रविवार, 20 नवंबर 2016

गर्भधारण और गर्भपात: स्त्री के अधिकार

गर्भधारण और गर्भपात: स्त्री के अधिकार

मातृत्व स्त्री का नैसर्गिक मानवाधिकार है और स्त्री का यह अधिकार सुरक्षित रहना ही चाहिए। स्त्री के पास यह अधिकार होना चाहिए कि वह कब गर्भधारण करना चाहती है। अधिकतर देशों में विवाह का मुख्य उद्देश्य वंश चलाना अर्थात संतानोत्पत्ति ही है।  यह भी एक विडंबना और विरोधाभास ही है कि जहां स्त्री के द्वारा जन्मदिए गए शिशु की प्रतीक्षा परिवार के साथ साथ समाज को भी होती है, वहीं स्त्री के स्वास्थ्य को एकदम से अनदेखा कर दिया जाता है। दुनिया भर के देशों में गर्भपात को लेकर तमाम तरह के क़ानून बने हुए हैं, जिनमें गर्भापात की स्थिति को स्पष्ट किया गया है। कुछ वर्ष पूर्व आयरलैंड में भारतीय मूल की सविता की असामान्य स्थितियों में मृत्यु ने पूरे विश्व में इस बहस को जीवित कर दिया था कि आखिर गर्भपात के लिए क्या समय सीमा होनी चाहिए और क्या क़ानून होने चाहिए। सविता की दुखद मृत्यु ने ही कैथोलिक आयरलैंड को आननफानन में एक ऐसा क़ानून बनाने के लिए बाध्य किया जिसमें विशेष परिस्थितियों में गर्भपात की अनुमति दे दी गयी।

ऐसे ही जीका वायरस की विभीषिका से जूझ रहे अमेरिकी देश ब्राजील में कैथोलिक चर्चों ने गर्भपात की अनुमति नहीं दी है और वहां पर गर्भपात के विरोध में एक विधेयक को भी पारित कर दिया गया है। वहीं कुछ लैटिन अमेरिकी देशों में महिलाओं से आग्रह किया जा रहा है कि वे गर्भधारण से परहेज करें। जीका वायरस से कई रूढ़िवादी कैथोलिक देश प्रभावित हो रहे हैं जहां गर्भपात को लेकर बहुत ही कठोर क़ानून है। यदि ऐसे में वे गर्भवती हो जाती हैं तो वे गर्भपात नहीं करा पाएंगी। जीका से प्रभावित कई देशों में गर्भनिरोधकों के प्रयोग की भी अनुमति नहीं है। ऐसे में स्त्रियों के समक्ष क्या विकल्प हैं या हो सकते हैं?

गर्भधारण की बात हो या गर्भपात का मुद्दा, अगर देखा जाए तो दुनिया के अधिकतर देशों का पलड़ा स्त्रियों के प्रति अन्यायपूर्ण ही दिखाई देता है। भारत की अगर बात करें तो एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर सात मिनट में कोई न कोई गर्भवती स्त्री प्रसव संबंधी कारणों से मृत्यु का शिकार बनती हैं। कुछ वर्ष पहले छत्तीसगढ़ में हुआ नसबंदी काण्ड कौन भूल सकता है जब कई स्त्रियों को चिकित्सीय लापरवाही के चलते अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। परिवार नियोजन के भी सभी प्रयोग केवल स्त्री के शरीर पर ही होते हैं, आखिर इस आनन्द में सहभागी रहे उसके साथी किसी भी उपाय का प्रयोग करने में क्यों हिचकिचाते हैं?

गर्भपात, एक ऐसा मामला है जो देश के कानूनों से अधिक धर्म से संचालित होता है। इस मुद्दे पर बात करते ही तमाम धर्म के ठेकेदार अपने अपने तर्कों के साथ यह स्थापित करने में लग जाते हैं कि गर्भपात से बढ़कर दुनिया में कोई पाप नहीं है। मनुस्मृति के अनुसार यदि अन्न पर गर्भपात करने वाले की द्रष्टि भी पड़ जाए तो वह अन्न अभक्ष्य हो जाता है, (मनुस्मृतिः 4.208)। ईसाई धर्म में तो गर्भपात को महापाप माना गया है और यह कैथोलिक देशों में देखा जा रहा है। इस्लाम में भी गर्भपात को हराम माना गया है।

