शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

लहरें अब बोलती नहीं



ऑफिस से लौटते हुए जैसे ही रोहित ने कार का रेडियो ऑन किया, वैसे ही उसके कान में आवाज़ पड़ी “रेडियो मिर्ची पर आपका स्वागत है। मैं हूँ आपका दोस्त नितिन और आप सुन रहे हैं, किशोर की आवाज़ में प्यारे और शरारत भरे नगमे”।
ओह किशोर!” रोहित ने ठंडी सांस ली और गाड़ी रिवर्स करने लगा। हल्की बूंदाबांदी हो रही थी। नॉएडा और दिल्ली के बीच हल्की ही बारिश में भयंकर जाम जैसी हालत हो जाती है। रोहित ने ऑफिस की खिडकियों से काले बादलों को झांकते हुए देख लिया था। उसका मन इस जाम में फंसने का जरा भी नहीं था। वह घर जल्दी पहुंचना चाहता था। वैसे तो घर पर भी क्या था? वही खाली रसोई, वही खाली सोफे! रंगीन सूनी सूनी दीवारें! जिन पर किसी के हाथों की छाप अभी तक थी।
रोहित ने गहरी सांस ली! एक तो मौसम और उस पर किशोर।इन दोनों के डेडली कोम्बिनेशन से वह बचना चाहता था।  उसकी साँसों को ये सब पसंद नहीं था। वह मौसमी रोमांटिक गानों से बचना चाहता था। गाड़ी चलाते चलाते हुए रोहित “ये शाम मस्तानी सुन रहा था”। यही तो वह गाना था जो उसे मदहोश कर गया था। उसे वाकई मदहोश नहीं होना चाहिए था। उसे नहीं खींचना चाहिए था उन पलों की डोरी को, जो उसके नहीं थे, उसे पत्तों पर ठहरी हुई ओस को नहीं उठाना चाहिए था, नहीं छेड़ना चाहिए था लहरों को! मगर वह कर गया था और जब से ये हुआ था तब से ही उसे किशोर के गाने परेशान कर जाते थे और वह इधर उधर गाड़ी चलाने लगता था। आज इस मौसम में भी वह बहक उठा। वह रुकना चाहता था, मगर वह रुक नहीं सका! वह जाना चाहता था मगर वह जा नहीं पा रहा था।
उसने अपनी गाड़ी घर के पास एक मॉल में पार्क कर दी। बारिश की बूंदों में भीगना उसे अच्छा लग रहा था। रोहित उस दिन के बाद से अक्सर बाहर निकल आता था। उस दिन के बाद उसे भीगना पसंद भी है और भीगने के बाद उसे जैसे खुद से ही दुश्मनी हो जाती थी। वह लड़ता था, झगड़ता था। मगर वह खुद को शांत नहीं करा पाता था। न जाने क्यों उसकी आँखों के सामने समुदंर के किनारे बिताए हुए वे सभी लम्हें आ जाते थे जब निवेदिता उसके साथ थी। निवेदिता की याद आते ही वह चिहुंक उठा। उसका मन हुआ वह चीखे, कि आखिर क्यों आ जाती हो, क्यों? जब मुझे छोड़कर जाने का फैसला केवल और केवल तुम्हारा था, जब तुम मुझे केवल इसीलिए छोड़कर चली गईं थी, कि मैं तुम्हारे मन मुताबिक़ कमा नहीं पा रहा हूँ, तुम्हें बरिस्ता लेकर नहीं जा पा रहा हूँ, तो फिर इस तरह मुझे परेशान करने का फायदा नहीं!
मगर वह लड़ता है खुद से! रोहित बारिश वाले हर लम्हे से लड़ता है और लड़ते लड़ते पहुँच जाता है गोवा की सड़कों पर, जहां पर वह सबसे पहले निवेदिता से टकराया था। उसे बहुत अच्छी तरह याद है कि उस दिन भी बारिश हो रही थी! वह अपने स्मार्ट फोन में किशोर का गाना एक लड़की भीगी भागी सी सुन रहा था। वह किशोर की मखमली आवाज़ में डूबते हुए अपनी मस्ती में भीगते हुए चला जा रहा था कि तभी उसे किसी ने हलके से टक्कर मारते हुए कहा
“ऐ  मिस्टर, सही से चलना नहीं आता क्या सड़क पर? या गोवा में नए आए हो?”
रोहित ने पीछे मुड़कर देखा। लाल स्कूटी पर हल्के पीले रंग के टॉप और काले रंग की स्कर्ट पहने एक लड़की उसकी तरफ इशारा कर रही थी।
“दिखाई नहीं देता क्या? सुनाई भी नहीं?” उसने फिर कहा
“ओह, सॉरी! दरअसल मैं कल ही अपने दोस्तों के साथ गोवा आया हूँ, और यहाँ के मौसम में इस तरह खो गया कि उनसे अलग हो गया! और अब मैं उन्हें खोजता हुआ जा रहा हूँ! सर्च ऑपरेशन!” रोहित ने बहुत ही मासूमियत से झूठ बोलते हुए कहा
“अच्छा, अगर भटक गए हैं तो ये फोन क्या केवल गाने ही सुनने के लिए है, क्या” उस पीले रंग ने हंसी की सरसों बिखेरते हुए उसके फोन की तरफ इशारा करते हुए कहा।
रोहित को लगा जैसे उसकी हंसी उसे एक नया टोनिक सा दे रही है। वह संकोच में उसे बता नहीं पाया कि कुछ बेरोजगार लड़कों की टोली के साथ वह आया है जिसके पास स्मार्ट फोन तो है मगर उसमें अधिक बैलेंस नहीं है! शायद, ये सभी लड़के अपने आप से एक लड़ाई लड़ने और अपने आप में एक नई ऊर्जा लेने के लिए अपनी छोटी मोटी रकम के साथ गोवा आए थे।
बेरहम दिल्ली की सड़कों पर चप्पल और जूते चटकाकर जब सेल्स टार्गेट और परफोर्मेंस बेस्ड नौकरी ये नहीं पा सके थे, तो कुछ समय के लिए ये सभी यहाँ आ गए थे! आखिर ज़िन्दगी में भीगना भी तो जरूरी होता है और वह भी गोवा की रंगीनियाँ! उनके तो कहने ही क्या? दिल्ली में हमेशा माँ बाबा के सपनों का बोझ अपने कन्धों पर लटकाकर चलते ये लड़के जैसे खुद के लिए एक मोहलत लेने के लिए आए थे।
“अरे! फिर खो गए मिस्टर खोयापाया! अगर रास्ता न खोज पाओ तो हम कुछ मदद करें?” उस पीली सरसों ने खिलते हुए कहा। उसे लगा वह पीली ट्यूलिप में बदल गयी है और हर तरफ एक बसंत सा छा गया  है। वैसे उसके नाकनक्श इतने ख़ास नहीं थे, पर उसकी आँखें बहुत बोलती सी थीं, एकदम ज़िन्दगी से भरपूर! जो उसमें गायब हो चुकी थी। दो साल से बेरोजगार रोहित के पास इस समय माँ बाबा के बुढ़ाते सपनों और बहनों की शादी के बोझ के अलावा कुछ नहीं था।
हर शहर में खुले हुए बड़े बड़े कैम्पस वाले इंजीनियरिंग विद्यालयों में उसके जैसे कितने लड़के थे, जिनके घरवाले पांच साल के बाद एक अदद नौकरी के लिए तरस रहे थे। हां घर से पैसा भेज रहे थे, मगर हर बार यही पूछते, “और कहीं कुछ हुआ?”
रोहित ने अब घबराकर फोन ही उठाना बंद कर दिया था। जैसे ही फोन उठाओ, उधर से माँ के खांसने की आवाज़ सुनकर वह फोन रख देता था! उधर उसकी बहन भी शादी के लायक थी। माँ बाबा ने अपनी अधिकतर पूंजी उसकी बड़े कॉलेज की पढाई  पर लुटा दी थी और इस समय उनके पास इतना नहीं बचा था कि एक इंजीनियर की बहन को ब्याह सकें!
बहन अभी पढ़ रही थी, और उसके भी अपने इंजीनियर भाई की नौकरी को लेकर बड़े सपने थे! मगर वह उन लोगों को किस तरह से समझाए कि ये लोग केवल प्रोडक्ट हैं केवल प्रोडक्ट! वैसे तो बहुत अच्छी नौकरी इतनी जल्दी इन लोगों को मिलती नहीं थी और उस पर आजकल कई प्रोफाइल पर केवल और केवल लड़कियों का कब्ज़ा हो रहा था। झक मारकर रोहित ने अपने मकान मालिक के बच्चों को ट्यूशन पढ़ानी शुरू कर दी थी और उनकी देखादेखी कई और बच्चे भी ट्यूशन पढने आने लगे थे। रोहित के पास इतना पैसा आ जाता था कि वह दिल्ली जैसे महानगर में नौकरी खोजने के लिए नए और ब्रांडेड कपड़े खरीद सके! वैसे भी वह एक प्रोडक्ट था और उसे सेलेबल प्रोडक्ट बनना ही था।
प्रोडक्ट, सेलेबल प्रोडक्ट आदि की परिभाषा से जब वह उकता गया तो अपने जैसे अपने कुछ दोस्तों के साथ वे लोग यहाँ आ गए थे! गोवा! गोवा की लहरों में भीगने! क्या पता जब यहाँ से फ्रेश होकर जाएं, तो नौकरी भी नई ताजगी के साथ खोजें?
अपने विचारों से उबर कर रोहित ने जब इधर उधर देखा तो वह पीला ट्यूलिप गायब हो चुका था! और उसके साथ ही उसकी सहेलियां भी चली गईं थीं! उसने इधर उधर देखा, मगर वह दिखाई नहीं दी! बूंदाबांदी बढ़ने लगी थी! रोहित को आज भीगना बहुत सुहाया! बचपन में बारिश में भीगते हुए न जाने कितनी बार ही स्कूल जाता था। मगर आज की बारिश अलग थी! आज वाकई अलग थी!
वह जल्द ही अपने दोस्तों की टोली में जा मिला।
“अरे! बड़ा खिला खिला लग रहा है अपना हीरो!” ये अमित था!
लड़के बियर और स्थानीय ड्रिंक लेकर मस्ती कर रहे थे!
“बस ऐसे ही! मौसम में भीगता हुआ न जाने किधर चला गया था! और तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो? समुन्दर में नहीं गए!” रोहित ने अपनी टीशर्ट को हिलाकर सुखाते हुए सवाल किया
“न! बारिश के कारण हम अन्दर ही हैं!” अमित ने कहा
“चलो न बाहर! लहरों से बातें करते हैं!” रोहित ने अपनी टीशर्ट उतारी और चला गया लहरों के साथ खेलने! उसे तो पानी इतना पसंद था, क्या पता पीला ट्यूलिप फिर टकरा जाए!
मगर वह नहीं आई!
