शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

बारिश का भूत



अमित फिर से डरने लगा था। बरसात के मौसम में फिर से उसे शिवम की बातें याद आने लगी थी। दादी मंदिर तक गईं थी और दादा जी चौपाल तक। बारिश आने से पहले गाँव में बिजली तो जाती ही थी, मगर इस समय तो अपने आप ही बल्ब जलने बुझने लगे थे। पंखा भी अपने आप ही चलने लगा था। आंगन में लगे हुए पेड़ पर बिजली के चमकने के साथ साथ पीले बल्बों की रोशनी भी साफ दिखने लगी थी। और उनसे अजीबोगरीब शक्लें बन रही थीं। अमित अपने कमरे में बैठा हुआ हनुमान चालीसा का पाठ कर रहा था, उसे खुद पर बहुत ही ज्यादा गुस्सा आ रहा था, आखिर उसे क्या जरूरत थी इतना हीरो बनने की? दादी ने कितना कहा था कि उनके साथ मंदिर चले, पर वह ही घर पर रहना चाहता था। उसे शिवम के साथ बातें करनी थीं। शिवम उसी की उम्र का था और वह उससे एक क्लास जूनियर था। तो अमित शिवम पर खूब रुआब गांठता था। वह उसे शहर के किस्से सुनाता और शिवम उसे गांव के। अमित उसे शहर के मॉल की बातें सुनाता और शिवम उसे गाँव, नदी, नहर और सबसे बढ़कर भूत के किस्से!

