रविवार, 17 अप्रैल 2016

तमाशा मेरे आगे

पुस्तक: तमाशा मेरे आगे
लेखक: हेमंत शर्मा
प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन दिल्ली
मूल्य:300 रूपए

“काशी में गद्य की समृद्ध परम्परा है। ठेठ गद्य की। काशी में लिखने वालों में भारतेंदु का नाम शीर्ष पर है। खड़ी बोली हिंदी। बोलती हुई हिंदी। उस परम्परा में दूसरा नाम है पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ का। प्रेमचंद का नाम मैं इसलिए नहीं ले रहा हूँ कि वे मुख्यत: उर्दू से हिंदी में आए थे। मैं यहाँ सिर्फ ठेठ हिंदी में लिखने वालों की बात कर रहा हूँ। काशीनाथ का नाम इसलिए नहीं ले रहा हूँ क्योंकि वे मेरे भाई हैं। इन दोनों के बाद अगला नाम हेमंत शर्मा का ही है। ठेठ हिन्दी गद्य में बनारसी रंग के यही तीन लेखक हैं – भारतेंदु हरिश्चंद्र, पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ और आज हेमंत!”
नामवर सिंह की ये पंक्तियाँ हेमंत शर्मा की पुस्तक तमाशा की जादूई भाषा के तिलिस्म को बताती हैं। पुस्तक में कुल 41 लेख हैं और बकौल लेखक के इन लेखों में उन्होंने ज़िन्दगी, समाज और अपने इर्द-गिर्द के इंसानों से जितना कुछ समझा, उसका चित्रण पूरी ईमानदारी से किया है।  ये लेख विचारों की यात्रा हैं जिनमें कबीरचौरा से लेकर विश्वनाथ और सोमनाथ तक के पड़ाव हैं। कहीं इनमें विलुप्त गौरैया के महत्व और यादें है तो दिल्ली की संवेदनहीन प्रवृत्ति पर भी प्रहार है। राम की सहजता और कृष्ण का देवत्व है। शिव की आस्था है और राम, कृष्ण और शिव के रूपों की तुलना भी है। इस पुस्तक के वृहद कैनवास में सभी ऋतुएँ हैं। यौवन उन्मुक्त बसंत है, सावन राग है। सावन की रिमझिम में फिसलना है तो शरद की उत्सवधर्मिता के चित्र हैं। पुस्तक में और भी कई विषय झांकते हैं जैसे समय के साथ कलुष होती होली, तो वहीं युगों युगों से आस्था का प्रतीक कुम्भ भी सहजता से अपने सौन्दर्य से परिचित कराते हैं। मामा-भांजे और दामाद को लेकर चुटीले व्यंग्य हैं। दामाद से जुड़े भ्रष्टाचार को लेकर व्यंग्य की ख़ूबसूरती इन पंक्तियों में झलकती है “सांस्कृतिक परम्पराएं देश की सरहद नहीं पहचानती। पाकिस्तान के मौजूदा राष्ट्रपति आसफ अली ज़रदारी भुट्टो परिवार के दामाद ही तो हैं”। इन लेखों में द्रौपदी के बहाने कई प्रश्न उठाने का भी प्रयास है। द्रौपदी के बहाने स्त्री अपमान की गाथा है और अपमान को क्षमा न करने की बात है। द्रौपदी के साथ इतिहास के अन्याय का भी प्रश्न है। प्रभाष जोशी जी की स्मृतियाँ हैं,जो पत्रकारिता के निहितार्थ सिद्धांतों की नींव रखती सी दिखाई देती हैं। सन्दर्भों के इतिहास है। व्यंग्य है चुटीलापन है। मुहावरे हैं जैसे दिल्ली को वे षड्यंत्रों का शहर बताते हैं तो काशी को राग और विराग का शहर। डॉ। लोहिया की नज़र में दिल्ली भारतीय इतिहास की शाश्वत नगरवधू है। तमाशा मेरे आगे लेख में बनारस और दिल्ली की तुलना करते हुए वे कटाक्ष करते हैं “काशी में मरने में मुक्ति है, लेकिन दिल्ली में मरने से प्रसिद्धि है, जलवा है। हतप्रभ करने वाले प्रकरण हैं। किताब के शीर्षक के अनुसार तमाशा है। जो हंसाता है जब मृत्यु का मज़ा तो दिल्ली में हैं जैसे कटाक्ष आते हैं, या केसन असी करी में सफेद बालों के कष्टों से लेखक रूबरू कराता है। हेमंत शर्मा के लिखे लेखों का क्षेत्र इतना व्यापक है कि पूरी स्रष्टि भी उसमें से अपने कण खोज सकती है। इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता न केवल इसके सहज भाव से लिखे गए संवेदनाओं से परिपूर्ण लेख हैं बल्कि इन लेखों की भाषा भी है। भाषा में आह्लाद है, उल्लास है, गंगा की लहरों के समान भाषा है। गद्य और पद्य का बेजोड़ मेल है। भाषा में पांडित्य है, लालित्य है, गंभीरता है और शब्दों की मनुहार भी। कहा जा सकता है इस पुस्तक में विचार यायावर की तरह यात्रा करते हुए नज़र आते हैं।


सोनाली मिश्रा


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