अगले दिन सुबह जल्दी ही उठ गया था रोहित! वैसे भी वह जल्दी उठ जाता था! ट्यूशन पढ़ाने से लेकर घर के सारे काम जो थे! सुबह सुबह गोवा की भीगी सुबह में वह भीगने के लिए फिर से निकल गया था!
वहीं एक स्थानीय दुकान पर चाय पीते हुए अख़बार देख रहा था
“तुम?मिस्टर खोयापाया?” एक आवाज़ आई
रोहित ने अपना चेहरा उठाया! ओह! ये तो पीला ट्यूलिप लाल में बदल गया है! लाल नेट का टॉप था और पर फिर से छोटी फ्रिल वाली काली स्कर्ट!
“ये तुम गूंगे तो हो नहीं! कल तो बोले थे!” उसने टोका
“अरे नहीं! वो, वो................” रोहित ने गला साफ करते हुए कहा!
“छोडो! वैसे मैं तुम्हें जानती हूँ!” लड़की बोली
“मुझे!” अब रोहित चौंका
“हां! तुम रोहित सक्सेना हो न!” लड़की ने उसके सिर पर चपत लगाते हुए कहा
“हां! मगर तुम?” रोहित को समझ नहीं आ रहा था कि यह कौन है! और एकदम से यहाँ उसकी ज़िन्दगी में कैसे?
“मैं तुम्हारी बहन स्मिता की सहेली की बड़ी बहन हूँ।कल से जब से देखा था तुम्हें तो लग रहा था कि कहाँ देखा, कहाँ देखा तो ध्यान आया कि कभी कभी तुम स्मिता के साथ हमारे घर आया करते थे” वह बोलती जा रही थी।
अब रोहित को ध्यान आया! “हां! तुम निवेदिता न! मगर तुम तो अजीबोगरीब हुआ करती  थीं और अब?”
“अरे, क्या अजीबो गरीब! पहले माँ बाबा के हिसाब से रहती थी, और अब अपने! और अब बड़ी भी तो गयी हूँ” वह हंसी
रोहित को बहुत भला लगा था। चलो इतनी दूर कोई अपना मिल गया
“तो कितने दिन हो यहाँ पर!” निवेदिता ने पूछा था।
“अभी तो हूँ! और तुम?”
“अरे मैं तो यहीं एक रिजोर्ट में नौकरी करती हूँ! होटल मैनेजमेंट के बाद यहाँ नौकरी लग गयी थी!” उसने कहा
नौकरी ने नाम से ही रोहित के मुंह में एक कसैला स्वाद आ गया।
“तुम क्या कर रहे हो?” निवेदिता ने पूछा
“अभी नौकरी की तलाश! इंजीनियरिंग की है! अब देखो कब मिलती है!” उसने हताश स्वर में कहा
“अरे, नौकरी का क्या है, मिल ही जाएगी!” चलो शाम को मिलते हैं!” निवेदिता ने उससे बाय करते हुए कहा। अपना नंबर दिया और चली गयी।
रोहित को आज बहुत अच्छा लग रहा था! उसे लग रहा था न जाने कितने दिनों के बाद आज धुप खिली है! सच! कितनी खूबसूरत होती है एकदम से बादलों से खिलकर आई धूप। वह शाम का इंतजार करने लगा!
गोवा की लहरों को और खूबसूरत बना दिया था निवेदिता ने! वह दो तीन साल से यहाँ थी! यहाँ एक बाजारों से परिचित थी, उसने उसे यहाँ की सबसे बढ़िया फेनी पिलाई! बियर पिलाई! और जमकर डांस किया उसके साथ!  रोहित तो जैसे एक नशे में था! उसे निवेदिता मिल गयी थी! वैसे उसे बचपन से उसे कोई प्यार व्यार नहीं था, मगर उसे लग रहा था कि क्या बुरा है? उसे भी आज नहीं तो कल नौकरी मिल ही जाएगी, वैसे भी दोनों परिवार परिचित ही हैं। निवेदिता के साथ ज़िन्दगी बिताई जा सकती है। निवेदिता की आँखों में वह अपने सवाल का जबाव खोज रहा था!  मगर उसे सवाल का जबाव मिल नहीं पा रहा था। उसके जाने का दिन नज़दीक आ गया था। अगले दिन उसे जाना था! रोहित ने लहरों के साथ बात करते हुए निवेदिता से अपने दिल की बात कह ही दी!
“रोहित! ये क्या कह रहे हो? तुमसे शादी?” निवेदिता ने हाथ झटकते हुए कहा
“क्यों नहीं! देखो, शादी तो करनी ही है! तुम मुझे अच्छी भी लगती हो! मुझे आज नहीं तो कल, नौकरी तो मिल ही जाएगी! और फिर परिवार भी परिचित हैं!” रोहित ने उसे सभी फायदे समझाते हुए कहा
“रोहित, बात इन सबसे बढ़कर है! अभी तुम्हारे सर्वाइवल पर ही सवाल है! ये तुम लड़कों की यही बात बुरी लगती है! जरा सा हंसकर बोल लिया, समय बिता लिया तो सीधे शादी पर चले आते हो! यार तुम पुराने परिचित निकले, तो तुम्हारे साथ जरा हंस बोल लिए, जरा फेनी पी ली, तो तुम तो हमें खूंटे से ही बाँधने के लिए उतारू हो गए!” निवेदिता ने लहरों से दूर जाते हुए कहा
रोहित को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे? वह जानता था कि वह अच्छा खासा कमा रही है, तो क्या उसके बेरोजगारी ही यह कारण है
“अगर मेरे पास नौकरी होती और मेरे घर से रिश्ता गया होता या मैं तब तुम्हें अपनी बड़ी गाड़ी से उतर कर प्रपोज़ करता तो?” उसने निवेदिता का हाथ पकड़ते हुए पूछा
“रोहित, बच्चों सी बातें न करो! ये होता तो, वो होता तो? सवाल अभी तुम्हारे कैरियर बनाने का है, ये शादी और प्यार का नहीं! और अगर मैं कमा ना रही होती तो क्या तुम मुझे प्रपोज़ करते इस समय? कमऑन, इफ यू आर प्रैक्टिकल, आईएम आल्सो प्रैक्टिकल!” निवेदिता ने उसकी आँखों में आँखें डालते हुए पूछा
इस सवाल ने उसे डगमगा दिया! सच है! उसने निवेदिता को उसकी नौकरी के कारण भी तो प्रपोज़ किया था! ओह नहीं!
जैसे ही वह चलने लगी, उसने हाथ पकड़ लिया, "क्या यह तुम्हारा आख़िरी फैसला है?"
उसने कहा "हां, जाने दो, आज के बाद शायद ही मिलें हम"
"क्या रह पाओगी तुम मेरे बिना?" रोहित ने पूछा
"सवाल तुम्हारे और मेरे बिना जिंदा रहने का है ही नहीं, सवाल सर्वाइवल का है, जो तुम्हारे साथ नहीं है" निवेदिता ने साफ और स्पष्ट शब्दों में बिना लाग लपेट के कह दिया।
रोहित टूटने लगा, बेरोजगारी के कारण उसकी देह पर जैसे हर जगह नाकामी की गंध सी बस गयी थी। जो शरीर शायद निवेदिता को मदहोश करने के लिए था वह उसे वह नाकामी का स्तूप और असफलता का पिरामिड लगता था, जो उसके सफल जीवन की बाधा बन गया था। उसके कपड़ों से ही उसे उसकी नाकामी का भूत डराने लगता था। जैसे अमावस थी, वैसे ही उसके जीवन में स्याह अन्धेरा छा रहा था, उसने फिर से साहस जुटाया, पर उससे पहले ही वह बोली
"तुम कैसे चल पाओगे मेरे साथ, इन फटी चप्पलों में, और मेरे हाई हील सैंडल है"
वह बोला
"पूरी ज़िंदगी नहीं सही, पर आज की रात तो हम चल ही सकते हैं, और सुनो रेत पर नंगे पैर ही चल सकते हैं, न फटी चप्पलों में, और न ही हाई हील में"
वह हल्की सी सकपकाई और अपनी हाई हील सैंडल देखे और उसकी फटी चप्पल देखी, अपनी सैंडल उतारे और उसकी नाकामी वाली शर्ट उतार कर बोली
"हां, आज की रात एक साथ चल सकते हैं, इसी रेत पर"
वो उस नाकामी के प्रतीक को हटाकर, चाँद की रोशनी में नहाई अपनी देह को देखकर बोला "हाँ, क्या पता आज की रात ही अंतिम रात हो और मैं इस सुकून के साथ मर सकूं, कि तुम मेरे साथ थी"
लहरें अभी भी अनवरत सागर के तट पर आ रही थी, पर अब उनमें किसी भी नाकामी का बोध नहीं था, वह टूट कर फिर से मिल रही थी अपने सागर में, क्या पता ये वाकई में आख़िरी ही रात हो  ।
निवेदिता के साथ वह रात वाकई खास रही थी! रोहित और निवेदिता किशोर के गाने सुनते हुए रात भर बात करते रहे थे।
निवेदिता ने उससे कोई वादा नहीं किया  था, फिर रोहित कैसे उससे ये सब उम्मीद कर सकता था। मगर यह भी सच है कि वह निवेदिता को भुला नहीं पाया था!
साल भर के और संघर्ष के बाद अंतत: रोहित को नौकरी मिल गयी थी और उसके साथ ही निवेदिता की शादी की खबर चली आई थी!
एक हाथ में अपोइन्टमेंट लेटर और एक हाथ में निवेदिता की शादी का कार्ड! रोहित के लिए बहुत मुश्किल था, खुशी मनाना या गम मनाना! उसने धीरे से निवेदिता की शादी का कार्ड फाड़कर फ़ेंक दिया था! और  उस दिन उसने अपनी नाकामी वाली शर्ट हमेशा के लिए उतार कर फ़ेंक दी थी।
आज दो साल बाद, रोहित के पास वह सब है जो वह निवेदिता को दे सकता था। वह निवेदिता को भुलाना चाहता है, मगर ये कमबख्त बादल उसे निवेदिता को भूलने ही नहीं देते! किशोर के गाने भी उसके दुश्मन बन गए हैं।
बरिस्ता में बैठे बैठे वह कॉफी पी रहा है। उसका मन जब बहुत घबराता है तो वह बरिस्ता में आकर बैठ जाता है, नए और पुराने जोड़ों को देखता है!
माँ का फोन बहुत देर से आ रहा है! क्या करे, फोन उठाए! 
रोहित ने फोन को साइलेंट मोड पर डाल दिया है! ऊपर के फ्लोर पर बार है। वहां जाकर वह जमकर नाचेगा।
सच किशोर का ज़माना नहीं रहा अब! ...........................................
निवेदिता और किशोर दोनों को आज वह विदा देगा...............................
उसने देखा उस रात की लहरें फिर से उसे भिगो रही थीं। मगर रोहित ने आज भीगने से मना कर दिया।


