मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018

जौहर, सेक्स स्लेव और आज

शहर पर शहर नष्ट हो रहे हैं, दुश्मन पूरे वेग से शहर पर कब्ज़ा जमाने आ रहा है, शहर के मर्द अपना सब कुछ दांव पर लगाकर आगे बढ़ चुके हैं और पीछे हैं उनकी स्त्रियाँ! उनकी आँखों में आशंकाओं के बादल हैं, उन्हें नहीं पता कि उनके साथ क्या होगा? उन्होंने सुन लिया है, आतताइयों के द्वारा किए जा रहे आतंक के बारे में! वे सिहर उठती हैं, ऐसे में एक लड़की है, वह शोर सुन रही है, वह उन लोगों का शोर सुन रही है और वह बहुत ही मुश्किल से उनके चंगुल से निकल कर आई है, उसकी देह अभी तक यौन गुलामी के दंश झेल रही है! उसका खूबसूरत चेहरा उसकी मुर्दा देह का कारण बन रहा है! यास्मीन उठती है और उन आवाजों के पास आते ही वह खुद पर पेट्रोल डालकर आग लगा लेती है, और बरसों बरस पहले राजपूताना में किया हुआ जौहर धरती के दूसरे हिस्से पर यास्मीन को जलाकर खुश होकर पूछता है “क्या मैं कहीं गया हूँ?” और हतप्रभ सी यास्मीन ईराक की जमीन पर आईएसआईएस के लड़ाकों से बचती हुई खुद को आग की लपटों के हवाले कर देती है, महादेवी वर्मा के शब्द उस आग से निकल रहे हैं “प्रत्येक युद्ध में स्त्री पुरुष की बर्बरता का शिकार हुई है, उसका शरीर और मन रणभूमि की तरह रौंदे गए हैं और वह सामूहिक बलात्कार से लेकर वैश्या तक बनने के लिए मजबूर की जाती रही है!”
जब महादेवी यह कहती हैं कि स्त्री कभी पुरुष के द्रष्टिकोण से युद्ध नहीं देख सकती, तब यह एकदम सत्य ही प्रतीत होता है क्योंकि स्त्री कभी युद्ध चाहेगी ही नहीं! युद्ध में हमेशा ही स्त्री ही दांव पर होती है, पहले युद्धों में राजा महाराजा जैसे ही हारने लगते थे, वैसे ही वे जीतने वाले राजा को अपनी बेटी सौंप देते थे और विजयी राजा उस कन्या पर अपना अधिकार स्थापित कर उस राजा को उसका आधा राज्य वापस कर देता था. किसी भी स्त्री की देह हमेशा ही उस राज्य की भूमि से अधिक नहीं होती थी.  द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आरामदेह औरतों की कहानी भी सभी को ज्ञात ही है, और यह भी कि युद्ध करने जाने से पहले लोग स्त्रियों को कुँए में ढांप कर चले जाते थे.
स्त्री क्योंकि अपने आप में स्वतंत्र सत्ता नहीं है, वह हमेशा युद्ध में इस्तेमाल होने वाली वस्तु रही है. आखिर युद्ध क्यों होते हैं? और उसमें स्त्री की क्या भूमिका? स्त्री की देह को ही आधार बनाकर युद्ध लड़े जाते रहे हैं. हर युद्ध में स्त्री की भूमिका केवल युद्ध के उपरान्त यौन दासी की हो जाती है. स्त्री की देह ही दांव पर होती है, युद्ध उपरान्त स्त्री का बलात्कार केवल स्त्री को ही रौंदना नहीं बल्कि संस्कृति पर प्रहार करना है, पूरी की पूरी सभ्यता को आतंकित करना है.
