शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

लहरें अब बोलती नहीं



ऑफिस से लौटते हुए जैसे ही रोहित ने कार का रेडियो ऑन किया, वैसे ही उसके कान में आवाज़ पड़ी “रेडियो मिर्ची पर आपका स्वागत है। मैं हूँ आपका दोस्त नितिन और आप सुन रहे हैं, किशोर की आवाज़ में प्यारे और शरारत भरे नगमे”।
ओह किशोर!” रोहित ने ठंडी सांस ली और गाड़ी रिवर्स करने लगा। हल्की बूंदाबांदी हो रही थी। नॉएडा और दिल्ली के बीच हल्की ही बारिश में भयंकर जाम जैसी हालत हो जाती है। रोहित ने ऑफिस की खिडकियों से काले बादलों को झांकते हुए देख लिया था। उसका मन इस जाम में फंसने का जरा भी नहीं था। वह घर जल्दी पहुंचना चाहता था। वैसे तो घर पर भी क्या था? वही खाली रसोई, वही खाली सोफे! रंगीन सूनी सूनी दीवारें! जिन पर किसी के हाथों की छाप अभी तक थी।
रोहित ने गहरी सांस ली! एक तो मौसम और उस पर किशोर।इन दोनों के डेडली कोम्बिनेशन से वह बचना चाहता था।  उसकी साँसों को ये सब पसंद नहीं था। वह मौसमी रोमांटिक गानों से बचना चाहता था। गाड़ी चलाते चलाते हुए रोहित “ये शाम मस्तानी सुन रहा था”। यही तो वह गाना था जो उसे मदहोश कर गया था। उसे वाकई मदहोश नहीं होना चाहिए था। उसे नहीं खींचना चाहिए था उन पलों की डोरी को, जो उसके नहीं थे, उसे पत्तों पर ठहरी हुई ओस को नहीं उठाना चाहिए था, नहीं छेड़ना चाहिए था लहरों को! मगर वह कर गया था और जब से ये हुआ था तब से ही उसे किशोर के गाने परेशान कर जाते थे और वह इधर उधर गाड़ी चलाने लगता था। आज इस मौसम में भी वह बहक उठा। वह रुकना चाहता था, मगर वह रुक नहीं सका! वह जाना चाहता था मगर वह जा नहीं पा रहा था।
उसने अपनी गाड़ी घर के पास एक मॉल में पार्क कर दी। बारिश की बूंदों में भीगना उसे अच्छा लग रहा था। रोहित उस दिन के बाद से अक्सर बाहर निकल आता था। उस दिन के बाद उसे भीगना पसंद भी है और भीगने के बाद उसे जैसे खुद से ही दुश्मनी हो जाती थी। वह लड़ता था, झगड़ता था। मगर वह खुद को शांत नहीं करा पाता था। न जाने क्यों उसकी आँखों के सामने समुदंर के किनारे बिताए हुए वे सभी लम्हें आ जाते थे जब निवेदिता उसके साथ थी। निवेदिता की याद आते ही वह चिहुंक उठा। उसका मन हुआ वह चीखे, कि आखिर क्यों आ जाती हो, क्यों? जब मुझे छोड़कर जाने का फैसला केवल और केवल तुम्हारा था, जब तुम मुझे केवल इसीलिए छोड़कर चली गईं थी, कि मैं तुम्हारे मन मुताबिक़ कमा नहीं पा रहा हूँ, तुम्हें बरिस्ता लेकर नहीं जा पा रहा हूँ, तो फिर इस तरह मुझे परेशान करने का फायदा नहीं!
मगर वह लड़ता है खुद से! रोहित बारिश वाले हर लम्हे से लड़ता है और लड़ते लड़ते पहुँच जाता है गोवा की सड़कों पर, जहां पर वह सबसे पहले निवेदिता से टकराया था। उसे बहुत अच्छी तरह याद है कि उस दिन भी बारिश हो रही थी! वह अपने स्मार्ट फोन में किशोर का गाना एक लड़की भीगी भागी सी सुन रहा था। वह किशोर की मखमली आवाज़ में डूबते हुए अपनी मस्ती में भीगते हुए चला जा रहा था कि तभी उसे किसी ने हलके से टक्कर मारते हुए कहा
“ऐ  मिस्टर, सही से चलना नहीं आता क्या सड़क पर? या गोवा में नए आए हो?”