सोनाली मिश्रा
सी-208, जी 1, नितिन अपार्टमेंट्स
शालीमार गार्डन एक्स- II
साहिबाबाद

गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश 

रविवार, 20 नवंबर 2016

मोदी सरकार के दो बरस और महिलाएं



नरेंद्र मोदी सरकार को आए दो बरस हो गए हैं और इन दो बरसों में आंकड़ों में कई बाजीगरी भी हो चुकी है. नरेंद्र मोदी सरकार में कुछ मंत्रालय हैं, जो बिना रुके और बिना मीडिया की नज़र में आए काम कर रहे हैं. इनमें से एक मंत्रालय महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय है, जिसमें तमाम क़दमों के साथ साथ राष्ट्रीय महिला नीति का भी मसौदा तैयार किया है. केंद्र में भाजपा सरकार के आने के बाद मंत्रालय की तरफ से कई नए कदम उठाए गए हैं. महिलाएं अब न केवल आधी आबादी हैं बल्कि वे महत्वपूर्ण वोटबैंक भी बन गयी हैं. केंद्र में भाजपा की सरकार आने से पहले महिलाओं को मोदी जी से काफी उम्मीदें थीं और उन्होंने उन उम्मीदों को पूरा करने के लिए मोदी सरकार के बनने में बहुत योगदान दिया और झोला भर कर वोट दिया. महिलाओं के मुद्दों को जो भी दल अपने घोषणापत्र में प्रमुखता से स्थान देगा, महिलाएं उसे झोली भर कर वोट देंगी. यह बात 2014 के चुनावों के बाद काफी हद तक हर विधानसभा चुनावों में देखी गयी है. दिल्ली में महिलाओं ने महिला सुरक्षा के नाम पर महिला कमांडों की नियुक्ति के लिए वोट दिया, तो बिहार में नितीश पर भरोसा जताया.
स्पष्ट है कि कोई भी दल अब महिलाओं की नाराजगी मोल नहीं ले सकता है.
मोदी सरकार ने पिछ्के दो वर्षों में महिलाओं को अपनी मुट्ठी में करने के लिए कई कदम उठाए है, जैसे:
*      पैनिक बटन ऑन मोबाइल फोन.
*      बेटी बचाओ, बेटी पढाओ
*      महिला – ई हाट
*      महिला हेल्पलाइन को एक साथ लाना
*      पंचायतों में महिला सरपंचों को प्रशिक्षण प्रदान करना
*      कार्यस्थल पर महिलाओं के शारीरिक उत्पीडन को रोकने के लिए अधिनियम
*      पुलिस बल में महिलाओं के लिए 33% का आरक्षण
*      100 वीमेन एचीवर्स कंटेस्ट
*      राष्ट्रीय महिला कोष
*      शादी वाली वेबसाईट को नियमों में बाँधना
*      राष्ट्रीय महिला नीति
इन उप्लाब्धियों के अतिरिक्त भी सरकार ने कई कदम उठाए हैं और योजनाएं शुरू की है जैसे, हाल ही में शुरू की गयी उज्ज्वला योजना. जिसमें सरकार की तरफ से गरीब महिलाओं को गैस के निशुल्क कनेक्शन दिए जा रहे हैं. इस योजना के अंतर्गत गरीबी रेखा के नीचे आने वाले करीब पांच करोड़ परिवारों को एलपीजी के निशुल्क कनेक्शन दिए जाएंगे. इस योजना को पेट्रोलियम और गैस मंत्रालय के द्वारा लागू किया गया है, जिसमें मुख्य लक्ष्य महिलाओं को सुविधा प्रदान करना है क्योंकि उन्हीं का समय सबसे अधिक रसोई में व्यतीत होता है.
इसके अतिरिक्त अगर और नजर घुमाएँ तो मुद्रा योजना ने महिलाओं को अपना रोज़गार शुरू करने में काफी मदद की है. मुद्रा योजना से सिलाई इकाइयों, ब्यूटी पार्लर, डेयरी फार्मिंग, हैंडलूम जैसे असंगठित क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी में इजाफा देखा गया है।

इसके साथ ही सरकार ने पंचायतों में भी महिलाओं के लिए 50% आरक्षण की व्यवस्था है.

वैश्वीकरण के इस युग में न केवल भारत बल्कि दुनिया के हर कोने में स्त्रियां घर से बाहर निकल कर अपनी पहचान बना रही हैं. हालांकि महिलाओं को पुरुषों के समान ही अवसर मिल रहे हैं, पर फिर भी भारत में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर महिलाओं को अभी भी काफी उपेक्षा का सामना करना होता है. कई बार अकेली महिलाओं को समाज में रहने के लिए काफी संघर्ष का सामना करना होता है फिर चाहे वह घर किराए पर लेना हो, या अपने बच्चों के लिए सही स्कूल खोजना हो. 

अब बात की जाए महिलाओं के लिए महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय के द्वारा उठाए गए क़दमों की तो अभी हाल ही में महिलाओं के लिए नई राष्ट्रीय नीति का मसौदा प्रस्तुत किया है. इस नीति के बारे में बोलते हुए केन्द्रीय मंत्री श्रीमती मेनका गांधी ने स्पष्ट किया कि इस नीति में खास तौर पर अकेली, तलाकशुदा, विधवा महिलाओं को ध्यान में रखा गया है, और कार्यालय जाने वाली महिलाओं के साथ साथ घर से काम करने वाली महिलाओं को ध्यान में रखा गया है.”