गर्भपात का यह विषय देखने में जितना छोटा है, हकीकत में उसकी समस्या इससे कहीं विकराल है। असुरक्षित गर्भपात के चलते दुनिया भर में आज कितनी स्त्रियाँ अपना जीवन गंवा रही हैं, इसके आंकड़े शायद बहुत ही भयावह और विचलित कर देने वाले हैं। भारत में हालांकि गर्भपात का क़ानून कई देशों की तुलना में काफी संवेदनशील है और उसमें बलात्कार के परिणामस्वरूप गर्भधारण की स्थिति में गर्भपात की अनुमति है। भारत में भी कुछ वर्ष पूर्व निकिता मेहता का मामला सुर्ख़ियों में आया था जब भ्रूण में ह्रदय संबंधित विकार के कारण गर्भपात की अनुमति न्यायालय से माँगी थी, क्योंकि भ्रूण की आयु गर्भपात की अनुमत समयसीमा से अधिक हो गयी थी। हालांकि उस वक्त निकिता की यह अर्जी न्यायालय ने ठुकरा दी थी।

गर्भपात का मुद्दा न केवल स्वास्थ्य, क़ानून, धर्म के साथ जुड़ा हुआ है बल्कि यह स्त्री के अधिकारों के साथ भी जुड़ा हुआ है। भारत में 1971 से ही गर्भ का चिकित्सीय समापन (एमटीपी) क़ानून लागू है, जो गर्भपात को वैधानिक अधिकार देता है। पर यह स्त्रियों के लिए किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य चिंताओं के कारण नहीं बल्कि केवल और केवल जनसंख्या नियंत्रण की एक विधि के रूप में लाया गया था। यदि इस क़ानून का अध्ययन किया जाए तो यह निकल कर आएगा कि गर्भवती स्त्री यह नहीं कह सकती कि यह एक अवांछित गर्भावस्था है। स्त्रियों को तमाम तरह के स्पष्टीकरण देने होते हैं।  और गर्भपात पूरी तरह चिकित्सीय सलाह पर निर्भर करता है।

हालांकि गर्भपात के विरोधी इस बारे में काफी तर्क देते हैं कि अगर बच्चा नहीं चाहिए तो पहले से प्रयास करने चाहिए, जिससे गर्भ ठहर ही न पाए। यह सही है कि गर्भाधान को एक सुनियोजित तरीके से किया जाना चाहिए ताकि गर्भपात के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर से बचा जा सके। पर अगर पूरी दुनिया में एक नजर दौडाएं तो पाएंगे कि परिवार में बच्चे के जन्म के लिए कई कारक उत्तरदायी होते हैं, जिनमें गर्भनिरोधक साधनों की खराब गुणवत्ता और असफलता से लेकर यौन हिंसा तक कई कारण हैं।  भारत में गर्भपात की समय सीमा अभी 20 सप्ताह है और इसे बढाने को लेकर विधेयक संसद में पिछले दो वर्षों से लंबित है जिस पर तमाम बहसें हो रही हैं।

कहा जा रहा था कि एमटीपी अधिनियम के लागू होने के बाद असुरक्षित गर्भपात की संख्या में कमी आएगी किंतु यह भी एक विरोधाभास ही है कि एमटीपी अधिनियम के लागू होने के बावजूद, असुरक्षित गर्भपात की संख्या में वृद्धि जारी है और हर साल लगभग 20,000 महिलाओं की गर्भपात संबंधी जटिलताओं के कारण मृत्यु हो जाती है, जिनमें से अधिकांश अयोग्य कर्मियों द्वारा, अवैध रूप से किए जाने से होती हैं।

गर्भपात के साथ एक और मुद्दा जुड़ा हुआ है वह है मादा भ्रूण हत्या का। एमटीपी के माध्यम से लड़कियों को गर्भ में ही मारना बहुत ही आसान हो गया था। पर 1994 में गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम भारत में प्रभाव में आया। इस अधिनियम के प्रभाव में आने के बाद हालांकि मातापिता को यह जानकारी देना अपराध हो गया है कि गर्भ में जो भ्रूण है उसका लिंग क्या है, किंतु अभी भी लिंग का चयनात्मक गर्भपात जारी है। बीबीसी की एक पुरानी रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2006 तक भारत में प्रतिवर्ष ऐसे पांच लाख भ्रूण मार दिए गए थे जो लड़कियों के थे। उत्तर भारत में विशेषकर पंजाब और हरियाणा में लिंगानुपात सबसे कम है। स्पष्ट है कि तकनीक के ऐसे ही दुरूपयोग है जो गर्भपात के अधिकार को कम करने में सबसे बड़ा कारक हैं।