रोहित ने पीछे मुड़कर देखा। लाल स्कूटी पर हल्के पीले रंग के टॉप और काले रंग की स्कर्ट पहने एक लड़की उसकी तरफ इशारा कर रही थी।
“दिखाई नहीं देता क्या? सुनाई भी नहीं?” उसने फिर कहा
“ओह, सॉरी! दरअसल मैं कल ही अपने दोस्तों के साथ गोवा आया हूँ, और यहाँ के मौसम में इस तरह खो गया कि उनसे अलग हो गया! और अब मैं उन्हें खोजता हुआ जा रहा हूँ! सर्च ऑपरेशन!” रोहित ने बहुत ही मासूमियत से झूठ बोलते हुए कहा
“अच्छा, अगर भटक गए हैं तो ये फोन क्या केवल गाने ही सुनने के लिए है, क्या” उस पीले रंग ने हंसी की सरसों बिखेरते हुए उसके फोन की तरफ इशारा करते हुए कहा।
रोहित को लगा जैसे उसकी हंसी उसे एक नया टोनिक सा दे रही है। वह संकोच में उसे बता नहीं पाया कि कुछ बेरोजगार लड़कों की टोली के साथ वह आया है जिसके पास स्मार्ट फोन तो है मगर उसमें अधिक बैलेंस नहीं है! शायद, ये सभी लड़के अपने आप से एक लड़ाई लड़ने और अपने आप में एक नई ऊर्जा लेने के लिए अपनी छोटी मोटी रकम के साथ गोवा आए थे।
बेरहम दिल्ली की सड़कों पर चप्पल और जूते चटकाकर जब सेल्स टार्गेट और परफोर्मेंस बेस्ड नौकरी ये नहीं पा सके थे, तो कुछ समय के लिए ये सभी यहाँ आ गए थे! आखिर ज़िन्दगी में भीगना भी तो जरूरी होता है और वह भी गोवा की रंगीनियाँ! उनके तो कहने ही क्या? दिल्ली में हमेशा माँ बाबा के सपनों का बोझ अपने कन्धों पर लटकाकर चलते ये लड़के जैसे खुद के लिए एक मोहलत लेने के लिए आए थे।
“अरे! फिर खो गए मिस्टर खोयापाया! अगर रास्ता न खोज पाओ तो हम कुछ मदद करें?” उस पीली सरसों ने खिलते हुए कहा। उसे लगा वह पीली ट्यूलिप में बदल गयी है और हर तरफ एक बसंत सा छा गया  है। वैसे उसके नाकनक्श इतने ख़ास नहीं थे, पर उसकी आँखें बहुत बोलती सी थीं, एकदम ज़िन्दगी से भरपूर! जो उसमें गायब हो चुकी थी। दो साल से बेरोजगार रोहित के पास इस समय माँ बाबा के बुढ़ाते सपनों और बहनों की शादी के बोझ के अलावा कुछ नहीं था।
हर शहर में खुले हुए बड़े बड़े कैम्पस वाले इंजीनियरिंग विद्यालयों में उसके जैसे कितने लड़के थे, जिनके घरवाले पांच साल के बाद एक अदद नौकरी के लिए तरस रहे थे। हां घर से पैसा भेज रहे थे, मगर हर बार यही पूछते, “और कहीं कुछ हुआ?”
रोहित ने अब घबराकर फोन ही उठाना बंद कर दिया था। जैसे ही फोन उठाओ, उधर से माँ के खांसने की आवाज़ सुनकर वह फोन रख देता था! उधर उसकी बहन भी शादी के लायक थी। माँ बाबा ने अपनी अधिकतर पूंजी उसकी बड़े कॉलेज की पढाई  पर लुटा दी थी और इस समय उनके पास इतना नहीं बचा था कि एक इंजीनियर की बहन को ब्याह सकें!
बहन अभी पढ़ रही थी, और उसके भी अपने इंजीनियर भाई की नौकरी को लेकर बड़े सपने थे! मगर वह उन लोगों को किस तरह से समझाए कि ये लोग केवल प्रोडक्ट हैं केवल प्रोडक्ट! वैसे तो बहुत अच्छी नौकरी इतनी जल्दी इन लोगों को मिलती नहीं थी और उस पर आजकल कई प्रोफाइल पर केवल और केवल लड़कियों का कब्ज़ा हो रहा था। झक मारकर रोहित ने अपने मकान मालिक के बच्चों को ट्यूशन पढ़ानी शुरू कर दी थी और उनकी देखादेखी कई और बच्चे भी ट्यूशन पढने आने लगे थे। रोहित के पास इतना पैसा आ जाता था कि वह दिल्ली जैसे महानगर में नौकरी खोजने के लिए नए और ब्रांडेड कपड़े खरीद सके! वैसे भी वह एक प्रोडक्ट था और उसे सेलेबल प्रोडक्ट बनना ही था।
प्रोडक्ट, सेलेबल प्रोडक्ट आदि की परिभाषा से जब वह उकता गया तो अपने जैसे अपने कुछ दोस्तों के साथ वे लोग यहाँ आ गए थे! गोवा! गोवा की लहरों में भीगने! क्या पता जब यहाँ से फ्रेश होकर जाएं, तो नौकरी भी नई ताजगी के साथ खोजें?