इस नीति के कई बिन्दुओं में से कुछ को अगर देखें तो इसके आरम्भ में ही उद्देश्य स्पष्ट कर दिया गया है कि इस नीति का उद्देश्य है एक ऐसे सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक माहौल का निर्माण करना जिससे महिलाएं अपने मूलभूत संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग कर सकें और अपनी क्षमताओं को पहचान सकें. महिलाओं के लिए शिक्षा के बेहतर अवसर उपलब्ध हो सकें. लिंगानुपात में अंतर को कम करना.

इसमें प्राथमिक क्षेत्रों में स्वास्थ्य को रखा गया है, जिसमें भोजन की सुरक्षा एवं पोषण को उपलब्ध कराने की महत्ता पर जोर दिया है.

इस नीति में महिलाओं को उन क्षेत्रों में भी क़दमों को मजबूत करने की वकालत की गयी है जहां पर अभी तक महिलाओं के योगदान को नकारा है. ऐसे ही क्षेत्र में हम कृषि को ले सकते हैं. हम सब जानते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी केवल कृषि है तो वहीं कृषि में महिलाओं के श्रमदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता है. कृषि एक ऐसा क्षेत्र है जहां पर महिलाएं कमरतोड़ मेहनत करती हैं और उन्हें उनके श्रम का उपयुक्त मोल नहीं मिलता है. और यह भी देखा गया है कि महिलाएं अप्रशिक्षित होकर कार्य करती हैं, जबकि अगर उन्हें प्रशिक्षण दिया जाए तो वे कई कामों को और कुशलतापूर्वक कर सकती हैं. कृषि क्षेत्र में उतरोत्तर विकास के लिए बहुत जरूरी है कि वहां पर भी लैंगिक समानताएं को लाया जाए. अभी तक संसाधनों पर महिलाओं के अधिकारों को नहीं माना जाता था. इस नीति में ध्यान रखा गया है कि महिलाओं को न केवल संसाधनों पर हक़ मिले वहीं उन्हें सामाजिक सुरक्षा भी मिले.
कृषि क्षेत्र में महिलाओं के लिए तमाम तरह के प्रशिक्षण पर भी ध्यान दिया गया है. और प्रशिक्षण को इस योजना का हिस्सा बनाया गया है. कृषि क्षेत्र में महिलाओं को कई क्षेत्रों में प्रशिक्षण प्रदान करने की योजना है जैसे मृदा संरक्षण, डेयरी विकास, बागबानी, जैविक खेती, पशुपालन, मत्स्य आदि.
महिलाओं को अचल संपत्ति पर अधिकार के बारे में भी बात की गयी है.
इस नीति में किराए की कोख की विकराल होती समस्या पर भी ध्यान दिया गया है. यहाँ यह कहा जा सकता है कि भारत में यह कारोबार बहुत ही तेजी से फैल रहा है. आज यह एक सुनियोजित तरीके से काम करने वाला क्षेत्र हो गया है पर इसमें महिलाओं की स्थिति उतनी अच्छी नहीं है.
इस बारे में महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती मेनका गांधी का कहना है कि “सरोगेसी को लेकर एक क़ानून आएगा. जैसे ही हम इस नीति को अंतिम रूप प्रदान करेंगे और नई चीज़ों को जोड़ेंगे, वे उस नए सरोगेसी अधिनियम का हिस्सा बन जाएँगी.”
इस नीति में हर क्षेत्र की महिलाओं पर ध्यान दिया गया है और उनके अधिकारों के बारे में बात की गयी है जैसे सर्विस सेक्टर, विज्ञान और तकनीक, महिलाओं के खिलाफ हिंसा आदि.
इस नीति में महिलाओं से जुड़े हुए कई आंकड़ों पर गंभीरता से कदम उठाने की भी बात की गयी है.
इस नीति के बारे में श्रीमती मेनका गांधी का यह भी कहना है कि “इसमें महिला उद्यमियों के लिए एक महिला उद्यमी सेल का गठन भी किया जाएगा क्योंकि उद्यम क्षेत्र में अभी पुरुषों का अधिकार है”

हालांकि हाल के कुछ वर्षों में महिलाओं के लिए बनाए गए कानूनों के दुरुपयोग भी संज्ञान में आए हैं, जिनमें दहेज़ उत्पीडन एवं घरेलू हिंसा अधिनियम के दुरूपयोग पर माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी अपनी चिंता प्रदर्शित की थी एवं सुधार की बात कही गयी थी.

अगर मोदी सरकार के द्वारा उठाए गए क़दमों और इस राष्ट्रीय महिला नीति की बात करें तो कहा जा सकता है कि सरकारी स्तर पर महिलाओं के लिए तमाम कदम उठाए गए हैं.

उम्मीद की जा सकती है कि सफल क्रियान्वयन के लिए विख्यात सरकार अपने स्तर पर महिलाओं के तमाम मुद्दों पर खुलकर कार्य करेगी.


सोनाली मिश्रा
सी-208, जी 1
नितिन अपार्टमेन्ट
शालीमार गार्डन एक्स- II,
साहिबाबाद
गाज़ियाबाद




गर्भधारण और गर्भपात: स्त्री के अधिकार

गर्भधारण और गर्भपात: स्त्री के अधिकार

मातृत्व स्त्री का नैसर्गिक मानवाधिकार है और स्त्री का यह अधिकार सुरक्षित रहना ही चाहिए। स्त्री के पास यह अधिकार होना चाहिए कि वह कब गर्भधारण करना चाहती है। अधिकतर देशों में विवाह का मुख्य उद्देश्य वंश चलाना अर्थात संतानोत्पत्ति ही है।  यह भी एक विडंबना और विरोधाभास ही है कि जहां स्त्री के द्वारा जन्मदिए गए शिशु की प्रतीक्षा परिवार के साथ साथ समाज को भी होती है, वहीं स्त्री के स्वास्थ्य को एकदम से अनदेखा कर दिया जाता है। दुनिया भर के देशों में गर्भपात को लेकर तमाम तरह के क़ानून बने हुए हैं, जिनमें गर्भापात की स्थिति को स्पष्ट किया गया है। कुछ वर्ष पूर्व आयरलैंड में भारतीय मूल की सविता की असामान्य स्थितियों में मृत्यु ने पूरे विश्व में इस बहस को जीवित कर दिया था कि आखिर गर्भपात के लिए क्या समय सीमा होनी चाहिए और क्या क़ानून होने चाहिए। सविता की दुखद मृत्यु ने ही कैथोलिक आयरलैंड को आननफानन में एक ऐसा क़ानून बनाने के लिए बाध्य किया जिसमें विशेष परिस्थितियों में गर्भपात की अनुमति दे दी गयी।

ऐसे ही जीका वायरस की विभीषिका से जूझ रहे अमेरिकी देश ब्राजील में कैथोलिक चर्चों ने गर्भपात की अनुमति नहीं दी है और वहां पर गर्भपात के विरोध में एक विधेयक को भी पारित कर दिया गया है। वहीं कुछ लैटिन अमेरिकी देशों में महिलाओं से आग्रह किया जा रहा है कि वे गर्भधारण से परहेज करें। जीका वायरस से कई रूढ़िवादी कैथोलिक देश प्रभावित हो रहे हैं जहां गर्भपात को लेकर बहुत ही कठोर क़ानून है। यदि ऐसे में वे गर्भवती हो जाती हैं तो वे गर्भपात नहीं करा पाएंगी। जीका से प्रभावित कई देशों में गर्भनिरोधकों के प्रयोग की भी अनुमति नहीं है। ऐसे में स्त्रियों के समक्ष क्या विकल्प हैं या हो सकते हैं?

गर्भधारण की बात हो या गर्भपात का मुद्दा, अगर देखा जाए तो दुनिया के अधिकतर देशों का पलड़ा स्त्रियों के प्रति अन्यायपूर्ण ही दिखाई देता है। भारत की अगर बात करें तो एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर सात मिनट में कोई न कोई गर्भवती स्त्री प्रसव संबंधी कारणों से मृत्यु का शिकार बनती हैं। कुछ वर्ष पहले छत्तीसगढ़ में हुआ नसबंदी काण्ड कौन भूल सकता है जब कई स्त्रियों को चिकित्सीय लापरवाही के चलते अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। परिवार नियोजन के भी सभी प्रयोग केवल स्त्री के शरीर पर ही होते हैं, आखिर इस आनन्द में सहभागी रहे उसके साथी किसी भी उपाय का प्रयोग करने में क्यों हिचकिचाते हैं?

