! माँ तुम जियो न!”
“पागल लड़की, ये क्या कह रही है? मैं अभी अविनाश को फोन लगाकर बुलाती हूँ, तुम
उससे यही बोलकर आई हो”
“माँ, कोई फायदा नहीं, अंगूठी वैसे भी ढीली थी, मेरे साइज़ की नहीं थी, कभी कभी
हम समझ लेते हैं कि वह हमारे लिए होगा, पर हर अच्छी डिजाइन आपके हिसाब से हो, यह
भी तो ठीक नहीं है, मैं उसे वह वापस कर आई हूँ. और माँ आज बहुत दिनों के बाद फ्री
महसूस कर रही हूँ, उस लिफाफे में डिवोर्स के जो पेपर हैं जो आपको साइन करने थे, कर
दीजिएगा, कल आ रहे हैं शेखर अंकल. माँ मैं अपने माँ पापा के हाथों विदा होना चाहती
हूं. मैं मायका चाहती हूँ, मुझे अपने पापा और माँ के घर पर आना है. माँ, मुझे ये
दे दो! माँ मुझे मेरा पूरा मायका दे दो न!”
“अन्वी!”
“माँ, ये पेपर साइन करके आपकी मुक्ति होगी, और शेखर अंकल के साथ आपका घर बसाना
उस मुक्ति के बाद का दूसरा चरण होगा!”
“अन्वी, मेरी लाडो, इतनी बड़ी हो गयी”
“पर तुम्हारे लिए तो वही हूँ न!, तुम्हारी बार्बी”
“हां, लाडो”
माँ को बिना बताए अविनाश को मेसेज भेज चुकी थी “गेट लॉस्ट डियर, मैंने अपनी
माँ की मुक्ति चुन ली है, अपना मायका बना लिया है.”
“शुक्रिया अविनाश, आज बरसों के बाद मुझे सही राह दिखाने के लिए”
अपने गले में एकदम से उभरे दर्द को दबाने के लिए शेखर अंकल से बात करने लगी थी
वह....................
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