अपने विचारों से उबर कर रोहित ने जब इधर उधर देखा तो वह पीला ट्यूलिप गायब हो चुका था! और उसके साथ ही उसकी सहेलियां भी चली गईं थीं! उसने इधर उधर देखा, मगर वह दिखाई नहीं दी! बूंदाबांदी बढ़ने लगी थी! रोहित को आज भीगना बहुत सुहाया! बचपन में बारिश में भीगते हुए न जाने कितनी बार ही स्कूल जाता था। मगर आज की बारिश अलग थी! आज वाकई अलग थी!
वह जल्द ही अपने दोस्तों की टोली में जा मिला।
“अरे! बड़ा खिला खिला लग रहा है अपना हीरो!” ये अमित था!
लड़के बियर और स्थानीय ड्रिंक लेकर मस्ती कर रहे थे!
“बस ऐसे ही! मौसम में भीगता हुआ न जाने किधर चला गया था! और तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो? समुन्दर में नहीं गए!” रोहित ने अपनी टीशर्ट को हिलाकर सुखाते हुए सवाल किया
“न! बारिश के कारण हम अन्दर ही हैं!” अमित ने कहा
“चलो न बाहर! लहरों से बातें करते हैं!” रोहित ने अपनी टीशर्ट उतारी और चला गया लहरों के साथ खेलने! उसे तो पानी इतना पसंद था, क्या पता पीला ट्यूलिप फिर टकरा जाए!
मगर वह नहीं आई!
अगले दिन सुबह जल्दी ही उठ गया था रोहित! वैसे भी वह जल्दी उठ जाता था! ट्यूशन पढ़ाने से लेकर घर के सारे काम जो थे! सुबह सुबह गोवा की भीगी सुबह में वह भीगने के लिए फिर से निकल गया था!
वहीं एक स्थानीय दुकान पर चाय पीते हुए अख़बार देख रहा था
“तुम?मिस्टर खोयापाया?” एक आवाज़ आई
रोहित ने अपना चेहरा उठाया! ओह! ये तो पीला ट्यूलिप लाल में बदल गया है! लाल नेट का टॉप था और पर फिर से छोटी फ्रिल वाली काली स्कर्ट!
“ये तुम गूंगे तो हो नहीं! कल तो बोले थे!” उसने टोका
“अरे नहीं! वो, वो................” रोहित ने गला साफ करते हुए कहा!
“छोडो! वैसे मैं तुम्हें जानती हूँ!” लड़की बोली
“मुझे!” अब रोहित चौंका
“हां! तुम रोहित सक्सेना हो न!” लड़की ने उसके सिर पर चपत लगाते हुए कहा
“हां! मगर तुम?” रोहित को समझ नहीं आ रहा था कि यह कौन है! और एकदम से यहाँ उसकी ज़िन्दगी में कैसे?
“मैं तुम्हारी बहन स्मिता की सहेली की बड़ी बहन हूँ।कल से जब से देखा था तुम्हें तो लग रहा था कि कहाँ देखा, कहाँ देखा तो ध्यान आया कि कभी कभी तुम स्मिता के साथ हमारे घर आया करते थे” वह बोलती जा रही थी।
अब रोहित को ध्यान आया! “हां! तुम निवेदिता न! मगर तुम तो अजीबोगरीब हुआ करती  थीं और अब?”
“अरे, क्या अजीबो गरीब! पहले माँ बाबा के हिसाब से रहती थी, और अब अपने! और अब बड़ी भी तो गयी हूँ” वह हंसी
रोहित को बहुत भला लगा था। चलो इतनी दूर कोई अपना मिल गया
“तो कितने दिन हो यहाँ पर!” निवेदिता ने पूछा था।
“अभी तो हूँ! और तुम?”