गर्भपात, एक ऐसा मामला है जो देश के कानूनों से अधिक धर्म से संचालित होता है। इस मुद्दे पर बात करते ही तमाम धर्म के ठेकेदार अपने अपने तर्कों के साथ यह स्थापित करने में लग जाते हैं कि गर्भपात से बढ़कर दुनिया में कोई पाप नहीं है। मनुस्मृति के अनुसार यदि अन्न पर गर्भपात करने वाले की द्रष्टि भी पड़ जाए तो वह अन्न अभक्ष्य हो जाता है, (मनुस्मृतिः 4.208)। ईसाई धर्म में तो गर्भपात को महापाप माना गया है और यह कैथोलिक देशों में देखा जा रहा है। इस्लाम में भी गर्भपात को हराम माना गया है।

गर्भपात का यह विषय देखने में जितना छोटा है, हकीकत में उसकी समस्या इससे कहीं विकराल है। असुरक्षित गर्भपात के चलते दुनिया भर में आज कितनी स्त्रियाँ अपना जीवन गंवा रही हैं, इसके आंकड़े शायद बहुत ही भयावह और विचलित कर देने वाले हैं। भारत में हालांकि गर्भपात का क़ानून कई देशों की तुलना में काफी संवेदनशील है और उसमें बलात्कार के परिणामस्वरूप गर्भधारण की स्थिति में गर्भपात की अनुमति है। भारत में भी कुछ वर्ष पूर्व निकिता मेहता का मामला सुर्ख़ियों में आया था जब भ्रूण में ह्रदय संबंधित विकार के कारण गर्भपात की अनुमति न्यायालय से माँगी थी, क्योंकि भ्रूण की आयु गर्भपात की अनुमत समयसीमा से अधिक हो गयी थी। हालांकि उस वक्त निकिता की यह अर्जी न्यायालय ने ठुकरा दी थी।

गर्भपात का मुद्दा न केवल स्वास्थ्य, क़ानून, धर्म के साथ जुड़ा हुआ है बल्कि यह स्त्री के अधिकारों के साथ भी जुड़ा हुआ है। भारत में 1971 से ही गर्भ का चिकित्सीय समापन (एमटीपी) क़ानून लागू है, जो गर्भपात को वैधानिक अधिकार देता है। पर यह स्त्रियों के लिए किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य चिंताओं के कारण नहीं बल्कि केवल और केवल जनसंख्या नियंत्रण की एक विधि के रूप में लाया गया था। यदि इस क़ानून का अध्ययन किया जाए तो यह निकल कर आएगा कि गर्भवती स्त्री यह नहीं कह सकती कि यह एक अवांछित गर्भावस्था है। स्त्रियों को तमाम तरह के स्पष्टीकरण देने होते हैं।  और गर्भपात पूरी तरह चिकित्सीय सलाह पर निर्भर करता है।

हालांकि गर्भपात के विरोधी इस बारे में काफी तर्क देते हैं कि अगर बच्चा नहीं चाहिए तो पहले से प्रयास करने चाहिए, जिससे गर्भ ठहर ही न पाए। यह सही है कि गर्भाधान को एक सुनियोजित तरीके से किया जाना चाहिए ताकि गर्भपात के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर से बचा जा सके। पर अगर पूरी दुनिया में एक नजर दौडाएं तो पाएंगे कि परिवार में बच्चे के जन्म के लिए कई कारक उत्तरदायी होते हैं, जिनमें गर्भनिरोधक साधनों की खराब गुणवत्ता और असफलता से लेकर यौन हिंसा तक कई कारण हैं।  भारत में गर्भपात की समय सीमा अभी 20 सप्ताह है और इसे बढाने को लेकर विधेयक संसद में पिछले दो वर्षों से लंबित है जिस पर तमाम बहसें हो रही हैं।

कहा जा रहा था कि एमटीपी अधिनियम के लागू होने के बाद असुरक्षित गर्भपात की संख्या में कमी आएगी किंतु यह भी एक विरोधाभास ही है कि एमटीपी अधिनियम के लागू होने के बावजूद, असुरक्षित गर्भपात की संख्या में वृद्धि जारी है और हर साल लगभग 20,000 महिलाओं की गर्भपात संबंधी जटिलताओं के कारण मृत्यु हो जाती है, जिनमें से अधिकांश अयोग्य कर्मियों द्वारा, अवैध रूप से किए जाने से होती हैं।

गर्भपात के साथ एक और मुद्दा जुड़ा हुआ है वह है मादा भ्रूण हत्या का। एमटीपी के माध्यम से लड़कियों को गर्भ में ही मारना बहुत ही आसान हो गया था। पर 1994 में गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम भारत में प्रभाव में आया। इस अधिनियम के प्रभाव में आने के बाद हालांकि मातापिता को यह जानकारी देना अपराध हो गया है कि गर्भ में जो भ्रूण है उसका लिंग क्या है, किंतु अभी भी लिंग का चयनात्मक गर्भपात जारी है। बीबीसी की एक पुरानी रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2006 तक भारत में प्रतिवर्ष ऐसे पांच लाख भ्रूण मार दिए गए थे जो लड़कियों के थे। उत्तर भारत में विशेषकर पंजाब और हरियाणा में लिंगानुपात सबसे कम है। स्पष्ट है कि तकनीक के ऐसे ही दुरूपयोग है जो गर्भपात के अधिकार को कम करने में सबसे बड़ा कारक हैं।

लिंग निर्धारण परीक्षण की निगरानी तो ठीक है पर गर्भपात की निगरानी एक एकदम ही भिन्न मुद्दा है। यह तो तय हो जाएगा कि अगर सरकार के द्वारा सभी गर्भ रजिस्टर कर लिए जाएं और गर्भपात पर नजर रखी जाए तो अवैध गर्भपात को रोकने में मदद मिलेगी। पर गर्भपात के लिए वैध कारण क्या है, इसका निर्धारण सरकार में कौन करेगा? भारत में अभी भी स्त्रियों का शारीरिक संबंध स्थापित करने की परिस्थितियों पर कोई भी नियंत्रण नहीं है। ये तो बस हो जाते हैं, अनायास, अचानक, और इसका परिणाम स्त्रियों के लिए पीड़ा से कम नहीं होते हैं। इसके साथ ही आज स्त्रियाँ कैरियर बना रही हैं, कई बार वे ऐसे चरण में होती हैं जहां पर वे अपने कैरियर से समझौता नहीं कर सकती हैं, वे एक और मानव जीवन की जिम्मेदारी लेने की अवस्था में नहीं है। अभी हाल ही में काफी मामले ऐसे आए हैं जब कैरियर के शिखर पर पहुंचकर बच्चा तो पैदा कर लिया पर बाद में उस बच्चे के कारण उत्पन्न कुंठा ने ही उस बच्चे की जान ले ली। स्त्रियां एक तरह के अवसाद में चली जाती हैं, जब उनके सामने ये दो विकल्प आते हैं कैरियर या बच्चा। बच्चा उन्हें अपनाना होता है जबकि कैरियर वे छोड़ना नहीं चाहतीं। इसी तरह कई बार स्त्री के सामने बच्चे की अवैधता भी एक प्रश्न होती है। सामाजिक और आर्थिक सुविधाएं भी महत्वपूर्ण होती हैं। अवांछित बच्चे को जन्म देकर स्त्री तो अपने जीवन की डोर उससे बांध लेती है पर उसे कितना पारिवारिक समर्थन मिलता है, यह भी देखना होगा। ऐसे में गर्भपात के लिए कौन से कारण वैध होंगे और कौनसे अवैध, यह निर्धारित करना बेहद ही मुश्किल कार्य है।

गर्भपात कभी भी सकारात्मक विकल्प नहीं होता है। गर्भपात से जुड़े कुछ और जटिल मुद्दों पर जाएं तो पाएंगे कि कई बार स्त्रियां अपने पति और परिवार के दबाव में आकर लिंग आधारित गर्भपात कराती हैं – यह अपनी मर्जी का तो फैसला होता नहीं है, यह एक अजन्मी स्त्री के जन्म लेने के अधिकार की भी लड़ाई है। स्त्री के गर्भपात की स्वतंत्रता को उसी के वंश को नष्ट करने के लिए उसी की कोख के माध्यम से प्रयोग किया जा रहा है।

जैसे ही गर्भपात का मुद्दा उठता है वैसे ही विरोध करने वाले इसे स्त्री की फालतू स्वतंत्रता से जोड़कर देखने लगते हैं, वे उसके दुरूपयोग की बातें करने लगते हैं। उनके अनुसार स्त्रियां गर्भपात को भी एक फैशन बना लेंगी।  उस समय विरोध करने वाले उस पीड़ा को एकदम भूल जाते हैं जो जटिलताओं के साथ पैदा हुए बच्चे और उसकी माँ को होती है। गर्भपात के अधिकार के लिए संघर्ष करने का अर्थ यह नहीं है कि स्त्रियों को ऐसी कोई दुनिया चाहिए जहां गर्भपात कराना सरल और गर्भपात एक आम बात होगी, पर हमें ऐसी तो दुनिया पाने का अधिकार है जहां पर गर्भावस्था पर हमारा नियंत्रण हो, हम उन स्थितियों को बदलने में सक्षम हों जिनमें अवांछित गर्भधारण की स्थिति आ सकती है।

हमारा कहना केवल इतना है कि जब भी स्त्रियों के लिए सरकार कोई भी क़ानून बनाती है उसमें स्त्रियों का पहलू भी सम्मिलित करे। उसमें उसे होने वाली मानसिक और शारीरिक पीड़ाओं को स्थान दें। इस दुनिया में आधी आबादी के तमाम अधिकारों को केवल धर्म की चादर में न समेट कर रख दें।  एक तरफ आप गर्भपात पर प्रतिबंध लगा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ उन्हीं देशों में असुरक्षित गर्भपात की संख्याओं में निरंतर वृद्धि देखी जा रही है। स्त्रियों को उनके अधिकारों की तरफ आने तो दें, एक झरोखा खोलने तो दें। धर्म से परे भी उनका अस्तित्व है यह महसूस करने दें।