अमित के लिए दादा दादी के गाँव की दुनिया एकदम नई थी। कहाँ शहर में छोटी सी जगह में इतने सारे लोगों का रहना और यहाँ गाँव में इतनी बड़ी हवेली में कुछ ही लोग! घर में ही खूब दौड़ो भागो! इस बार छुट्टियों में उसके दादा ने जब उसे गाँव ले जाने की जिद्द की थी तो माँ ने भी उसे भेज दिया था। उसके यहाँ छोटी बहन आने वाली थी और माँ के लिए उसे सम्हालना, और उसके पीछे पीछे दौड़ना संभव नहीं था। दादी ने कहा जब तक एक दो महीने में अमित की छोटी बहन नहीं आती, वह उनके साथ गाँव में रह सकता है। अमित को भी गाँव देखना था, वह केवल एक या दो दिनों के लिए गया था, और उसे गाँव की बारिश बहुत अच्छी लगती थी। सब कुछ नया, भरी भरी नदियाँ, नहर, आँधियों से आम का टूटना, अमित अपने पापा से उनके बचपन की बातें सुनता तो उसका मन भी गाँव में खेलने का होने लगता था।
अमित जब शहर में था तब तक वह केवल अपने दो कमरे के फ्लैट में रहता था, स्कूल से आता, अपने दोस्तों के साथ खेलता और कब उसका दिन खत्म हो जाता उसे पता ही नहीं चलता था। स्कूल से आकर वह कार्टून देखता, दस साल का अमित छोटा भीम का बहुत शौक़ीन था। मगर गाँव आकर तो जैसे उसके सामने एक नई दुनिया ही सामने आ गयी। उसकी हवेली में एक किराएदार थे शांतनु चाचा। जो व्यापार तो पास के शहर में करते थे, मगर रहते उसके दादा दादी के साथ थे। शांतनु चाचा के घर दो गाय भैंस थी। वैसे तो वह बोर्नविटा के बिना दूध नहीं पीता था, मगर गाँव में आकर शांतनु चाचा के घर तो वह दो गिलास दूध पी जाता था।
अब उसे इंतज़ार था बारिश का। शिवम उसे बारिशों के किस्से सुनाता। शिवम उसे बताता था कि कैसे बारिश आते ही मोर नाचने लगते थे और कैसे उसकी गाय और उसका बछड़ा आपस में खेलने लगते थे। बारिश में नहरों में पानी बढ़ जाता था और नदी में तो और भी मजा आता। अमित ने अभी तक अपने अपार्टमेन्ट से ही बारिश को देखा था। माँ उसे बहुत ही कम छत पर जाने देती थी। सातवें फ्लोर पर उसका घर ग्यारह फ्लोर वाली बिल्डिंग में एकदम बीच में था। न तो वह बारिश में नीचे जा सकता था और न ही छत पर!
वह बस खिड़की से महसूस करता और सोचता कि कब वह बारिशों में भीगेगा! मगर शिवम उसे इन सबके साथ भूतों के भी किस्से सुनाता था। कि कैसे नदी के किनारे बने किले में बारिश में भूत आते थे, मेंढक की टर्रटर्र के साथ वे भी अपनी आवाज़ निकालते थे।
“दादी क्या बारिश में भूत भी आते हैं?” एक दिन जब दादी उसके बालों में तेल डाल रही थीं, तो उसने डरते डरते पूछ ही लिया था।
“भूत!” उसकी दादी बहुत जोरों से हंसी थीं। हँसते हँसते उन्होंने उसका मुंह अपनी तरफ कर के पूछा “किसने कहा ये सब तुमसे?”
अमित ने थोडा झिझकते हुए कहा “शिवम ने!”
“और वह यह भी कह रहा था कि बारिश में भूत ज्यादा आते हैं, और बच्चों पर अटैक करते हैं!”
“नहीं बेटा, ऐसा कुछ भी नहीं है! ये भूत प्रेत सब झूठ बात है! वैसे भी बारिश आने ही वाली है, तुम खुद ही देख लेना”
दो ही दिनों के बाद मौसम बदलने लगा था और बारिश की आहट सुनाई देने लगी थी। अमित बहुत खुश हो गया और बादलों की तरफ टकटकी लगाकर देखने लगा था। मगर बादल आए, आंधी में उड़ गए। अमित का जी उदास हो गया। दो तीन दिन बाद जब वह सोकर उठा तो उसने आंगन में अन्धेरा देखा, उसने घड़ी देखी, सुबह के आठ बज गए थे, मगर यह क्या अँधेरा? वह आँखें मलते हुए बाहर आया,
“दादी दादी!”
उसने देखा दादी तैयार हो रही हैं
“दादी आप कहीं जा रही हैं?” उसने दादी से लिपटते हुए पूछा,
“दादी बारिश आएगी क्या?”
“मौसम का क्या ठिकाना? मैं मंदिर जा रही हूँ, तुम्हारे बाबा चौपाल! तुम्हें चलना है तो चलो! वैसे हम लोग आधे घंट में आ जाएंगे!”
“नहीं दादी, आप लोग जाइये, मैं तब तक नहा लेता हूँ, जब आप आएंगी तब हम नाश्ता करेंगे!”
“ठीक है!” दादी ने उसके सिर पर लाड़ से हाथ फेरा और चली गईं
थोड़ी ही देर में आसमान और काला हो गया और जमकर बिजली चमकने लगी। अमित नहाकर तुरंत ही बाहर आ गया। बाहर आकर वह आंगन में आ गया! आंगन में रिमझिम बुहारें पड़ने लगी थी जो जल्दी ही मूसलाधार बारिश में बदल गयी! अमित के मन में शिवम की कही हुई बातें घुसने लगीं थीं। उसे एकदम से भूत का डर लगने लगा। आंगन में खड़े हुए उसने बाहर के पेड़ों को देखा, वे तेज हवा में इधर उधर झुकने लगे थे। अमित को लगा कहीं पेड़ पर चढ़कर ही भूत न आ गया हो! तभी एकदम से बिजली के बल्ब एकदम से बंद होने लगे, और जलने लगे, कमरे में पंखा भी अपने आप चलने लगा था। अमित डर के कारण कांपने लगा। वह बार बार हनुमान जी का जाप करने लगा था। बीच बीच में वह आँखें खोलकर देख लेता और फिर से जोर जोर से हनुमान जी का जाप करने लगता!
वह डर से चीखने ही वाला था कि तभी शांतनु चाचा दौड़ते हुए आए,
“अमित आओ तुम्हें गाय दिखाता हूँ! कैसे बारिश में वे लोग खेल रहे है!”
“चाचा देखिये न क्या हो रहा है, कमरे में भूत है!”
“अरे भूत कैसे?”
“देखिये न, बल्ब अपने आप बंद हो रहे हैं, जल रहे हैं! पंखा भी अपने आप ही चल रहा है!”
“अरे बेटा, कुछ और बात होगी, भूत कहीं होते हैं क्या?”  शांतनु चाचा ने उसे गले लगाते हुए समझाया
“नहीं चाचा, भूत ही है, शिवम ने कहा था बारिशों में भूत आते हैं!”
“भूत वूत कुछ नहीं होते हैं! आओ देखो!” वे उसका हाथ पकड़ कर बाहर की तरफ गए, जहां पर बिजली के वायर थे
उन्होंने एमसीवी को डाउन कर दिया, एकदम से अन्धेरा हो गया और सब शांत! एमसीवी में पानी चला गया था और उसके साथ ही एक दो कीड़े मकोड़े भी जाकर चिपक गए थे जिससे ये सब हो रहा था।
देखो, तुम तो पढ़े लिखे हो बेटा, आखिर किस लिए तुमने भूतों की बात पर भरोसा कर लिया!” शांतनु चाचा ने उसे समझाते हुए कहा 
“और इसके चक्कर में तुमने अपनी प्रिय बारिश को भी बदनाम कर दिया, तुम उसका आनंद भी नहीं उठा पाए, अब चलो तुम्हारा इंतजार गर्मागर्म पकौड़े कर रहे हैं!”
अमित भी शर्मिंदा हो गया, वह बारिश में भीगते हुए बोला “पकौड़ों को इंतजार करने दो, अभी मैं भीग रहा हूँ, और मैं बारिश में नहाना चाहता हूँ, अब कोई भूत वूत नहीं! केवल मैं और मेरी बारिश!”
भीगते हुए अमित को समझ में आ रहा था कि दादी सही कहती हैं कि भूत कुछ नहीं होता अब वह मन भर कर बारिश में भीग रहा था!

सोनाली मिश्रा

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