“अरे मैं तो यहीं एक रिजोर्ट में नौकरी करती हूँ! होटल मैनेजमेंट के बाद यहाँ नौकरी लग गयी थी!” उसने कहा
नौकरी ने नाम से ही रोहित के मुंह में एक कसैला स्वाद आ गया।
“तुम क्या कर रहे हो?” निवेदिता ने पूछा
“अभी नौकरी की तलाश! इंजीनियरिंग की है! अब देखो कब मिलती है!” उसने हताश स्वर में कहा
“अरे, नौकरी का क्या है, मिल ही जाएगी!” चलो शाम को मिलते हैं!” निवेदिता ने उससे बाय करते हुए कहा। अपना नंबर दिया और चली गयी।
रोहित को आज बहुत अच्छा लग रहा था! उसे लग रहा था न जाने कितने दिनों के बाद आज धुप खिली है! सच! कितनी खूबसूरत होती है एकदम से बादलों से खिलकर आई धूप। वह शाम का इंतजार करने लगा!
गोवा की लहरों को और खूबसूरत बना दिया था निवेदिता ने! वह दो तीन साल से यहाँ थी! यहाँ एक बाजारों से परिचित थी, उसने उसे यहाँ की सबसे बढ़िया फेनी पिलाई! बियर पिलाई! और जमकर डांस किया उसके साथ!  रोहित तो जैसे एक नशे में था! उसे निवेदिता मिल गयी थी! वैसे उसे बचपन से उसे कोई प्यार व्यार नहीं था, मगर उसे लग रहा था कि क्या बुरा है? उसे भी आज नहीं तो कल नौकरी मिल ही जाएगी, वैसे भी दोनों परिवार परिचित ही हैं। निवेदिता के साथ ज़िन्दगी बिताई जा सकती है। निवेदिता की आँखों में वह अपने सवाल का जबाव खोज रहा था!  मगर उसे सवाल का जबाव मिल नहीं पा रहा था। उसके जाने का दिन नज़दीक आ गया था। अगले दिन उसे जाना था! रोहित ने लहरों के साथ बात करते हुए निवेदिता से अपने दिल की बात कह ही दी!
“रोहित! ये क्या कह रहे हो? तुमसे शादी?” निवेदिता ने हाथ झटकते हुए कहा
“क्यों नहीं! देखो, शादी तो करनी ही है! तुम मुझे अच्छी भी लगती हो! मुझे आज नहीं तो कल, नौकरी तो मिल ही जाएगी! और फिर परिवार भी परिचित हैं!” रोहित ने उसे सभी फायदे समझाते हुए कहा
“रोहित, बात इन सबसे बढ़कर है! अभी तुम्हारे सर्वाइवल पर ही सवाल है! ये तुम लड़कों की यही बात बुरी लगती है! जरा सा हंसकर बोल लिया, समय बिता लिया तो सीधे शादी पर चले आते हो! यार तुम पुराने परिचित निकले, तो तुम्हारे साथ जरा हंस बोल लिए, जरा फेनी पी ली, तो तुम तो हमें खूंटे से ही बाँधने के लिए उतारू हो गए!” निवेदिता ने लहरों से दूर जाते हुए कहा
रोहित को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे? वह जानता था कि वह अच्छा खासा कमा रही है, तो क्या उसके बेरोजगारी ही यह कारण है
“अगर मेरे पास नौकरी होती और मेरे घर से रिश्ता गया होता या मैं तब तुम्हें अपनी बड़ी गाड़ी से उतर कर प्रपोज़ करता तो?” उसने निवेदिता का हाथ पकड़ते हुए पूछा
“रोहित, बच्चों सी बातें न करो! ये होता तो, वो होता तो? सवाल अभी तुम्हारे कैरियर बनाने का है, ये शादी और प्यार का नहीं! और अगर मैं कमा ना रही होती तो क्या तुम मुझे प्रपोज़ करते इस समय? कमऑन, इफ यू आर प्रैक्टिकल, आईएम आल्सो प्रैक्टिकल!” निवेदिता ने उसकी आँखों में आँखें डालते हुए पूछा
इस सवाल ने उसे डगमगा दिया! सच है! उसने निवेदिता को उसकी नौकरी के कारण भी तो प्रपोज़ किया था! ओह नहीं!
जैसे ही वह चलने लगी, उसने हाथ पकड़ लिया, "क्या यह तुम्हारा आख़िरी फैसला है?"