सोनाली मिश्रा
सी-208, G-1, नितिन अपार्टमेंट शालीमार गार्डन,
एक्स-II, साहिबाबाद,
ग़ाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश
फ़ोन – 9810499064


मंगलवार, 1 नवंबर 2016

मुक्ति

“चाय पीयेगी अन्वी” तान्या ने पूछा
“तानू, मैं यहाँ कैसे?”
“अन्वी, तू तो पिछले एक घंटे से ही यहां है?”
“सच में?” अन्वी के मन में जैसे एक ज्वालामुखी फटा.
मैं यहाँ कैसे? मैं कैसे आ गयी? मैं अविनाश के साथ थी, फिर यहाँ तान्या के घर? ओह मेरे साथ क्या हुआ था?
“तू यहाँ एक घंटे से है!”
“पर मैं यहाँ आई कैसे?”
“अपनी धन्नो से?”
“सीरियसली?”
“येस डियर”
“पर मैं तो अविनाश के साथ थी!” वह मुंह ही मुंह में बुदबुदा रही थी,
“अरे तू क्या बोलती और कहती है समझ में नहीं आता” तान्या ने कहा
“अच्छा एक बात बता, मैंने एक घंटे में तुमसे कुछ बातें की क्या?”
“नहीं!”
“तुम आईं और सो गईं, अब उठी हो! क्यों क्या हुआ?”
“कुछ नहीं यार, चल चाय पिला और फिर मैं घर जाऊं!”
“आर यू श्योर कि तुम जा पाओगी?”
“हां, यार बस चाय पिला दे”
“ओके”
अन्वी यही सोच रही थी कि वह क्या करे अविनाश ने जो कहा था वह उससे आगे की बात करे या मां के पास जाए. मां को मेरी जरूरत है. मां जिस मोड़ से गुजर रही हैं, उसमें उन्हें एक साथी की जरूरत है और वह खुद चाहती है कि वह अविनाश से शादी करने से पहले मां का घर बसा जाए. यही बात करने के लिए आज वह अविनाश के पास गयी थी पर वहां से जो उसे जबाव मिला था वह उसे हतप्रभ करने के लिए काफी था. वह चाहती थी कि उसके मां ने आज से दस बरस पहले उसके कारण शादी न करने का फैसला किया था वह बदल लें और अब शेखर अंकल से शादी कर लें. शेखर अंकल की आँखों में माँ के लिए बहुत प्यार देखा है.
उफ अविनाश! तुम ही मेरे इस फैसले में मेरे साथ नहीं हो? उसकी आँखों से आंसू बह निकले!
“सब कुछ ठीक है न!” तान्या ने चाय का कप रखते हुए कहा
“हाँ, यार, सब ठीक है!”
“देख यार, अगर कुछ भी बात है मन में तो बता. अविनाश के यहाँ से तू जिस हाल में आई थी, वह मुझे डराने के लिए काफी था. तुझे पता है, ऐसा तो हाल तब भी नहीं होता जब मैं एक बोतल बियर चटका लेती हूँ!”
“तू भी न तान्या, बस  हर समय तुझे पीने की लगी रहती है!” अन्वी ने प्यार से झिड़का.
उसे तान्या का यही चुलबुला स्वभाव पसंद है. एक खदबदाते हुए कोल्डड्रिंक जैसी है तान्या. जो अपने प्यार से सबको समेटे रहती है. माँ के बाद वह केवल तान्या के नज़दीक है. वह तान्या को यह बात बताए या नहीं? वह समझ नहीं पा रही. आखिर माँ की शादी में अविनाश को समस्या क्या है? वह अविनाश को सोचती जा रही है और अपनी मंगनी की अंगूठी को घुमाती जा रही है जैसे बहुत कुछ सोच रही हो. ओह, ये क्या? अंगूठी ढीली थी, हां जैसे उसका और अविनाश का रिश्ता, एकदम ढीला, कहीं से कोई भी हिला सकता था.  ओह, वह क्या करे? वह क्या करे? उधर अंगूठी उसके हाथ से फिसलने ही वाली थी कि तान्या आ गयी.
“ओह, तो मैडम, कुछ सोच रही हैं?, इस सोच में अविनाश बाबू तो गए! बेचारे अभी गिर जाते!”
“क्या तान्या? मेरा मन अजीब है!”
“क्या हुआ मेरी जान, वोदका दूं तब बताएगी क्या या चाय से ही उलट देगी अपने मन की बात!”
“यार, तू जानती है कि मैं नहीं पीती!”
“तो पी ले, फिर तो तेरी शादी उस संस्कारी अविनाश से हो ही जानी है, तेरा आदर्श पति, फिर तो तू कोल्डड्रिंक में ही शर्माएगी, तो फिर ये हरी परी का क्या होगा?”
“ओह अविनाश!” वह रो पड़ी
“अरे अन्वी क्या हुआ? तू मान न मान कुछ तो हुआ है! अब तू मुझे बताएगी या मैं खुद अविनाश से पूछूं?”
“न वह फोन नहीं उठाएगा!”
“अरे ऐसा क्या?”
“सुन, तुझे पक्का याद है कि मैं यहाँ एक घंटे से हूँ?”
“हां यार!”
“चलूं फिर, माँ चिंता कर रही होगी?”
“पर हुआ क्या है?”
“कुछ नहीं, मेरी धन्नो सही है?”
“हां, वह वहीं पर खडी है जहां पर वह होती है”
“और चाबी?”
“वह भी वहीं, माने अपनी जगह दरवाजे पर”
“ओह, चल मैं चलूँ! माँ को भी पता नहीं था कि मैं अविनाश से मिलने जाऊंगी”
जैसे ही उस वन रूम अपार्टमेंट से बाहर निकली अन्वी, वैसे ही जून की लू ने उसका स्वागत किया. अन्दर तक हुलस गयी. पर उसकी यह जलन अविनाश के शब्दों की तुलना में बहुत हल्की थी, वह तो अपनी आत्मा को जलाकर आई थी. अविनाश के साथ की ठंडी दोपहर में, अपने मन की बात कहने पर जैसे उसे थप्पड़ सा लगा था,
“यू ब्लडी सेल्फ डिपेंडेंट औरतें?”
“अविनाश, ये तुम क्या कह रहे हो?” अन्दर तक कहीं चटकन को समेटते हुए उसने पूछा था
“और क्या, मतलब ये भी कोई बात होती है करने के लिए? कमाती हो तो क्या ऐसी फालतू बात बोलोगी?”
“मैंने क्या गलत कहा?”
“क्या गलत नहीं है?, अरे यार हमारे धर्म में ये चलता ही नहीं है जो तुम कह रही हो?”
“तो मना भी तो नहीं है हमारे धर्म में?”
“क्या मना नहीं है? यार किसी शादीशुदा औरत का दोबारा शादी करना मना है, वह भी तब जब उसका पति जिंदा हो और तलाक भी नहीं हुआ हो”
“तुम माँ को सुहागन मानते हो?, क्या केवल सिन्दूर लगाने से ही माँ सुहागन है? वाह,”
“चुप रहो यार!”
“अविनाश, समझो यार, मेरे जाने के बाद माँ अकेली रह जाएगी. क्या करेगी वह?”
“करेगी क्या, अगर मन हो तो तुम्हारे पास रहे और अगर मन है  तो तुम्हारे पापा के पास चली जाए. आखिर तुम्हारी माँ बीवी तो उनकी ही है न!”
“अविनाश, ओह, तुम भी? तुम भी माँ को केवल मेरे पापा की बीवी ही मानते हो. तुम उन्हें अलग नहीं देख सके, वेल एजुकेशन के बावजूद, तुम्हें पता है मेरी माँ दस साल से एक झूठे सिंदूर के साथ है, सरिता आंटी के पापा की ज़िन्दगी में आने के बाद वे कभी मेरे पास नहीं आए, शैली आंटी के बच्चों को वे अपने बच्चे मानते हैं, मुझे तो केवल नाम के लिए अपना नाम दिया है. अगर कहीं त्याग है तो वह मेरी माँ ने किया है, दस साल, दस साल अविनाश!”
“ये क्या दस साल दस साल लगा रखा है, आखिर अंकल ने आंटी को तलाक तो दिया नहीं है, तो फिर वह वहीं जाकर क्यों नहीं रह सकती?, आधे घर में वह रह लेंगी”
“छि अविनाश! आज तुमसे मुझे नफरत सी हो रही है, जो औरत को केवल आदमियों की एक पूंजी सोचता है. औरतें अलग होती है, उनका अस्तित्व अलग होता है”
“यही एटीट्युड रहा होगा, आंटी का तभी अंकल वापस नहीं आए कभी, एक अकेली लड़की जनी और दूसरा ये घमंड, अमा यार, ये तुम औरतें कैसे ऐसी हो सकती हो”
“अविनाश” वह रो पड़ी थी, उसे लग रहा था कि अविनाश उसे सम्हालेगा, मगर उसने उसे सम्हाला नहीं!
“अरे यार, तुम रो क्यों रही हो, क्या मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं, बचपन से केवल तुम्हें ही प्यार किया है, याद करो, कैसे तुम्हारे साथ खेलता था”