लिंग निर्धारण परीक्षण की निगरानी तो ठीक है पर गर्भपात की निगरानी एक एकदम ही भिन्न मुद्दा है। यह तो तय हो जाएगा कि अगर सरकार के द्वारा सभी गर्भ रजिस्टर कर लिए जाएं और गर्भपात पर नजर रखी जाए तो अवैध गर्भपात को रोकने में मदद मिलेगी। पर गर्भपात के लिए वैध कारण क्या है, इसका निर्धारण सरकार में कौन करेगा? भारत में अभी भी स्त्रियों का शारीरिक संबंध स्थापित करने की परिस्थितियों पर कोई भी नियंत्रण नहीं है। ये तो बस हो जाते हैं, अनायास, अचानक, और इसका परिणाम स्त्रियों के लिए पीड़ा से कम नहीं होते हैं। इसके साथ ही आज स्त्रियाँ कैरियर बना रही हैं, कई बार वे ऐसे चरण में होती हैं जहां पर वे अपने कैरियर से समझौता नहीं कर सकती हैं, वे एक और मानव जीवन की जिम्मेदारी लेने की अवस्था में नहीं है। अभी हाल ही में काफी मामले ऐसे आए हैं जब कैरियर के शिखर पर पहुंचकर बच्चा तो पैदा कर लिया पर बाद में उस बच्चे के कारण उत्पन्न कुंठा ने ही उस बच्चे की जान ले ली। स्त्रियां एक तरह के अवसाद में चली जाती हैं, जब उनके सामने ये दो विकल्प आते हैं कैरियर या बच्चा। बच्चा उन्हें अपनाना होता है जबकि कैरियर वे छोड़ना नहीं चाहतीं। इसी तरह कई बार स्त्री के सामने बच्चे की अवैधता भी एक प्रश्न होती है। सामाजिक और आर्थिक सुविधाएं भी महत्वपूर्ण होती हैं। अवांछित बच्चे को जन्म देकर स्त्री तो अपने जीवन की डोर उससे बांध लेती है पर उसे कितना पारिवारिक समर्थन मिलता है, यह भी देखना होगा। ऐसे में गर्भपात के लिए कौन से कारण वैध होंगे और कौनसे अवैध, यह निर्धारित करना बेहद ही मुश्किल कार्य है।

गर्भपात कभी भी सकारात्मक विकल्प नहीं होता है। गर्भपात से जुड़े कुछ और जटिल मुद्दों पर जाएं तो पाएंगे कि कई बार स्त्रियां अपने पति और परिवार के दबाव में आकर लिंग आधारित गर्भपात कराती हैं – यह अपनी मर्जी का तो फैसला होता नहीं है, यह एक अजन्मी स्त्री के जन्म लेने के अधिकार की भी लड़ाई है। स्त्री के गर्भपात की स्वतंत्रता को उसी के वंश को नष्ट करने के लिए उसी की कोख के माध्यम से प्रयोग किया जा रहा है।

जैसे ही गर्भपात का मुद्दा उठता है वैसे ही विरोध करने वाले इसे स्त्री की फालतू स्वतंत्रता से जोड़कर देखने लगते हैं, वे उसके दुरूपयोग की बातें करने लगते हैं। उनके अनुसार स्त्रियां गर्भपात को भी एक फैशन बना लेंगी।  उस समय विरोध करने वाले उस पीड़ा को एकदम भूल जाते हैं जो जटिलताओं के साथ पैदा हुए बच्चे और उसकी माँ को होती है। गर्भपात के अधिकार के लिए संघर्ष करने का अर्थ यह नहीं है कि स्त्रियों को ऐसी कोई दुनिया चाहिए जहां गर्भपात कराना सरल और गर्भपात एक आम बात होगी, पर हमें ऐसी तो दुनिया पाने का अधिकार है जहां पर गर्भावस्था पर हमारा नियंत्रण हो, हम उन स्थितियों को बदलने में सक्षम हों जिनमें अवांछित गर्भधारण की स्थिति आ सकती है।

हमारा कहना केवल इतना है कि जब भी स्त्रियों के लिए सरकार कोई भी क़ानून बनाती है उसमें स्त्रियों का पहलू भी सम्मिलित करे। उसमें उसे होने वाली मानसिक और शारीरिक पीड़ाओं को स्थान दें। इस दुनिया में आधी आबादी के तमाम अधिकारों को केवल धर्म की चादर में न समेट कर रख दें।  एक तरफ आप गर्भपात पर प्रतिबंध लगा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ उन्हीं देशों में असुरक्षित गर्भपात की संख्याओं में निरंतर वृद्धि देखी जा रही है। स्त्रियों को उनके अधिकारों की तरफ आने तो दें, एक झरोखा खोलने तो दें। धर्म से परे भी उनका अस्तित्व है यह महसूस करने दें।


सोनाली मिश्रा
सी-208, G-1, नितिन अपार्टमेंट शालीमार गार्डन,
एक्स-II, साहिबाबाद,
ग़ाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश
फ़ोन – 9810499064


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