सभ्यताओं का रुदन और क्रंदन पूरी तरह से स्त्रियों के कन्धों पर ही हैं. युद्ध में स्त्रियाँ तीसरी और चौथी रानी बनती रहीं, पूरे के पूरे राजमहल राजाओं की विलासिता के केंद्र बनते रहे. मगर यौन दासी बनने का चलन और स्त्री के माध्यम से अपनी हर कुंठा को पूरा करने का पूरा केंद्र बनाने का इतिहास इस्लाम के आगमन के उपरान्त ही दिखता है और उसी के बाद स्त्रियों को स्वयं को जलाना और यौन दासियों की कल्पना से ही सिहर जाना, एक हाथ से दूसरे हाथ में जाना, एक बिस्तर से दूसरे बिस्तर में जाना, और उस पर भी उनकी नंगी देहों की नुमायश लगना, यह सब विस्तारवादी संस्कृति के साथ ही आरंभ हुआ, जब स्त्री की देहों के आधार पर भी विस्तार आरम्भ हुआ. तब स्त्रियों ने अपनी अस्मिता को बचाने के लिए खुद को जलाना आरम्भ किया, या यह भावना आई कि देह को उनके हाथों में पड़ने देने से बेहतर है जला देना या आत्महत्या कर देना. विस्तारवाद के इतिहास में स्त्री को सबसे बड़ा हथियार बनाया गया.
इस हथियार बनने के क्रम में स्त्री ने स्वयं को नष्ट करना स्वीकार किया, परन्तु खुद को दुश्मन के हाथ में नहीं पड़ने दिया.
जौहर जैसी प्रथाएं कहीं नहीं जातीं, ये बार बार लौट कर आती हैं. जैसे जैसे काफिर लड़कियों को यौन दासी बनाना मज़हब का अहम् हिस्सा हो, वहां पर यास्मीन जैसी लड़कियों की संख्या में निरंतर ही वृद्धि होगी. यदि हमें और आपको लगता है कि जौहर एक समय के परिप्रेक्ष्य में था, तो वह हमारी सबसे बड़ी भूल है. लड़कियों के लिए देह को नष्ट करना केवल एक मानसिक कंडिशनिंग ही नहीं हैं बल्कि यह वह पीड़ा भी है, जिसका अंदाजा लगाना नामुमकिन है.
किसी भी युद्ध में स्त्री का निर्णय नहीं होता, मगर उसका परिणाम स्त्री को ही भुगतना पड़ता है, फिर वह युग राजपूतों का हों या फिर वर्तमान में यजीदी लड़कियों का भाग्य.
और एक बात, बलात्कार और सेक्स स्लेव बनने में जो बुनियादी फर्क हैं उसे समझना होगा. सेना द्वारा स्त्रियों का एक बार बलात्कार कर छोड़ देना, एक उन्मादी मानसिकता द्वारा जीत के जश्न में देह को विजयी समझकर उस पर अपना अधिकार स्थापित करना और उसे बेचकर देह के बाज़ार में एक उत्पाद बनाकर बेचने में अंतर है. स्त्री की इच्छा के खिलाफ उसे छूना भी एक जघन्य अपराध है और उस पर जब उन्हें एक ऐसे बाज़ार में उत्पाद बनाकर बैठाया जाए जहां पर उनके अंगों को छूकर, नापतौल पर देखा जाए, एक ऐसा बाज़ार जहां पर उन्हें न करने पर जिन्दा जलाया जा सकता है, जैसा आईएसआईएस ने यजीदी और ईसाई लड़कियों के साथ किया. मनमुताबिक सेक्स न करने के कारण उन 19 यजीदी लड़कियों को पिंजरे में जिन्दा जला दिया गया था, तो ऐसे में लडकियां यास्मीन जैसा कदम उठाएंगी? और सबसे दुःख की बात यह है कि पूरी दुनिया भर के स्त्रियों की एकता की बात करने वाली स्त्रियाँ यजीदी लड़कियों पर होते हुए जुल्मों के प्रति खामोश रही हैं.
ऐसा क्यों हुआ? ऐसा क्यों हुआ कि आईएसआईएस के द्वारा बिकती हुई ईसाई और यजीदी लड़कियों की पीड़ा उन्हें छू भी नहीं गयी. ऐसा सिलेक्टिव व्यव्हार स्त्रियों के प्रति? जौहर पर तमाम तरह की बहसें करने वाले लोग आज हो रहे जौहर को भूल रहे हैं.
हकीकत तो यही है कि आज भी जौहर है, जौहर कोई स्त्री की अस्मिता बचाने की लड़ाई न होकर शायद देह के माध्यम से स्त्री की छीछालेदर से बचने का प्रयास रहा होगा. जौहर जैसी प्रथाएं दुनिया के चेहरे पर ऐसा दाग हैं, जिन्हें किसी भी गौरव गाथा से नहीं हटाया जा सकता है. सुदूर खूबसूरत यास्मीन के चेहरे पर आप उस खौफ को देख सकते हैं, उन 19 लड़कियों को जिन्दा जलती हुई चीखों में आप दर्द महसूस कर सकते हैं.