अविनाश ने उसका मूड सही करने के लिए मजाक किया. पर वह अन्दर तक टूटने लगी थी. ओह, इस आदमी के साथ अपनी ज़िन्दगी बिताने जा रही है, ढीली अंगूठी उसकी गर्दन पर फंदा बनकर कसने लगी थी, वह अविनाश के शब्दों की रस्सी से खुद को बंधा हुआ पा रही थी, जैसे पापा ने उसके पैदा होने के बाद एक नई दुनिया बसा ली थी और एक बेटा न दे पाने के कारण माँ को कभी माफ नहीं कर सके थे, वैसे ही किसी छोटी बात पर अविनाश उसे भी छोड़ कर जा रहा है और वह माँ के कंधे पर सिर रखकर रो रही है. ओह, ओह! अविनाश, संस्कारों की बात करने वाला अविनाश, मॉडर्न वेशभूषा में भी परिवार को अपना सर्वस्व मानने वाला अविनाश, ऐसा था! उसकी माँ ने केवल उसके लिए कि उसे पिता का नाम मिलता रहे, तलाक नहीं दिया था और खुद एक छोडी हुई औरत का तमगा लगा लिया था. माँ को जब शैली आंटी के बेटा होने का पता चला था तब से वे मुक्त सी हो गयी थी, ऐसा लगता था जैसे उनके दिल पर एक बोझ था वह भी हट गया था. माँ को कभी रोते हुए उसने नहीं देखा था, पापा के जाने के बाद तो बिलकुल ही नहीं. जब वह बारह बरस की हो गयी थी और उसके सामने माँ पांच बार तीन तीन महीने गर्भवती होकर गर्भपात का शिकार हुई, तो जैसे घर में शमशान जैसी मुर्दानगी छा गयी थी. ऐसे में शैली आंटी से शादी का प्रस्ताव आने पर माँ ने सहर्ष अनुमति दे दी थी. अपने शरीर के साथ और चीराफाड़ी करने के पक्ष में माँ नहीं थी और नहीं थी वह ऐसे आदमी के साथ रहने में जो केवल बेटा न होने देने के कारण उनके शरीर के साथ हर दूसरे साल प्रयोग करता था. माँ, ने केवल यह घर माँगा था और उसकी शादी तक तलाक न लेना. ये दोनों ही शर्तें पापा और शैली आंटी को मंजूर थी. कैसा रहा होगा माँ का दर्द. उसे याद है जब भी वह पापा के बारे में पूछती तो माँ उसे पापा के पास जाने के लिए कभी मना नहीं करती थी, लेकर जातीं और जब शैली आंटी के गर्भवती होने की सूचना मिली तो माँ ने उनका बहुत ख्याल रखा. माँ ऐसा क्यों करती थी? अन्वी कभी पूछ नहीं पाई? माँ ने हमेशा दिया, और अपनी ज़िन्दगी से समझौता करने से बची. माँ का यह निर्णय पापा को भी परेशान करता था. पर वे खुश थे, अपनी नई ज़िन्दगी में, शैली आंटी के साथ. माँ हमेशा मुक्त होने की बात करती थी, ये कैसी मुक्ति थी, माँ उधार में हंसती थी, ये किसका उधार था? माँ हमेशा कहती “बस.........”
वह माँ की इस बस में उलझ जाती! आखिर यह बस क्या था? वह बेचैन रहती, अजीबो गरीब तरह से बेचैन रहती. कभी कभी इधर से उधर चक्कर काटती, बोलती, “मुक्ति दे दो प्रभु, मुक्ति दे दो”, ओह, माँ की मुक्ति की अवधारणा उसे समझ में नहीं आई थी. जिस दिन शैली आंटी के बेटा होने की खबर सुनी, माँ ने मेरे सिर पर हाथ फिराया और कहा “ओह, मुक्ति! आखिर तुम आ ही गयी”
उस दिन उसने माँ के चेहरे पर अजीब खुशी देखी जैसे बुद्ध के चेहरे पर ज्ञान बोध होने के बाद आई होगी. माँ का चेहरा देखकर उसे लगता कि वह एक लम्बा सफर तय करके आई हैं और आराम करना चाहती हैं. उसे माँ में बुद्ध की शांति देखकर लगता कि इस शांति का आखिर कारण क्या है? बेटा शैली आंटी के हुआ और मुक्ति माँ को? उसने कई बार पूछना चाहा, पर माँ ने हमेशा कहा “समय के साथ तुम्हें पता चल जाएगा, कुछ सवालों के जबाव हमेशा समय में होते हैं” माँ ऐसी ही थी. अविनाश को वह बहुत पसंद करती थी,जब से उन दोनों का एडमिशन इंजीनियरिंग में एक साथ हुआ था. उन तीन चार सालों में अविनाश न केवल उसके बल्कि माँ के भी नजदीक आया. नौकरी करते हुए माँ को अब बीस बरस हो चले थे. उसकी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरे होते ही माँ ने अविनाश को लेकर उसका मन टटोला और उसकी तरफ से हां पाकर, माँ ने पापा से बात करके अविनाश के घर रिश्ता भेजा था. पारिवारिक संरचना के बारे में थोड़ी सी झिझक के बाद हां हो गयी थी. उसे याद है अविनाश ने उसकी माँ की तरफदारी करते हुए अपने माँपिताजी से कैसे बात की थी. अविनाश ने कहा था
“जो भी हुआ, उसमें अन्वी की माँ की क्या गलती है?’
“बेटा नहीं जना है उसने!, उसकी बेटी भी बेटियाँ ही देगी!”
“ओफो माँ, आप लोग भी कैसी बात करते हैं! आज के जमाने में! लड़के और लड़की में फर्क है क्या?”
“देख लो बचवा, अब बाद में हमसे न कहना कि चेताया न था, देखो हमें तो चाहिए ही चाहिए बेटा एक, अब तुम देख लो”
“ओहो माँ, ऐसा कुछ नहीं होगा!”
पापा ने ईमानदारी से सब कुछ बता दिया था, शैली आंटी ने भी बढ़ चढ़ कर इस सगाई में हिस्सा लिया था, आखिर उन्हें तो इस दिन का बरसों से इंतज़ार था. कुछ महीनों के बाद उनका असली गृह प्रवेश होना था. उसकी शादी की तैयारी करते करते माँ खो जाती, वह उस घर को देखती. हर कमरे में झांकती. उसके बचपन की छाँव बिलोती, फिर चाबी में बंद कर उन सबको अन्वी को ही दे देती.
“ओहो माँ, ये घर मुझे नहीं चाहिए, तुम रहना यहाँ”
“न अन्वी, ये तुम्हारा घर है. तुम्हारे पापा से मैंने ये घर तुम्हारे नाम पर करवा लिया था. अब तुम्हारी शादी हो तो मैं इस कर्ज से मुक्त होऊँ!”
“माँ, तुम कहाँ जाओगी?”
“अरे पागल, मैं! मैंने इंतजाम कर लिया है, हां, इतना बड़ा घर नहीं है, पर वन रूम सेट है. वहा पर मेरी जरूरत का सारा सामान होगा. तुम्हें भी दिखाऊंगी, आखिर मुझसे मिलने तो आओगी ही!”
उसे अपनी माँ का स्वाभिमान बहुत प्रिय था. उसी स्वाभिमान के कारण वह उसके पापा के साथ नहीं रही थी, ये घर उसका था, यह वह अविनाश के सामने भी कह देती थीं.
“ओ मैडम! कहाँ खो गईं?”
अतीत के सफर से बाहर वह निकल आई!
“देखो, यार तुम समझो, तुम्हारे पापा ने जो भी किया, वह अपने बेटे के लिए किया! अब अगर तुम्हारी माँ उन्हें बेटा दे देती तो क्या वे पागल थे दो दो गृहस्थियों का  बोझा उठाते? आखिर दो दो घर चलाना हंसी खेल तो है नहीं”
ये कौन से अविनाश से वह मिल रही थी. यह तो वह अविनाश नहीं था, यह तो कोई और ही था. उसके शरीर से आने वाली गंध तो वही थी, पर उसकी बातें? उसके विचार? ओह, ये कौन है? ये कौन है? वह पागल हो रही थी!
“यार, तुम न इमोशनल हो रही हो! तुम्हारी माँ कहीं भी रह लेंगी, इतने सालों से नौकरी कर रही हैं, पैसा तो होगा ही उनके पास, एक फ्लैट खरीद लेंगी, नहीं तो शैली आंटी के साथ रह लेंगी. आखिर शादी के बाद तुम्हें भी तो कोई मायका चाहिए होगा? ये घर तो हमारा होगा डार्लिंग! अब तुम्हें भी रस्में निभाने के लिए पापा मम्मी के पास ही जाना होगा न!”