उसने कहा "हां, जाने दो, आज के बाद शायद ही मिलें हम"
"क्या रह पाओगी तुम मेरे बिना?" रोहित ने पूछा
"सवाल तुम्हारे और मेरे बिना जिंदा रहने का है ही नहीं, सवाल सर्वाइवल का है, जो तुम्हारे साथ नहीं है" निवेदिता ने साफ और स्पष्ट शब्दों में बिना लाग लपेट के कह दिया।
रोहित टूटने लगा, बेरोजगारी के कारण उसकी देह पर जैसे हर जगह नाकामी की गंध सी बस गयी थी। जो शरीर शायद निवेदिता को मदहोश करने के लिए था वह उसे वह नाकामी का स्तूप और असफलता का पिरामिड लगता था, जो उसके सफल जीवन की बाधा बन गया था। उसके कपड़ों से ही उसे उसकी नाकामी का भूत डराने लगता था। जैसे अमावस थी, वैसे ही उसके जीवन में स्याह अन्धेरा छा रहा था, उसने फिर से साहस जुटाया, पर उससे पहले ही वह बोली
"तुम कैसे चल पाओगे मेरे साथ, इन फटी चप्पलों में, और मेरे हाई हील सैंडल है"
वह बोला
"पूरी ज़िंदगी नहीं सही, पर आज की रात तो हम चल ही सकते हैं, और सुनो रेत पर नंगे पैर ही चल सकते हैं, न फटी चप्पलों में, और न ही हाई हील में"
वह हल्की सी सकपकाई और अपनी हाई हील सैंडल देखे और उसकी फटी चप्पल देखी, अपनी सैंडल उतारे और उसकी नाकामी वाली शर्ट उतार कर बोली
"हां, आज की रात एक साथ चल सकते हैं, इसी रेत पर"
वो उस नाकामी के प्रतीक को हटाकर, चाँद की रोशनी में नहाई अपनी देह को देखकर बोला "हाँ, क्या पता आज की रात ही अंतिम रात हो और मैं इस सुकून के साथ मर सकूं, कि तुम मेरे साथ थी"
लहरें अभी भी अनवरत सागर के तट पर आ रही थी, पर अब उनमें किसी भी नाकामी का बोध नहीं था, वह टूट कर फिर से मिल रही थी अपने सागर में, क्या पता ये वाकई में आख़िरी ही रात हो  ।
निवेदिता के साथ वह रात वाकई खास रही थी! रोहित और निवेदिता किशोर के गाने सुनते हुए रात भर बात करते रहे थे।
निवेदिता ने उससे कोई वादा नहीं किया  था, फिर रोहित कैसे उससे ये सब उम्मीद कर सकता था। मगर यह भी सच है कि वह निवेदिता को भुला नहीं पाया था!
साल भर के और संघर्ष के बाद अंतत: रोहित को नौकरी मिल गयी थी और उसके साथ ही निवेदिता की शादी की खबर चली आई थी!
एक हाथ में अपोइन्टमेंट लेटर और एक हाथ में निवेदिता की शादी का कार्ड! रोहित के लिए बहुत मुश्किल था, खुशी मनाना या गम मनाना! उसने धीरे से निवेदिता की शादी का कार्ड फाड़कर फ़ेंक दिया था! और  उस दिन उसने अपनी नाकामी वाली शर्ट हमेशा के लिए उतार कर फ़ेंक दी थी।
आज दो साल बाद, रोहित के पास वह सब है जो वह निवेदिता को दे सकता था। वह निवेदिता को भुलाना चाहता है, मगर ये कमबख्त बादल उसे निवेदिता को भूलने ही नहीं देते! किशोर के गाने भी उसके दुश्मन बन गए हैं।
बरिस्ता में बैठे बैठे वह कॉफी पी रहा है। उसका मन जब बहुत घबराता है तो वह बरिस्ता में आकर बैठ जाता है, नए और पुराने जोड़ों को देखता है!
माँ का फोन बहुत देर से आ रहा है! क्या करे, फोन उठाए! 
रोहित ने फोन को साइलेंट मोड पर डाल दिया है! ऊपर के फ्लोर पर बार है। वहां जाकर वह जमकर नाचेगा।
सच किशोर का ज़माना नहीं रहा अब! ...........................................
निवेदिता और किशोर दोनों को आज वह विदा देगा...............................
उसने देखा उस रात की लहरें फिर से उसे भिगो रही थीं। मगर रोहित ने आज भीगने से मना कर दिया।


सोनाली मिश्रा
सी-208, जी 1, नितिन अपार्टमेंट्स
शालीमार गार्डन एक्स- II
साहिबाबाद

गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

नया साल

फिर से वह वहीं पर सट आई थी, जहाँ पर उसे सटना नहीं था। फिर से उसने उसी को अपना तकिया बना लिया था, जिसे वह कुछ ही पल पहले दूर फेंक आई थी। उसने...