सेक्स स्लेव की तरफदारी करने वालों को ईराक और सीरिया में चल रहे युद्ध को भी एक बार देख लेना चाहिए. शायद बलात्कार और सेक्स स्लेव में अंतर पता चल सके. और यकीन मानिए, बहनापा फालतू के अभियानों से बढ़े या न बढ़े, बहनापा इस बात से जरूर बढ़ेगा कि अपने अपने राजनीतिक विचारधारा से परे हटकर, अपने अपने राजनीतिक आकाओं से परे हटकर आपने विशुद्ध स्त्रियों के लिए कब आवाज़ उठाई? स्त्रियों की अपनी कोई विचारधारा है तो वह है अस्मिता! अस्मिता पर हमें एक साथ होना है. क्या यह हमारी हार नहीं है कि हम स्त्रियों के दर्द और उनकी पीड़ा को भी अपने राजनीतिक आकाओं के नज़रिए से देखने में भरोसा करने लगे हैं? हम एक पक्ष के दर्द को नहीं बोलते, नहीं कहते! हम हिचकते हैं, हर हिचक से परे, आइये स्त्री विमर्श का एक पक्ष बनाते हैं. 

3 टिप्‍पणियां:

  1. फिरका आदमी बनाते हैं बंटती हैं औरतें
    हारने के हर दंश सहती हैं औरतें
    जौहर पर होने वाली हर बहस मुझे असमंजस मे डालती है उसे गौरवान्वित करने वालों का में मन से साथ नही दे पाती परन्तु जौहर न कर पाने की स्थिति में हुआ हश्र सोच कर भी तबियत कांप जाती है।यजीदी महिलाओं पर हुए अत्याचार से
    कितने लोगों की नींद हराम हुई?औरत को ले कर हर युद्ध पुरुष लड़ता है लेकिन इसका ठीकरा भी औरत के ही सर फूटता है..लड़ाई के तीन कारण जर जोरू जमीन ।सच्चाई तो ये है कि सिर्फ एक कारणहै हर युद्ध के पीछे पुरुष की आत्ममुग्धता ,लालच और हवस

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  2. फिरका आदमी बनाते हैं बंटती हैं औरतें
    हारने के हर दंश सहती हैं औरतें
    जौहर पर होने वाली हर बहस मुझे असमंजस मे डालती है उसे गौरवान्वित करने वालों का में मन से साथ नही दे पाती परन्तु जौहर न कर पाने की स्थिति में हुआ हश्र सोच कर भी तबियत कांप जाती है।यजीदी महिलाओं पर हुए अत्याचार से
    कितने लोगों की नींद हराम हुई?औरत को ले कर हर युद्ध पुरुष लड़ता है लेकिन इसका ठीकरा भी औरत के ही सर फूटता है..लड़ाई के तीन कारण जर जोरू जमीन ।सच्चाई तो ये है कि सिर्फ एक कारणहै हर युद्ध के पीछे पुरुष की आत्ममुग्धता ,लालच और हवस

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