ये अविनाश ही है, ओह! तभी माँ जब बोलती थी ये घर उसका है, तो अविनाश का चेहरा खिल जाता था! वह माँ के आगे बिछ बिछ जाता था. ये घर का चक्कर था क्या? उफ, ये क्या कह रहा है अविनाश! ये क्या कर रहा है अविनाश! उसे लग रहा था कि जैसे उसे बुखार चढ़ रहा है, वह अजीब से ताप का शिकार हो रही है. उस एसी में उसे लग रहा था कि वह जल रही है, उसके शरीर पर वही नीम्बू के पेड़ के कांटें चुभ गए हैं जो साइकिल सीखते समय उसके गिरने पर उसके शरीर पर चुभ गए थे और उसने बहुत ही मुश्किल से अपने हाथों पैरों से उन काँटों को निकाला था. उसके बाद जो जलन हुई थी वह नाइसिल से भी नहीं गयी थी. माँ को तो बताया ही नहीं था.
वैसी ही चुभन वह अपने गले में महसूस कर रही थी, उसके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकल रहा था, ये उसका ड्रीम बॉय था. ओह अविनाश, ओह, वह रो रही थी. पर अविनाश तो जैसे कुछ समझ ही नहीं रहा था.
“देखो, तुम्हारे पापा की दूसरी शादी को तो लोग मान लेंगे, पर माँ! माँ की शादी? पागल हो क्या? मैं क्या मुंह दिखाऊंगा अपने घर वालों को? क्या कहूँगा कि ये मेरे नए ससुर हैं? अरे तुम समझ नहीं रही हो! अभी केवल तुम ही हो अपनी माँ की पूरी जायदाद की वारिस, उनकी शादी के बाद वह उनके नए परिवार में चली जाएगी! अबे पागल औरत, तू समझ क्यों नहीं रही है”
अविनाश की आवाज़ तेज हो रही थी. जब से उसने शेखर अंकल और माँ की शादी की बात की थी.
“वो, बुड्ढा ठरकी आदमी, तभी मैं सोचूँ तुम्हारे घर पर इतना क्यों आता है? आखिर तुम्हारी माँ पर डोरे डाल रहा है, बूढ़ी औरत बेटी की शादी के बाद अकेली हो जाएगी, और वह उसकी जायदाद पर अधिकार जमा लेगा”
अविनाश के चेहरे पर अजीबोगरीब भाव आ रहे थे.
“सुनो, यार, तुमने आज क्या रट लगा दी है, माँ और शेखर अंकल की शादी?”
अविनाश मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ, मैंने माँ जैसी स्वाभिमानी औरत नहीं देखी है. हमेशा दिया ही है, लिया कुछ नहीं. अब उनके लिए करने का समय आया है तो क्या मैं उनके लिए इतना नहीं कर सकती?”
“नहीं कर सकती, सुना तुम नहीं कर सकती? एक औरत इस उम्र पर शादी नहीं कर सकती!, और अगर तुमने दोबारा ऐसा सोचा भी तो अपने लिए भी शेखर अंकल जैसा ही खोज लेना”
ओह अविनाश, तुम ऐसे निकलोगे? कभी सोचा नहीं था. गर्म दोपहर में वह न जाने कितनी देर तक वहीं खड़ी रही थी. और न जाने कैसे भावों के साथ वह पहुँच गयी थी तान्या के घर पर. न उसे अपना होश था और न ही खबर, वह कैसे जिएगी उस आदमी के साथ जिसके ऐसे विचार हैं? ओह, वह अपनी स्कूटी उठाकर चल पड़ी थी, और उसे होश आया था, तब भी क्या उसे होश आ पाया था? वह क्या करे? उस गर्म दोपहर को कैसे वह ठंडी शाम में बदले! एक तरफ उसकी उंगली में पड़ी अंगूठी है तो दूसरी तरफ उसकी माँ की जिंदगी, उस माँ की जिसने उसके लिए अपनी हर इच्छा त्याग दी, ऐसी ज़िन्दगी जी, जो उसकी नहीं थी! उसे लग रहा है माँ का अकेलापन, उसका इस घर से जाना, एक छोटे घर में माँ को बुढ़ापे की सीढियों की तरफ अकेले चलना. उसका अपनी नई ज़िन्दगी में प्रवेश और माँ? वह? उसका क्या? पापा और शैली आंटी का कानूनन एक होना! उसकी माँ क्या करेगी? और वह? ओह, अविनाश तुम ऐसे निकलोगे?
अपनी माँ और अपनी खुशियों में से माँ का पलड़ा उसे भारी लगने लगता! माँ, क्या करे वह, क्या करे?
आंसू पोंछकर वह घर की तरफ चली थी,
“अरे अन्वी, कहाँ थी? इतनी देर से अविनाश का फोन आ रहा है, तुम दोनों के बीच कोई लड़ाई हुई है क्या?”
“नहीं तो?”
“फिर तुम उसका फोन क्यों नहीं उठा रहीं?”
“बस ऐसे ही”
“माँ तुम मेरे बिना क्या करोगी? मेरे बाद तुम्हारा अकेलापन?”
“मैंने तुम्हें बताया है न, कि मैं एक वन रूम सेट में जाऊंगी, तुम्हें मेरी चिंता करने की जरूरत नहीं है”
“माँ, तुम्हें उस दिन वाकई मुक्ति मिलेगी न!”
“अन्वी!”
“माँ बोलो न”
“अन्वी, मेरी बच्ची! जाने दे इसे!”
“माँ, अब मैं जा रही हूँ तुम्हारे पास से हमेशा के लिए तो तुम्हारे अकेलेपन में कौन तुम्हें सम्हालेगा?”
“होंगी न तुम्हारी यादें!, जब भी याद आएगी तब तुम्हें याद कर लिया करूंगी, तुमसे बात कर लिया करूंगी! तुम कहाँ मुझसे इतनी दूर होगी?”
“माँ, मैं तुम्हारे मानसिक और शारीरिक दोनों ही अकेलेपन की बात कर रही हूँ. तुम्हें मैंने अकेले बहुत देख लिया है. शैली आंटी और पापा एक हैं, और तुम? तुम्हारे अकेलेपन के लिए कोई तो हो?”
“अन्वी, ये क्या लेकर बैठ गयी है. सच कहना यही बात करने तुम अविनाश के पास गयी थी न!”
“छोड़ो न माँ अविनाश को? मैं तुमसे बात कर रही हूँ, एक नहीं कई अविनाश मिलेंगे! पर तुम और तुम्हारा अकेलापन”
“क्या बोल रही है अन्वी, हे प्रभु ये लड़की क्या करके आई है? क्या करके आई है, बोल?”
“माँ आप शांत हो जाएं, कल शेखर अंकल आपके पास आएँगे, मैंने आपको और शेखर अंकल को एक दूसरे की परवाह करते हुए देखा है, आप दोनों की आँखों में एक तड़प देखी है, वह तड़प मुझे अन्दर तक सिहरा देती है. मैं चाहती हूँ माँ तुम दोनों अपनी जिंदगी एक साथ जियो! माँ तुम जियो न!”
“पागल लड़की, ये क्या कह रही है? मैं अभी अविनाश को फोन लगाकर बुलाती हूँ, तुम उससे यही बोलकर आई हो”
“माँ, कोई फायदा नहीं, अंगूठी वैसे भी ढीली थी, मेरे साइज़ की नहीं थी, कभी कभी हम समझ लेते हैं कि वह हमारे लिए होगा, पर हर अच्छी डिजाइन आपके हिसाब से हो, यह भी तो ठीक नहीं है, मैं उसे वह वापस कर आई हूँ. और माँ आज बहुत दिनों के बाद फ्री महसूस कर रही हूँ, उस लिफाफे में डिवोर्स के जो पेपर हैं जो आपको साइन करने थे, कर दीजिएगा, कल आ रहे हैं शेखर अंकल. माँ मैं अपने माँ पापा के हाथों विदा होना चाहती हूं. मैं मायका चाहती हूँ, मुझे अपने पापा और माँ के घर पर आना है. माँ, मुझे ये दे दो! माँ मुझे मेरा पूरा मायका दे दो न!”
“अन्वी!”
“माँ, ये पेपर साइन करके आपकी मुक्ति होगी, और शेखर अंकल के साथ आपका घर बसाना उस मुक्ति के बाद का दूसरा चरण होगा!”
“अन्वी, मेरी लाडो, इतनी बड़ी हो गयी”
“पर तुम्हारे लिए तो वही हूँ न!, तुम्हारी बार्बी”
“हां, लाडो”
माँ को बिना बताए अविनाश को मेसेज भेज चुकी थी “गेट लॉस्ट डियर, मैंने अपनी माँ की मुक्ति चुन ली है, अपना मायका बना लिया है.”
“शुक्रिया अविनाश, आज बरसों के बाद मुझे सही राह दिखाने के लिए”

अपने गले में एकदम से उभरे दर्द को दबाने के लिए शेखर अंकल से बात करने लगी थी वह....................

नया साल

फिर से वह वहीं पर सट आई थी, जहाँ पर उसे सटना नहीं था। फिर से उसने उसी को अपना तकिया बना लिया था, जिसे वह कुछ ही पल पहले दूर फेंक आई थी। उसने...